अम्बिकेश्वर पाण्डेय। भारत में सर्वोच्च न्यायालय के संविधान पीठ ने एक बार फिर साबित किया है कि वह हमारे लोकतंत्र को मजबूत करने और सुरक्षित रखने में प्रभावी भूमिका निभा सकता है। चुनावी बांड के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आये निर्णय और दिखाई गई सख्ती से भारत की जनता में जो पढ़ी लिखी है उसमें न्यायालय के प्रति एक विश्वास जगह है कि न्यायालय ही हैं जो अब राजनैतिक चंदे और मनी लैंडिंग अधिनियम की संभावनाओं को खत्म कर सकता है
सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद चुनाव आयोग द्वारा जारी किए गए राजनैतिक चंदों की डिटेल से एक बात तो साबित हो गई है कि भारत में विदेशी स्रोतों से राजनैतिक चंदे भी लिए गए जिनकी लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम उन्नीस सौ इक्यावन में सख्त रूप से मनाही है
भारतीय लोकतंत्र में राजनैतिक पार्टियों के पास अपनी अपनी समस्या हैं राजनेताओ की माने तो एक लोकसभा क्षेत्र में 20 लाख मतदाता हो सकते हैं। लोकसभा का क्षेत्रफल भी काफी बडा होता है। राजनैतिक पार्टियों और उम्मीदवारों को हर मतदाता तक अपनी बात पहुंचाने के लिए कई माध्यमों का सहारा लेना पड़ता है और जब से तकनीक का विकास हुआ सबसे माध्यम भी अलग-अलग इस तरीके से बढ गए जो कॉफी महंगे भी होते हैं। आधुनिक युग में अब जब तकनीक का विकास हो चुका है तो नए नए तरीके प्रचार के उपलब्ध हो गए लेकिन वह सभी काफी खर्चीले भी है। अब तो एक नया ट्रेंड चल गया है। चुनाव में जीतने की संभावनाओं पता करने के लिए राजनैतिक दल अब प्राइवेट फर्मों से प्रमुख समस्याओं पर अध्ययन और सर्वे कराने लगे हैं जिससे उनको क्षेत्र की मुख्य समस्या का पता चल जाता है।
यहां तक कि कौन सा उम्मीदवार जीत रहा है इसका भी एक आइडिया मिल जाता है। इन सर्वे कार्यों में भी राजनैतिक दल बडा व्यय करते हैं अब जब सर्वे से उनको मुख्य समस्या का पता चल जाता है तो अगर उनकी सरकार है तो वे उस समस्या के संबंध में सरकार से आदेश पास करा लेते हैं और अगर वह विपक्ष में तो उसी समस्या का उस मतदाता के सामने निदान करने का वादा करते हैं। इस परिस्थिति में व्यय बढता ही चला जाता है।
अभी चुनाव आयोग की नियमों को देखें तो जो उम्मीदवार होता है उसके खर्च की तो सीमा है लेकिन पार्टी के खर्च की कोई सीमा नहीं है ऐसे में राजनैतिक चंदे की जरूरत पडती है क्योंकि बिना चुनावी चंदे के लड़ना और जीतना असंभव सा लगता है। बीते 5 वर्षों में राजनीतिक दलों को ₹160 अरब का राजनैतिक चंदा मिला है। इन चंदों को लेने में न ही कानून का पालन किया किया गया और न ही आम मतदाता के अधिकारों को सुरक्षित किया गया है अब ऐसे में जब सरकार ऐसे कॉरपोरेट घरानों से ऐसे ऐसे चंदे ले रही हो जो खुद उनके द्वारा बनाये गये कानूनों के विपरीत हो। तो मतदाताओं विश्वास लडखाडा सा जाता है।
अब 21 तारीख को फिर से एसबीआई को पूरा डिटेल भारतीय चुनाव आयोग को देना अब देखने वाली बात यह होगी कि 21तारीख को इसके बाद और आगे क्या खुलासा होता है