
नयागंज से रावतपुर तक की यात्रा में जनता के लिए सहज और जमीनी नेता की झलक
कानपुर, 20 अप्रैल। आमतौर पर प्रशासनिक सख्ती और गंभीर अनुशासन के लिए पहचाने जाने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का एक अलग, हल्का-फुल्का और आम आदमी से जुड़ा चेहरा रविवार को देखने को मिला, जब उन्होंने नयागंज मेट्रो स्टेशन से मेट्रो ट्रेन में यात्रा की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्तावित कार्यक्रम से पहले शहर में चल रही मेट्रो परियोजना की प्रगति देखने पहुंचे मुख्यमंत्री ने जैसे ही ट्रेन में प्रवेश किया, भाजपा विधायकों और पदाधिकारियों की ओर देखकर मुस्कुराते हुए कहा, “टिकट, टिकट।” उनके इस मजाकिया अंदाज पर वहां मौजूद सभी लोगों के चेहरे पर मुस्कान आ गई।
मुख्यमंत्री की इस हल्की-फुल्की टिप्पणी का जवाब भी उतना ही रोचक था। विधायकगण मुस्कुराते हुए बोले, “हम तो अपने नेता के साथ हैं, टिकट वह लेंगे।” इस पर योगी आदित्यनाथ ने चुटकी ली, “फिर तो विधानसभा अध्यक्ष हम सभी का टिकट लेंगे।” यह संवाद भले ही कुछ क्षणों का रहा हो, लेकिन इसने एक गहरे संदेश को जन्म दिया — कि शीर्ष नेतृत्व अब पहले से कहीं अधिक सहज, जनता के करीब और सहयोगियों से जीवंत संवाद में है।
मुख्यमंत्री ने नयागंज स्टेशन से मेट्रो में सवार होकर रावतपुर स्टेशन तक की यात्रा की। इस दौरान उनके साथ मेट्रो परियोजना से जुड़े वरिष्ठ अधिकारी, मेट्रो एमडी सुशील कुमार, विधायकगण, स्थानीय सांसद, और पार्टी के पदाधिकारी भी मौजूद थे। योगी आदित्यनाथ पूरे समय न केवल ट्रेन की कार्यप्रणाली को गंभीरता से समझते रहे, बल्कि सामान्य यात्री की तरह व्यवहार करते हुए सुरंग मार्ग, स्टेशनों की स्वच्छता, प्रकाश व्यवस्था और यात्री सुविधाओं पर भी नजर बनाए रहे।
ट्रेन ने नयागंज से चलकर चुन्नीगंज, बद्रीनाथ स्टेशन होते हुए जब भूमिगत मार्ग में प्रवेश किया, तो मुख्यमंत्री विशेष रूप से सुरंग के भीतर यात्रा के अनुभव में रुचि लेते नजर आए। इस दौरान सुरंग के अंधेरे और मेट्रो की गति के बीच भी ट्रेन के भीतर मौजूद सभी लाइट्स जल रही थीं, जिससे सुरक्षा और सुविधा का स्तर स्पष्ट नजर आ रहा था। मुख्यमंत्री ने अधिकारियों से सवाल किया कि आपात स्थिति में ट्रेन कैसे रोकी जाती है, सुरंग में वेंटिलेशन और सीसीटीवी की क्या व्यवस्था है।
चुन्नीगंज स्टेशन से बाहर निकलने के बाद जब ट्रेन बृजेन्द्र स्वरूप पार्क के ऊपर से गुज़री, तो मुख्यमंत्री ने खिड़की से बाहर झांकते हुए शहर की हरियाली और मेट्रो की शहरीकरण में भूमिका पर संतोष जताया। उन्होंने कहा कि “कानपुर जैसे औद्योगिक शहर में मेट्रो परियोजना न केवल यातायात को सुगम बनाएगी, बल्कि प्रदूषण को नियंत्रित करने में भी सहायक होगी।” इस दौरान उन्होंने मेट्रो एमडी सुशील कुमार से यात्रियों की औसत संख्या, किराया नीति और विस्तार योजनाओं पर विस्तार से चर्चा की।
इस यात्रा में जो सबसे अधिक ध्यान आकर्षित करने वाला पहलू था, वह था मुख्यमंत्री का व्यवहार। वह न केवल अधिकारियों से सहज संवाद करते दिखे, बल्कि पार्टी पदाधिकारियों से निजी अनुभव भी साझा कर रहे थे। उनके चेहरे पर बार-बार मुस्कुराहट दिख रही थी, जिससे स्पष्ट था कि वह इस विकास परियोजना से बेहद संतुष्ट हैं। स्टेशन पर तैनात सुरक्षाकर्मी और सफाईकर्मियों से भी उन्होंने बातचीत कर उनके कार्यों की सराहना की।
योगी आदित्यनाथ की यह मेट्रो यात्रा केवल एक निरीक्षण नहीं, बल्कि एक राजनीतिक और जनसंपर्क का संदेश भी थी। मेट्रो जैसे आधुनिक परिवहन साधन का उपयोग कर उन्होंने यह संकेत दिया कि उत्तर प्रदेश अब विकास और नवाचार की पटरी पर है, जहां नेता खुद जनता के साथ चलकर योजनाओं का अनुभव करना चाहते हैं। साथ ही उनका ‘टिकट’ वाला मजाक इस बात को रेखांकित करता है कि नेता का संवाद केवल मंचीय भाषणों तक सीमित नहीं रह गया, वह अब जमीन पर उतर कर भी सजीव हो रहा है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह यात्रा आने वाले लोकसभा चुनावों की दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है। योगी आदित्यनाथ द्वारा कानपुर जैसे बड़े औद्योगिक नगर में मेट्रो की प्रगति की सराहना, और उसमें आमजन की तरह सवारी करना, भारतीय जनता पार्टी की ‘विकास’ और ‘जन-जुड़ाव’ वाली नीति की पुष्टि करता है। इसके साथ ही पार्टी कार्यकर्ताओं में यह संदेश गया है कि संगठन का शीर्ष नेतृत्व न केवल फैसले लेता है, बल्कि उन्हें क्रियान्वित होते देखने भी आता है।
इस यात्रा के दौरान सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे, लेकिन मुख्यमंत्री की सहजता ने माहौल को बेहद सौहार्दपूर्ण बना दिया। स्टेशन पर मौजूद कुछ आम नागरिकों ने उन्हें दूर से देखकर ‘जय श्रीराम’ और ‘योगी-योगी’ के नारे भी लगाए, जिनका मुख्यमंत्री ने हल्की मुस्कान के साथ उत्तर दिया। लोगों ने मोबाइल से तस्वीरें लीं और मुख्यमंत्री की सहजता को ‘नेतृत्व की नई परिभाषा’ कहा।
इस प्रकार योगी आदित्यनाथ की यह मेट्रो यात्रा सिर्फ एक योजना का निरीक्षण नहीं रही, बल्कि एक भावनात्मक, राजनीतिक और प्रशासनिक संदेश बनकर उभरी। यह यात्रा बताती है कि जब मुख्यमंत्री स्वयं जनता की तरह योजनाओं का हिस्सा बनते हैं, तब न केवल व्यवस्था सशक्त होती है, बल्कि जनता का विश्वास भी कई गुना बढ़ता है।