
लखनऊ, 24 अक्टूबर। उत्तर प्रदेश की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का दबदबा पिछले एक दशक से स्पष्ट रूप से दिखाई देता रहा है। 2014 के लोकसभा चुनावों से लेकर 2022 के विधानसभा चुनाव तक, भाजपा ने उत्तर प्रदेश में कई ऐतिहासिक जीतें दर्ज की हैं। इसका श्रेय मुख्य रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की करिश्माई नेतृत्व और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की शक्तिशाली राज्यस्तरीय रणनीति को जाता है। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद की चुनौतियों को देखते हुए, योगी आदित्यनाथ की अगुआई में भाजपा की रणनीति में महत्वपूर्ण बदलाव नजर आ रहे हैं, खासकर विधानसभा उपचुनावों के दौरान।
योगी की नई रणनीति: जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों पर जोर
योगी आदित्यनाथ की चुनावी रणनीति का केंद्र जातीय और क्षेत्रीय संतुलन पर आधारित है। उत्तर प्रदेश जैसे विविधतापूर्ण राज्य में, जहां विभिन्न जातियों और समुदायों का वोट बैंक भाजपा की सफलता के लिए अहम है, मुख्यमंत्री योगी ने पिछड़े, अति पिछड़े और दलित वर्गों को साधने के लिए विशेष प्रयास किए हैं। भाजपा ने उपचुनाव में नौ उम्मीदवारों की घोषणा के जरिए सपा के तथाकथित ‘पीडीए’ (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) समीकरण को कमजोर करने का संदेश दिया है।
पार्टी ने पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों पर भरोसा जताते हुए पांच उम्मीदवार इसी वर्ग से चुने हैं। इसमें यादव, कुर्मी, मौर्य, पाल और निषाद समाज के प्रत्याशी शामिल हैं। इसके अलावा, ब्राह्मण और ठाकुर बिरादरी को भी संतुष्ट करने के लिए उम्मीदवारों का चयन किया गया है, जो दर्शाता है कि पार्टी ने जातीय समीकरणों को ध्यान में रखकर अपनी रणनीति को विस्तृत रूप दिया है।
सैफई में ‘यादव दांव’: एक प्रतीकात्मक कदम
योगी की रणनीति में सबसे बड़ा दांव सैफई के यादव परिवार के दामाद अनुजेश यादव को करहल सीट से प्रत्याशी बनाने का है। यह एक प्रतीकात्मक कदम है, क्योंकि सैफई यादव बहुल क्षेत्र है और यादव परिवार का गढ़ माना जाता है। अनुजेश यादव के माध्यम से भाजपा ने सपा के यादव वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की है। इससे भाजपा का संदेश स्पष्ट है कि अब पार्टी सपा के परंपरागत वोट बैंक को भी चुनौती देने के लिए तैयार है।
मुस्लिम उम्मीदवारों को नजरअंदाज कर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर जोर
भाजपा की चुनावी सूची से यह भी स्पष्ट है कि पार्टी ने एक बार फिर मुस्लिम उम्मीदवारों को नजरअंदाज कर अपने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की राजनीति को बनाए रखा है। यह कदम योगी आदित्यनाथ के शासन की मूल भावना को दर्शाता है, जिसमें राष्ट्रवाद और हिंदुत्व प्रमुख मुद्दे हैं। मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भी भाजपा ने ब्राह्मण और ठाकुर उम्मीदवारों को उतारा है, जो स्पष्ट रूप से यह संकेत देता है कि पार्टी मुस्लिम वोट पर निर्भर रहने की बजाय अपने परंपरागत हिंदू वोट बैंक को मजबूत करने पर ध्यान दे रही है।
सीसामऊ में ब्राह्मण पर दांव
कानपुर के सीसामऊ विधानसभा क्षेत्र में भाजपा ने सुरेश अवस्थी को प्रत्याशी बनाया है। यह क्षेत्र मुस्लिम, दलित और ब्राह्मण मतदाताओं का गढ़ है। ब्राह्मण उम्मीदवार को उतारकर भाजपा ने ब्राह्मण समाज को साधने की कोशिश की है, जो कि 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद से पार्टी से नाराज चल रहा था। योगी की यह रणनीति ब्राह्मण समाज की नाराजगी को दूर करने के साथ-साथ उन्हें भाजपा के पाले में बनाए रखने के लिए की गई एक महत्वपूर्ण चाल है।
पार्टी कैडर पर भरोसा, बाहरी उम्मीदवारों को दरकिनार
लोकसभा चुनाव 2024 में बाहरी उम्मीदवारों को टिकट देकर पार्टी कार्यकर्ताओं में जो नाराजगी उत्पन्न हुई थी, उसे योगी ने उपचुनावों में दूर करने की कोशिश की है। उपचुनावों में घोषित नौ प्रत्याशियों में से केवल अनुजेश यादव ही बाहरी हैं, जबकि बाकी सभी पार्टी कैडर से हैं। यह दर्शाता है कि पार्टी ने अब अपनों को तवज्जो देकर कार्यकर्ताओं में विश्वास पैदा करने की कोशिश की है।
दीपक पटेल, सुचिस्तिमा मौर्य, संजीव शर्मा, रामवीर सिंह ठाकुर, धर्मराज निषाद और सुरेंद्र दिलेर जैसे पुराने पार्टी कैडर के नेताओं को टिकट देकर भाजपा ने यह संदेश दिया है कि धैर्य और निष्ठा का इनाम मिलता है। योगी की यह रणनीति न केवल कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित करने के लिए की गई है, बल्कि इससे पार्टी की आंतरिक एकता भी मजबूत होती है।
NDA में सहयोगी दलों के लिए स्पष्ट संदेश
भाजपा की इस नई रणनीति में एक और महत्वपूर्ण पहलू है—सहयोगी दलों को दिया गया संदेश। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा ने निषाद पार्टी को दरकिनार कर खुद कटेहरी और मझवां जैसी प्रमुख सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। इससे यह स्पष्ट है कि भाजपा अब सहयोगी दलों पर निर्भर रहने की बजाय अपनी दम पर चुनाव जीतने का माद्दा रखती है। इससे सुभासपा और अपना दल (एस) जैसे दलों को भी संदेश दिया गया है कि भाजपा का वर्चस्व उनके राजनीतिक भविष्य के लिए अनिवार्य है।
ठाकुर समाज और वैश्य समुदाय को साधने की कोशिश
योगी की रणनीति में ठाकुर और वैश्य समुदाय को भी साधने की कोशिश की गई है। कुंदरकी से रामवीर सिंह ठाकुर को प्रत्याशी बनाकर ठाकुर समाज की नाराजगी को दूर करने का प्रयास किया गया है। वहीं, गाजियाबाद की वैश्य बहुल सीट पर ब्राह्मण प्रत्याशी संजीव शर्मा को उतारकर पार्टी ने ब्राह्मण समाज की नाराजगी को दूर करने का प्रयास किया है। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि योगी आदित्यनाथ ने जातीय और सांस्कृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए व्यापक योजना तैयार की है।
नतीजे: योगी की रणनीति लोकसभा चुनाव के विपरीत परिणाम लाएगी?
योगी आदित्यनाथ की यह नई रणनीति लोकसभा चुनावों से काफी अलग नजर आती है। लोकसभा चुनाव में भाजपा को जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ा, उनमें से अधिकांश का समाधान इस नई योजना के जरिए किया गया है। जातीय समीकरणों का संतुलन, मुस्लिम उम्मीदवारों को नजरअंदाज कर हिंदू वोट बैंक पर जोर, पार्टी कैडर पर भरोसा और सहयोगी दलों को स्पष्ट संदेश—ये सभी कदम दर्शाते हैं कि भाजपा अब उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नई दिशा में बढ़ रही है।
अगर योगी आदित्यनाथ की यह रणनीति सफल होती है, तो निश्चित रूप से भाजपा को विधानसभा चुनावों में एक बड़ी जीत मिल सकती है। इससे न केवल पार्टी का जनाधार मजबूत होगा, बल्कि 2024 के लोकसभा चुनावों में आए परिणामों से विपरीत परिणाम की उम्मीद भी की जा सकती है। भाजपा का यह नया चेहरा उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नई क्रांति का प्रतीक बन सकता है, जहां योगी आदित्यनाथ का करिश्माई नेतृत्व और उनकी समझदारी भरी रणनीति पार्टी को एक बार फिर से ऊंचाई पर पहुंचा सकती है।
योगी की नई राजनीति: क्षेत्रीय संतुलन की महत्वपूर्ण भूमिका
उत्तर प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य में योगी आदित्यनाथ की नई रणनीति सिर्फ जातीय समीकरणों तक सीमित नहीं है। उन्होंने क्षेत्रीय संतुलन को भी ध्यान में रखा है। यह रणनीति इस बात पर जोर देती है कि राज्य के विभिन्न क्षेत्रों—पूर्वांचल, पश्चिमी यूपी, बुंदेलखंड, और अवध क्षेत्र—में भाजपा का प्रभाव समान रूप से मजबूत हो।
पूर्वांचल और कुर्मी-निषाद समीकरण
पूर्वांचल में भाजपा ने कुर्मी और निषाद जातियों पर विशेष ध्यान दिया है, जो कि इस क्षेत्र में प्रमुख मतदाता समूह हैं। यह बात अहम है कि लोकसभा चुनावों में इस क्षेत्र के कुछ हिस्सों में भाजपा को अपेक्षित सफलता नहीं मिली थी। इसलिए, योगी ने इन जातियों को अधिक तवज्जो देकर उन्हें वापस पार्टी के पाले में लाने का प्रयास किया है। कटेहरी में धर्मराज निषाद को प्रत्याशी बनाना और करहल में यादव उम्मीदवार का चयन, दोनों ही पूर्वांचल में भाजपा की रणनीति का हिस्सा हैं, जो सपा और अन्य दलों के प्रभाव को कमजोर करने के लिए बनाए गए हैं।
पश्चिमी यूपी: पाल और ठाकुर समाज पर ध्यान
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में, भाजपा की रणनीति पाल और ठाकुर समाज को मजबूत करने पर केंद्रित रही है। मीरापुर में पाल समाज के वोटरों को साधने के लिए पार्टी ने अपना दल के प्रभाव को बढ़ाने का प्रयास किया है। इसके अलावा, कुंदरकी से रामवीर सिंह ठाकुर को टिकट देकर ठाकुर समुदाय की नाराजगी को दूर करने की कोशिश की गई है। ठाकुर समुदाय को एक बार फिर से भाजपा के साथ जोड़ने का प्रयास योगी आदित्यनाथ की जातीय राजनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो पार्टी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सफलता दिला सकता है।
ब्राह्मण समुदाय की नाराजगी को दूर करने का प्रयास
उत्तर प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मण समुदाय का समर्थन हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है। हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद ब्राह्मण समाज के कुछ वर्गों में भाजपा से नाराजगी के संकेत मिले थे। योगी आदित्यनाथ ने इस नाराजगी को दूर करने के लिए गाजियाबाद में ब्राह्मण उम्मीदवार संजीव शर्मा को उतारा है। इस कदम से पार्टी ने स्पष्ट संदेश दिया है कि वह ब्राह्मण समाज की मांगों और चिंताओं को नजरअंदाज नहीं कर रही है।
भाजपा का सांगठनिक ढांचा: कार्यकर्ताओं को मिली तवज्जो
भाजपा की चुनावी सफलता का एक प्रमुख कारण उसका मजबूत सांगठनिक ढांचा है। योगी आदित्यनाथ ने इस ढांचे को और मजबूत करने के लिए पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं को तवज्जो दी है। लोकसभा चुनावों में बाहरी उम्मीदवारों को टिकट देने से कार्यकर्ताओं में जो नाराजगी उत्पन्न हुई थी, उसे उपचुनावों में अपनों को प्राथमिकता देकर दूर करने की कोशिश की गई है।
इस रणनीति का उद्देश्य पार्टी के अंदर एकता और अनुशासन बनाए रखना है। दीपक पटेल, सुचिस्तिमा मौर्य, संजीव शर्मा जैसे पार्टी के पुराने और समर्पित कार्यकर्ताओं को टिकट देना यह दर्शाता है कि पार्टी उन नेताओं को इनाम दे रही है जिन्होंने वर्षों तक धैर्य और निष्ठा के साथ पार्टी के लिए काम किया है। इससे कार्यकर्ताओं के बीच एक सकारात्मक संदेश जाता है कि उनका समर्पण पार्टी में मान्यता प्राप्त करता है।
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद: भाजपा की विचारधारा का केंद्र
योगी आदित्यनाथ की रणनीति का एक और महत्वपूर्ण पहलू भाजपा का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है। मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट न देकर पार्टी ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने मूल वोट बैंक को खोना नहीं चाहती। भाजपा की यह रणनीति हिंदुत्व पर आधारित सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की विचारधारा को मजबूत करने के लिए है। यह विचारधारा पार्टी के परंपरागत हिंदू मतदाताओं को अपनी ओर बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का संदेश स्पष्ट रूप से दिया जा रहा है। पार्टी का मानना है कि यह विचारधारा उसे न केवल विधानसभा उपचुनावों में जीत दिला सकती है, बल्कि 2024 के लोकसभा चुनावों में मिले झटके को भी कम करने में मददगार साबित होगी।
भविष्य की ओर: 2024 के लोकसभा चुनाव से अलग संभावनाएं
योगी आदित्यनाथ की इस नई चुनावी रणनीति का प्रमुख उद्देश्य 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद मिले परिणामों को सुधारना है। विधानसभा उपचुनावों में पार्टी ने जातीय संतुलन, क्षेत्रीय संतुलन और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर जोर देकर एक मजबूत चुनावी मोर्चा तैयार किया है। अगर यह रणनीति सफल होती है, तो निश्चित रूप से 2024 के लोकसभा चुनावों के विपरीत विधानसभा चुनावों में भाजपा को एक मजबूत जनादेश मिल सकता है।
इस रणनीति से यह भी स्पष्ट होता है कि योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश की राजनीति में पार्टी की पकड़ को और मजबूत करने के लिए नए और अधिक समावेशी तरीके अपना रहे हैं। जातीय और सांस्कृतिक संतुलन के साथ-साथ पार्टी कैडर को प्राथमिकता देकर, योगी ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में भाजपा को एक नई दिशा देने का काम किया है।
योगी की रणनीति से भाजपा का भविष्य
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की यह नई चुनावी रणनीति भाजपा के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। जातीय समीकरणों पर विशेष ध्यान, सहयोगी दलों को स्पष्ट संदेश, पार्टी कैडर पर भरोसा और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के सिद्धांत पर जोर देकर योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा उपचुनावों के जरिए भाजपा को एक नई राह पर ला खड़ा किया है।
अगर यह रणनीति सफल होती है, तो निश्चित रूप से उत्तर प्रदेश में भाजपा का भविष्य और भी मजबूत हो जाएगा। योगी आदित्यनाथ की यह सोच, जहां जातीय और सांस्कृतिक संतुलन को साधने की कोशिश की गई है, पार्टी के लिए आगामी चुनावों में एक निर्णायक भूमिका निभा सकती है। इस रणनीति के परिणाम न केवल उत्तर प्रदेश की राजनीति में, बल्कि देशभर में भाजपा की भविष्य की दिशा को भी प्रभावित कर सकते हैं।