
उत्तर प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों का नए सिरे से होगा आकलन: घटते नामांकन वाले विद्यालय होंगे मर्ज, जर्जर भवनों का जल्द होगा ध्वस्तीकरण
लखनऊ 3 नवंबर। उत्तर प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में घटते नामांकन के कारण बच्चों की शिक्षा पर व्यापक असर हो रहा है। राज्य सरकार ने बच्चों के बेहतर भविष्य और शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से उन विद्यालयों का पास के बड़े विद्यालयों में संविलियन (मर्ज) कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, जहां नामांकन 50 से कम है। इसके अतिरिक्त, जर्जर विद्यालय भवनों का एक महीने के भीतर ध्वस्तीकरण करने का निर्देश भी जारी किया गया है। इस नई नीति के तहत परिषदीय विद्यालयों में मूलभूत सुविधाओं की उपलब्धता, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और एक सुरक्षित वातावरण का निर्माण सुनिश्चित किया जाएगा।
प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में संविलियन नीति का उद्देश्य
प्रदेश के शिक्षा विभाग का मानना है कि बच्चों की घटती संख्या से विद्यालय की उपयोगिता कम हो जाती है। खासकर ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में जहां विद्यालयों में बच्चों की संख्या कम हो जाती है, वहां शिक्षकों और संसाधनों की कमी और भी बढ़ जाती है। इस नीति के तहत 50 से कम नामांकन वाले विद्यालयों को पास के अन्य बड़े विद्यालयों में मर्ज किया जाएगा ताकि बच्चों को एक समृद्ध और प्रगतिशील शैक्षिक वातावरण मिल सके।
शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि प्रदेश में इस समय कुल बच्चों की संख्या लगभग 1.49 करोड़ है, लेकिन छोटे-छोटे विद्यालयों में बच्चों की उपस्थिति न्यूनतम रह गई है। प्रदेश के मंडलीय सहायक शिक्षा निदेशक और बेसिक शिक्षा अधिकारियों की हाल ही में आयोजित बैठक में यह जानकारी दी गई कि नामांकन घटने के कारण शिक्षा का स्तर गिरने का खतरा है और इसी को ध्यान में रखते हुए, राज्य सरकार ने संविलियन योजना को प्राथमिकता दी है।
जर्जर विद्यालय भवनों का ध्वस्तीकरण
प्रदेश में कई विद्यालय भवन ऐसे हैं, जो अत्यधिक जर्जर हो चुके हैं। शिक्षा विभाग के महानिदेशक कंचन वर्मा ने इस संदर्भ में जिला शिक्षा अधिकारियों को आदेश दिया है कि वे ऐसे भवनों का ध्वस्तीकरण सुनिश्चित करें, जहां सुरक्षा के लिहाज से भवन स्थायित्व की स्थिति में नहीं हैं। ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया का उद्देश्य यह है कि बच्चों को असुरक्षित भवनों में पढ़ाई के लिए न भेजा जाए और उन्हें किसी भी तरह के हादसे से बचाया जा सके।
ध्वस्तीकरण के साथ-साथ, विभाग यह भी सुनिश्चित कर रहा है कि जिन विद्यालय भवनों की मरम्मत की आवश्यकता है, वहां आवश्यक कार्रवाई की जाए। हालांकि, यदि विद्यालय में पर्याप्त संख्या में कक्षाएं सुरक्षित रूप से उपलब्ध हैं तो पुर्ननिर्माण का प्रस्ताव नहीं भेजा जाएगा। इसके बजाय, भवन के पुनर्विकास के लिए एक नई योजना बनाई जाएगी।
हर जिले में बनेगी एक संयुक्त रिपोर्ट बुकलेट
महानिदेशक कंचन वर्मा ने सभी जिलों के शिक्षा अधिकारियों को निर्देशित किया है कि 50 से कम नामांकन वाले विद्यालयों की एक संयुक्त रिपोर्ट बुकलेट तैयार करें। इस बुकलेट में प्रत्येक विद्यालय की संपूर्ण जानकारी होगी, जैसे कि विद्यालय की स्थिति, बच्चों की संख्या, भवन की संरचना, दूरी, सड़क और परिवहन सुविधाएं आदि। इसका उद्देश्य यह है कि इन विद्यालयों के संबंध में एक समग्र विश्लेषण किया जा सके और इसके आधार पर ही मर्ज करने का निर्णय लिया जा सके।
इस रिपोर्ट बुकलेट को 13-14 नवंबर को प्रस्तावित बेसिक शिक्षा अधिकारियों की बैठक में प्रस्तुत किया जाएगा, जहां परिषदीय विद्यालयों की स्थिति और भविष्य की योजनाओं पर विस्तार से चर्चा होगी।
संविलियन की प्राथमिकताएं और कार्ययोजना
संविलियन नीति के तहत हर जिले में यह सुनिश्चित किया जाएगा कि पास के विद्यालय में बच्चों को सुविधाजनक और सुरक्षित पहुंच मिल सके। इसके लिए शिक्षा विभाग प्रत्येक ग्राम पंचायत में मानक विद्यालय की उपस्थिति की जांच कर रहा है। इसके साथ ही इस बात पर ध्यान दिया जा रहा है कि किस विद्यालय को पास के अन्य विद्यालय में मर्ज किया जा सकता है।
संविलियन की प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने के लिए कार्ययोजना तैयार की जा रही है। इसमें विद्यालय से दूसरे विद्यालय तक जाने की दूरी, परिवहन की उपलब्धता, नहर, नाला, सड़क या हाइवे आदि का ध्यान रखा जा रहा है। इसका उद्देश्य यह है कि बच्चों के आने-जाने में कोई असुविधा न हो और उन्हें एक सुदृढ़ शिक्षा का वातावरण मिल सके।
डिजिटल अटेंडेंस और अन्य सुविधाएं
प्रदेश में परिषदीय विद्यालयों की डिजिटल सुविधाओं पर भी जोर दिया जा रहा है। महानिदेशक कंचन वर्मा ने शिक्षकों की उपस्थिति को सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल अटेंडेंस प्रणाली को और मजबूत बनाने के निर्देश दिए हैं। शिक्षकों की उपस्थिति छोड़कर, छात्रों की उपस्थिति और मिड-डे मील के संबंध में डिजिटल पंजिका पर जानकारी अपडेट की जाएगी।
यह देखा गया है कि अभी केवल कुछ जिलों, जैसे कि प्रयागराज, कौशांबी, भदोही, अलीगढ़, हापुड़, और बुलंदशहर में ही इस दिशा में कदम उठाए गए हैं। अब सभी जिलों में यह सुनिश्चित किया जाएगा कि डिजिटल पंजिका के माध्यम से सभी जानकारी उपलब्ध कराई जाए। इसका उद्देश्य यह है कि शिक्षा विभाग में पारदर्शिता बनी रहे और बच्चों को समय पर मिड-डे मील जैसी सुविधाएं प्राप्त हों।
केंद्र और राज्य सरकार की अपेक्षाएं
केंद्र सरकार ने शिक्षा को सुदृढ़ बनाने के लिए राज्य सरकारों को निर्देश दिए हैं कि स्कूलों को पूरी तरह से क्रियाशील और उपयोगी बनाया जाए। इसी क्रम में, केंद्र सरकार ने छोटे नामांकन वाले विद्यालयों का पास के अन्य बड़े विद्यालयों में मर्ज करने की सिफारिश की है। इसका उद्देश्य यह है कि सभी बच्चे एक व्यवस्थित और सुविधाजनक शिक्षा व्यवस्था का लाभ उठा सकें।
प्रदेश सरकार ने केंद्र के निर्देशों का पालन करते हुए, राज्य में शिक्षा व्यवस्था को और अधिक सुदृढ़ बनाने का संकल्प लिया है। इसके तहत शिक्षा विभाग ने एक व्यापक योजना बनाई है, जिसमें बच्चों के लिए बेहतर वातावरण तैयार करने, अध्यापकों की उपस्थिति सुनिश्चित करने और सभी आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराने पर जोर दिया गया है।
संविलियन से होने वाले लाभ
सरकार का मानना है कि संविलियन प्रक्रिया से बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का लाभ मिलेगा। छोटे विद्यालयों में बच्चों की संख्या कम होने के कारण, शिक्षण का स्तर प्रभावित होता है और संसाधनों की कमी भी महसूस होती है। जब इन छोटे विद्यालयों का मर्ज किया जाएगा, तो शिक्षकों और संसाधनों का उचित प्रबंधन हो सकेगा।
इस प्रक्रिया से सरकारी विद्यालयों में गुणवत्ता युक्त शिक्षा का संचार होगा और विद्यार्थियों को बेहतर सुविधाएं मिल सकेंगी। इसके अतिरिक्त, अध्यापक भी एक बड़े समूह में पढ़ा सकेंगे जिससे उनकी शिक्षण गुणवत्ता में भी सुधार आएगा।
ग्रामीण शिक्षा को बढ़ावा
इस योजना के तहत विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है। अधिकतर ग्रामीण विद्यालयों में नामांकन संख्या में कमी देखी गई है, जिससे इन क्षेत्रों में शिक्षा का स्तर घटा है। संविलियन प्रक्रिया के माध्यम से इन विद्यालयों को एक व्यवस्थित और सुविधाजनक वातावरण में तब्दील किया जाएगा।
ग्रामीण क्षेत्रों में जहां बच्चों को विद्यालय तक पहुंचने में कठिनाई होती है, वहां स्कूलों का मर्ज करके यह सुनिश्चित किया जाएगा कि बच्चों को एक स्थिर और सुविधाजनक शैक्षणिक वातावरण मिले। इसके अतिरिक्त, ग्रामीण इलाकों में जर्जर भवनों को ध्वस्त करके बच्चों की सुरक्षा का भी ध्यान रखा जा रहा है।
संविलियन प्रक्रिया का दीर्घकालिक प्रभाव
संविलियन की यह नीति केवल एक तात्कालिक कदम नहीं है बल्कि इसका दीर्घकालिक प्रभाव भी होगा। इससे न केवल बच्चों को शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार मिलेगा, बल्कि सरकारी संसाधनों का भी बेहतर उपयोग हो सकेगा।
अधिकांश छोटे विद्यालयों में केवल एक या दो शिक्षक होते हैं, जिससे पढ़ाई का स्तर प्रभावित होता है। मर्ज प्रक्रिया से अब अधिक शिक्षकों की उपस्थिति संभव होगी और विद्यार्थियों को एक बेहतर वातावरण मिलेगा।
प्रदेश सरकार की यह नीति न केवल बच्चों के लिए एक बेहतर भविष्य का निर्माण करेगी बल्कि शिक्षा व्यवस्था को भी एक नई दिशा प्रदान करेगी। नामांकन घटते विद्यालयों का पास के विद्यालयों में मर्ज और जर्जर भवनों का ध्वस्तीकरण शिक्षा के क्षेत्र में एक सकारात्मक बदलाव है। इससे बच्चों को सुविधाजनक, सुरक्षित और गुणवत्ता युक्त शिक्षा का अवसर मिलेगा।
प्रदेश की इस नई शिक्षा नीति से यह स्पष्ट है कि सरकार बच्चों के भविष्य के प्रति संजीदा है और शिक्षा के हर क्षेत्र में सुधार के लिए तत्पर है।