
बहराइच, 10 अक्टूबर। कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य का इलाका एक बार फिर से तेंदुए की उपस्थिति से सुर्खियों में आ गया है। ग्राम पंचायत बेझा, जो ककरहा रेंज के अंतर्गत आता है, वहां देर रात वन विभाग के पिंजरे में एक तेंदुआ कैद हुआ। यह तेंदुआ ग्रामीण इलाकों में काफी समय से दहशत फैला रहा था, जिससे स्थानीय लोगों में खौफ का माहौल बना हुआ था। इस घटना से पहले भी इसी इलाके से दो तेंदुए वन विभाग के पिंजरों में कैद किए जा चुके हैं। इस तेंदुए को स्वास्थ्य परीक्षण के बाद जंगल में वापस छोड़ने की योजना है।
तेंदुए के पकड़े जाने की पूरी घटना
कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य अपने घने जंगलों और विविध वन्यजीवों के लिए जाना जाता है। तेंदुए इस क्षेत्र के प्राकृतिक पर्यावरण का हिस्सा हैं, लेकिन हाल के वर्षों में बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्षों के कारण इनका रिहायशी इलाकों में आना-जाना बढ़ गया है।
ग्राम पंचायत बेझा के लोग पिछले कुछ दिनों से इस तेंदुए की गतिविधियों को देख रहे थे। तेंदुआ गांव के आस-पास के खेतों और जंगलों में घूमता नजर आता था, जिससे ग्रामीणों में भय का माहौल था। कई लोग अपनी जान-माल की सुरक्षा को लेकर चिंतित थे, क्योंकि तेंदुआ रात के समय ग्रामीण इलाकों में प्रवेश कर रहा था।
पिछले कुछ हफ्तों में तेंदुए की वजह से मवेशियों के मरने की घटनाएँ भी सामने आईं थीं। वन विभाग को ग्रामीणों से लगातार शिकायतें मिल रही थीं कि तेंदुआ उनके पालतू जानवरों पर हमला कर रहा है। इसके बाद वन विभाग ने इलाके में तेंदुए को पकड़ने के लिए पिंजरा लगाने का निर्णय लिया।
कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य के वन अधिकारियों ने तुरंत कार्रवाई करते हुए ककरहा रेंज के ग्राम पंचायत बेझा में पिंजरा स्थापित किया। यह पिंजरा तेंदुए के संभावित आने-जाने के रास्तों पर लगाया गया था। पिंजरे में मांस का लालच देकर तेंदुए को फंसाने की योजना बनाई गई थी।
इस पिंजरे को पिछले कुछ दिनों से ध्यानपूर्वक मॉनिटर किया जा रहा था, और देर रात लगभग 3 बजे तेंदुआ पिंजरे में फंस गया। वन अधिकारियों ने इसकी सूचना तुरंत ग्रामीणों को दी, जिसके बाद गांव में खुशी और राहत का माहौल था। तेंदुए के पकड़े जाने से ग्रामीणों की जान-माल की सुरक्षा को लेकर चिंता कम हो गई है।
यह पहली बार नहीं है जब बेझा गांव में तेंदुआ पिंजरे में फंसा है। इससे पहले भी इसी स्थान से दो तेंदुए पकड़े जा चुके हैं। यह क्षेत्र तेंदुओं के प्राकृतिक आवास के करीब है, और इसलिए इस इलाके में तेंदुओं की उपस्थिति आम है।
वन अधिकारियों के अनुसार, मानव-वन्यजीव संघर्ष के पीछे मुख्य कारण जंगलों का सिकुड़ना और तेंदुओं का अपने प्राकृतिक आवास से बाहर आना है। तेंदुए अपने शिकार की तलाश में अक्सर गांवों के पास आ जाते हैं, जिससे ऐसी घटनाएँ बढ़ जाती हैं।
तेंदुए को पकड़ने के बाद वन विभाग के अधिकारियों ने उसे कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य के मुख्यालय ले जाया, जहां उसका स्वास्थ्य परीक्षण किया जाएगा। वन विभाग के पशु चिकित्सा विशेषज्ञ तेंदुए की शारीरिक स्थिति की जांच करेंगे। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि तेंदुआ स्वस्थ है और उसे वापस जंगल में छोड़ा जा सकता है।
पकड़े गए तेंदुए का स्वास्थ्य परीक्षण जरूरी होता है क्योंकि कई बार तेंदुए घायल होते हैं या बीमारी से ग्रस्त हो सकते हैं। अगर तेंदुआ स्वस्थ पाया जाता है, तो उसे जंगल में छोड़ दिया जाएगा, ताकि वह अपने प्राकृतिक आवास में वापस जा सके और पर्यावरण के संतुलन को बनाए रख सके।
तेंदुए के पकड़े जाने के बाद बेझा गांव के लोगों में खुशी का माहौल है। पिछले कुछ दिनों से तेंदुए की वजह से गांव के लोग डरे हुए थे, खासकर रात के समय जब तेंदुआ गांव के पास घूमता था। मवेशियों की मौत और तेंदुए की मौजूदगी ने ग्रामीणों को असुरक्षित महसूस कराया था। लेकिन अब तेंदुए के पकड़े जाने से ग्रामीण राहत महसूस कर रहे हैं।
ग्राम पंचायत बेझा के प्रधान ने वन विभाग की त्वरित कार्रवाई की सराहना की। उन्होंने कहा, “हमारे गांव में तेंदुए की उपस्थिति ने हम सभी को बहुत परेशान कर रखा था। हमने वन विभाग को इस बारे में कई बार सूचित किया था, और हमें खुशी है कि उन्होंने हमारी समस्या को गंभीरता से लिया और तेंदुए को सुरक्षित रूप से पकड़ लिया। अब हम रात में चैन की नींद सो सकेंगे।”
कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य के आसपास के इलाकों में तेंदुओं के इंसानी बस्तियों में आने की घटनाएँ लगातार बढ़ रही हैं। इसका मुख्य कारण जंगलों का सिकुड़ना और वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास में मानवीय हस्तक्षेप है।
वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि तेंदुओं के आवास स्थलों में हो रहे अतिक्रमण से वे भोजन की तलाश में इंसानी बस्तियों का रुख कर रहे हैं। तेंदुए स्वाभाविक रूप से शर्मीले जीव होते हैं और इंसानों से दूर रहना पसंद करते हैं, लेकिन जब उनके पास शिकार के विकल्प कम हो जाते हैं, तो वे इंसानी बस्तियों के पास आ जाते हैं।
पिछले कुछ वर्षों में बहराइच जिले और आसपास के इलाकों में तेंदुओं के हमलों की घटनाएँ बढ़ी हैं। इस तरह की घटनाएँ मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष का एक बड़ा उदाहरण हैं, और यह न केवल जानवरों के लिए बल्कि इंसानों के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है।
कतर्नियाघाट वन विभाग के अधिकारियों के सामने तेंदुओं की बढ़ती संख्या और उनके इंसानी बस्तियों में घुसने की समस्या बड़ी चुनौती बन गई है। वन विभाग लगातार ऐसी घटनाओं पर नजर रख रहा है और तेंदुओं को पकड़ने के लिए पिंजरे और ट्रैप कैमरों का उपयोग कर रहा है।
वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि तेंदुओं के पकड़े जाने के बाद उन्हें जंगल में छोड़ने के लिए विशेष योजनाएँ बनाई जा रही हैं। इसके अलावा, तेंदुओं के प्राकृतिक आवास को सुरक्षित रखने के लिए वन संरक्षण के प्रयासों को भी बढ़ाया जा रहा है।
वन अधिकारियों ने बताया कि तेंदुओं के संरक्षण के लिए जागरूकता अभियानों की भी जरूरत है, ताकि ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग तेंदुओं के व्यवहार को समझ सकें और उनके साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की दिशा में कदम उठा सकें।
तेंदुए के पकड़े जाने के बावजूद वन विभाग ने ग्रामीणों को सतर्क रहने की सलाह दी है। तेंदुए का इलाका होने के कारण भविष्य में भी इस तरह की घटनाएँ हो सकती हैं। वन विभाग ने ग्रामीणों से अपील की है कि वे रात के समय अकेले बाहर न निकलें और अपने पशुओं को सुरक्षित स्थानों पर रखें।
वन विभाग के अधिकारियों ने कहा है कि ग्रामीणों को तेंदुओं से निपटने के तरीकों के बारे में जागरूक किया जाएगा। इसके अलावा, वन विभाग लगातार इस इलाके की निगरानी करता रहेगा और किसी भी संभावित खतरे की स्थिति में तुरंत कार्रवाई करेगा।
कतर्नियाघाट के ककरहा रेंज में तेंदुए का फिर से पिंजरे में कैद होना एक महत्वपूर्ण घटना है, जो मानव और वन्यजीवों के बीच बढ़ते संघर्ष को उजागर करती है। हालांकि वन विभाग की त्वरित कार्रवाई से गांववालों ने राहत की सांस ली है, लेकिन यह घटना पर्यावरण और वन्यजीव संरक्षण की दिशा में और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता को भी इंगित करती है।
वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास की रक्षा, वन संरक्षण और ग्रामीणों में जागरूकता बढ़ाने से ही इस संघर्ष को कम किया जा सकता है। तेंदुओं के लिए सुरक्षित जंगल और इंसानों के लिए सुरक्षित गांव, यही दोनों के सह-अस्तित्व का समाधान हो सकता है।