
नई दिल्ली 2 नवंबर। गोवर्धन पूजा, जिसे अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है जो दिवाली के अगले दिन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर मनाया जाता है। इस पर्व के साथ एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है जिसमें भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोकुल वासियों की रक्षा का वर्णन किया गया है। गोवर्धन पूजा का उद्देश्य प्रकृति और मानवता के बीच अटूट संबंध को समझना और धरती मां तथा प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान करना है। आइए इस पर्व के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत रूप से चर्चा करते हैं।
गोवर्धन पूजा की तिथि और महत्व
गोवर्धन पूजा हर साल दिवाली के अगले दिन मनाई जाती है। इस बार, 2024 में यह पर्व 2 नवंबर को मनाया जा रहा है। इसे परेवा के नाम से भी जाना जाता है, खासतौर पर उत्तर भारत में, जहां यह श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से जुड़ा हुआ है। वहीं, गुजरात जैसे पश्चिमी भारत के कुछ हिस्सों में गोवर्धन पूजा का दिन गुजराती नववर्ष की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है।
गोवर्धन पूजा का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इस दिन लोग गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं, जो प्रकृति के प्रतीक के रूप में स्थापित है। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत को उठाने की घटना एक संदेश देती है कि हमें अपनी सुरक्षा और खुशहाली के लिए प्रकृति पर निर्भर रहना चाहिए और उसकी रक्षा करनी चाहिए।
गोवर्धन पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा
हिंदू पुराणों के अनुसार, एक बार देवराज इंद्र ने अपने अहंकार में आकर गोकुल में भयंकर वर्षा की थी। गोकुल वासी इस अनियंत्रित बारिश से बेहद परेशान हो गए और उनके आश्रय के लिए कोई उपाय नहीं बचा। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और सभी गोकुल वासियों को वर्षा से बचाया। इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने न केवल गोकुल वासियों को बचाया, बल्कि यह संदेश भी दिया कि प्रकृति की शक्ति, हमारे जीवन में कितनी महत्वपूर्ण है।
यह घटना न केवल श्रीकृष्ण की शक्ति का प्रदर्शन करती है, बल्कि यह बताती है कि मानव जीवन का पृथ्वी और प्रकृति के साथ गहरा संबंध है। गोवर्धन पर्वत की घास और वनस्पतियाँ पशुधन के लिए आहार का मुख्य स्रोत थीं, और श्रीकृष्ण ने इस घटना के माध्यम से हमें प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करना सिखाया। यह पर्वत सालों से गोकुलवासियों को प्राकृतिक आपदाओं से बचाता रहा और इसने एक बार फिर श्रीकृष्ण के प्रयासों से सभी को सुरक्षित किया।
अन्नकूट का महत्व और उत्सव की विधि
गोवर्धन पूजा को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन विभिन्न प्रकार के पकवान बनाकर गोवर्धन पर्वत को समर्पित किए जाते हैं। ‘अन्नकूट’ का अर्थ है ‘भोजन का पहाड़,’ जिसमें कई तरह की सब्जियाँ, कढ़ी, चावल, पूड़ी, रोटी, खिचड़ी, बाजरे का हलवा और अन्य पकवान बनाकर पर्वत की पूजा की जाती है। इसे छप्पन भोग का रूप दिया जाता है, जिसमें 56 तरह के भोग अर्पित किए जाते हैं।
अन्नकूट में लोग सामूहिक रूप से भोजन बनाते हैं और इसे गोवर्धन पर्वत के प्रतीक के रूप में बनाए गए ढेर पर चढ़ाते हैं। फिर इस भोजन को प्रसाद के रूप में सभी में बांटा जाता है। यह आयोजन सामूहिकता और सहयोग का प्रतीक है, जिसमें हर व्यक्ति अपनी भूमिका निभाता है और एक साथ मिलकर भगवान को अर्पण करता है।
गोवर्धन पूजा के दौरान विशेष पूजा अनुष्ठान
इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा के साथ-साथ गाय, बछड़ों और गोबर के प्रतीक स्वरूप पर्वत का निर्माण किया जाता है। घरों के आंगन में गोबर से गोवर्धन का प्रतीक बनाकर उसकी पूजा की जाती है। इस पर्व में भगवान श्रीकृष्ण के साथ साथ गायों और बैलों का भी पूजा का विधान है। गोबर को हिंदू धर्म में अत्यधिक पवित्र माना गया है, और इसे घर के आंगन में रखना शुभ माना जाता है। लोग गोबर के पर्वत के चारों ओर परिक्रमा करते हैं और विभिन्न प्रकार के पकवान अर्पित करते हैं।
गोवर्धन पूजा का सांस्कृतिक और पर्यावरणीय संदेश
गोवर्धन पूजा का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण के प्रति सम्मान और आभार प्रकट करना है। इस पर्व के माध्यम से हमें यह संदेश मिलता है कि मानव और प्रकृति का अटूट संबंध है, और हमें इसका संरक्षण करना चाहिए। गोवर्धन पर्वत के प्रति आभार व्यक्त करने के पीछे यह भाव छिपा है कि हमें अपने आस-पास की प्राकृतिक संपदाओं का ध्यान रखना चाहिए और उनका शोषण नहीं करना चाहिए।
आधुनिक समय में जब प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याएँ तेजी से बढ़ रही हैं, तब यह पर्व हमें प्रकृति के संरक्षण का संदेश देता है। यह पर्व हमारी अगली पीढ़ी को भी सिखाता है कि वे प्राकृतिक संसाधनों का सही ढंग से उपयोग करें और उन्हें संभाल कर रखें। गोवर्धन पूजा के माध्यम से हम यह समझते हैं कि प्रकृति का हमारे जीवन में कितना गहरा और महत्वपूर्ण योगदान है।
गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा का महत्व
गोवर्धन पूजा के दिन गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा का भी विशेष महत्व है। मथुरा और वृंदावन के निकट स्थित गोवर्धन पर्वत के चारों ओर लोग परिक्रमा करते हैं। मान्यता है कि परिक्रमा करने से भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है और सभी प्रकार के संकट दूर होते हैं।
गोवर्धन परिक्रमा में लगभग 21 किलोमीटर का रास्ता तय करना होता है और इसे पैदल, कंधों पर देवताओं की पालकी लेकर या कुछ भक्त इसे लेटकर पूरी करते हैं। इस यात्रा में श्रद्धालु भगवान से आशीर्वाद मांगते हैं और गोवर्धन पर्वत की महिमा का गुणगान करते हैं।
गोवर्धन पूजा के प्रसाद का वितरण
गोवर्धन पूजा के बाद सभी लोगों के बीच प्रसाद का वितरण होता है। यह प्रसाद अन्नकूट के रूप में तैयार किया गया भोजन होता है। इस प्रसाद को वितरित करने का उद्देश्य केवल भक्ति ही नहीं, बल्कि समाज में सहयोग और सामूहिकता की भावना को बढ़ावा देना भी है। सभी लोग मिलकर इस भोजन का आनंद लेते हैं और पर्व की खुशी को आपस में बाँटते हैं।
गोवर्धन पूजा का आधुनिक परिप्रेक्ष्य
आज के समय में, जब पर्यावरणीय संकट और संसाधनों की कमी एक गंभीर समस्या बन चुकी है, गोवर्धन पूजा का संदेश और भी प्रासंगिक हो जाता है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि हमें अपने पर्यावरण की सुरक्षा करनी चाहिए और उसकी देखभाल करनी चाहिए। गोवर्धन पर्वत का प्रतीक, जो हमें सहनशीलता, सेवा, और सहयोग का संदेश देता है, हमें प्रेरित करता है कि हम प्रकृति के साथ संतुलित जीवन जिएं और अपने आस-पास की चीजों को संजो कर रखें।
गोवर्धन पूजा का उत्सव न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह एक ऐसा समय भी है जब हम अपने समाज और प्रकृति के प्रति अपने कर्तव्यों को पहचान सकते हैं। इस पर्व का मुख्य संदेश यही है कि हमें प्रकृति का आदर करना चाहिए और उसकी रक्षा करनी चाहिए, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियाँ भी इस धरती पर सुखी और समृद्ध जीवन जी सकें।