
लखनऊ/फतेहपुर। उत्तर प्रदेश सरकार के लेखा विभाग में एक हैरान कर देने वाली चूक ने सरकारी सिस्टम की गंभीर खामियों और संवेदनहीनता को उजागर कर दिया है। हाल ही में जारी लेखाकारों के स्थानांतरण आदेश में ऐसा नाम भी शामिल कर दिया गया जो दो वर्ष पहले ही इस दुनिया को अलविदा कह चुका है। क्रम संख्या 155 पर दर्ज लेखाकार चारुल पांडेय का तबादला एओ बेसिक, फतेहपुर के पद पर किया गया है, जबकि संबंधित कर्मचारी की मृत्यु की पुष्टि वर्ष 2022 में ही हो चुकी थी।
यह प्रशासनिक चूक जितनी हास्यास्पद है, उतनी ही चिंताजनक भी। सवाल यह है कि दो साल पहले मर चुके एक कर्मचारी को तबादले का आदेश किस आधार पर जारी किया गया? और उससे भी बड़ा प्रश्न—क्या सरकारी विभागों में कर्मचारियों का सेवा रिकॉर्ड, मृत्यु सूचना, और पेंशन दस्तावेज तक अपडेट नहीं किए जाते?
मृत्यु के बाद भी सेवा में?
चारुल पांडेय का नाम जिस प्रकार से स्थानांतरण सूची में प्रकाशित किया गया, वह दर्शाता है कि शासन स्तर पर न तो कर्मियों के जीवन-स्थिति का अद्यतन रिकॉर्ड रखा जा रहा है और न ही विभागीय फाइलों का कोई मानवीय परीक्षण हो रहा है। सूत्रों के अनुसार, चारुल पांडेय की मृत्यु वर्ष 2022 में एक लंबी बीमारी के बाद हो गई थी। उनके निधन के बाद परिवार ने मृत्यु प्रमाण पत्र, सेवा समाप्ति की सूचना और पेंशन की फाइल भी संबंधित विभाग में प्रस्तुत की थी। इसके बावजूद उनका नाम “सेवा में कार्यरत” कर्मचारियों की सूची में बना रहा।
डिजिटल इंडिया का मज़ाक या डेटा की दुर्दशा?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘डिजिटल इंडिया’ अभियान के अंतर्गत देशभर में सरकारी फाइलों के डिजिटलीकरण और कर्मचारियों का एकीकृत डेटा बेस बनाने की पहल की गई थी। लेकिन यह घटना दर्शाती है कि उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य में न तो ये प्रयास ज़मीनी स्तर पर प्रभावी हो पाए हैं और न ही संबंधित विभागों को टेक्नोलॉजी से जोड़ने की वास्तविक इच्छाशक्ति है।
जब चारुल पांडेय जैसे कर्मचारी—जो वर्षों पहले इस दुनिया को छोड़ चुके—का नाम ट्रांसफर लिस्ट में आ सकता है, तो यह प्रशासनिक व्यवस्था की उस असफलता का जीवंत प्रमाण है जिसे “फाइलों में दफन सच” कहा जाता है।
शोक का विषय बना मज़ाक
इस स्थानांतरण आदेश के वायरल होते ही सोशल मीडिया पर लोगों ने इसे “स्वर्ग में ट्रांसफर” बताते हुए व्यंग्य और आलोचना दोनों शुरू कर दी। एक यूजर ने लिखा, “अब कौन जाएगा ट्रांसफर ऑर्डर लेकर स्वर्ग? और क्या वो डाकिया लौटकर आएगा?” जबकि दूसरे ने कहा, “सरकारी तंत्र में मृतक भी कार्यरत पाए जा सकते हैं, तभी तो उन्हें फतेहपुर भेजा जा रहा है।”
इस मामले ने शोक को मज़ाक में बदल डाला है। चारुल पांडेय के परिजन भी स्तब्ध हैं। उनका कहना है कि जब विभाग में मृत्यु सूचना समय पर दी गई थी, तब इस तरह की चूक न केवल प्रशासनिक लापरवाही है बल्कि परिवार की संवेदनाओं का भी अपमान है।
क्या है विभागीय प्रतिक्रिया?
जब यह मामला तूल पकड़ने लगा, तो संबंधित विभाग ने शुरू में इसे “टाइपिंग एरर” कहकर टालने की कोशिश की। लेकिन मीडिया में खबर के व्यापक प्रसार के बाद सूत्रों से पता चला कि इस तरह की ग़लती पहली बार नहीं हुई है। कई बार सेवानिवृत्त या मृतक कर्मियों के नाम गलत तरीके से चालान या सेवा पुस्तिका में दर्शाए जाते रहे हैं।
वित्त और लेखा निदेशालय लखनऊ के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि, “यह विभागीय स्तर पर डाटा न अपडेट करने का मामला है। जिम्मेदार क्लर्क और सिस्टम ऑपरेटर से स्पष्टीकरण मांगा गया है।”
लेखाकार संघ ने जताया आक्रोश
उत्तर प्रदेश लेखाकार संघ ने इस मामले को लेकर कड़ा विरोध दर्ज किया है। संघ के प्रदेश अध्यक्ष ने एक बयान में कहा कि, “यह कोई छोटी चूक नहीं है। यह पूरे विभागीय सिस्टम की विफलता का प्रमाण है। मृतक के परिजनों के लिए यह खबर न केवल विचलित करने वाली है, बल्कि यह इस बात का संकेत भी है कि हमारा प्रशासन कितना अमानवीय होता जा रहा है।”
संघ ने मांग की है कि इस मामले की उच्चस्तरीय जांच कर दोषी कर्मचारियों और अधिकारियों के विरुद्ध कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।
व्यवस्था की पोल खोलती घटनाएं
यह घटना उस iceberg का एक सिरा है जिसके नीचे वर्षों से जमा हुई सरकारी उदासीनता और अकर्मण्यता की मोटी परतें हैं। डिजिटल सेवा पुस्तिका, मानव संसाधन प्रबंधन प्रणाली (HRMS) और विभागीय डाटाबेस का उद्देश्य ही यह होता है कि कर्मचारी की सेवा स्थिति का सटीक विवरण उपलब्ध रहे। लेकिन जब दो साल पूर्व मृत कर्मचारी को तबादले का आदेश भेजा जाता है, तो यह तंत्र की क्रूर विफलता का सार्वजनिक दस्तावेज बन जाता है।
सवाल कई हैं, जवाबदेही कोई नहीं
- चारुल पांडेय का नाम अब तक सेवा रिकॉर्ड में कैसे था?
- मृत्यु के बाद विभागीय सिस्टम में अपडेट क्यों नहीं हुआ?
- क्या यह एक मात्र मामला है, या और भी मृतक कर्मी सूची में दर्ज हैं?
- विभागीय अधिकारियों ने स्थानांतरण सूची तैयार करते समय डेटा की समीक्षा क्यों नहीं की?
- क्या यह घटना जनपद स्तर की चूक है या निदेशालय स्तर की?
इन तमाम सवालों के उत्तर न तो अब तक शासन ने दिए हैं और न ही संबंधित निदेशालय ने कोई औपचारिक प्रेस बयान जारी किया है।
अब क्या होगा आगे?
चारुल पांडेय का तबादला आदेश वापिस लिया गया है, लेकिन सिर्फ इतना काफी नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक पूरे विभागीय ढांचे की पुनः समीक्षा नहीं की जाती, और कर्मचारियों के डाटाबेस को हर साल नियमित रूप से अपडेट नहीं किया जाता, तब तक इस तरह की घटनाएं दोहराई जाती रहेंगी। सरकार को चाहिए कि मृतक कर्मचारियों का डेटा हटाने की प्रक्रिया को तेज किया जाए और इसे फाइलों की धूल में न छोड़ा जाए।
चूक से सीख बननी चाहिए
सरकारी व्यवस्था में एक मृत व्यक्ति को स्थानांतरित किया जाना हास्य की तरह लग सकता है, लेकिन यह उस प्रशासनिक मानसिकता का प्रतीक है जहां मानवीय संवेदनाएं आंकड़ों के नीचे दब जाती हैं। यदि ऐसे मामलों पर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो यह व्यवस्था अपनी साख और विश्वास दोनों खो बैठेगी।
सरकार को चाहिए कि वह इस घटना को “सिर्फ गलती” न माने बल्कि इसे पूरे सिस्टम को दुरुस्त करने के लिए एक चेतावनी मानते हुए व्यापक सुधार शुरू करे।