

सिनर्जी कैंसर इंस्टीट्यूट और सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल, गोरखपुर
लखनऊ 25 अक्टूबर। स्तन कैंसर भारत सहित दुनिया भर में महिलाओं में सबसे आम प्रकार का कैंसर है, और भारत के सभी राज्यों में इसकी दर तेजी से बढ़ रही है। विशेष रूप से कर्नाटक जैसे राज्य में, 2023 में स्तन कैंसर के नए मामलों और इससे होने वाली मौतों में काफी वृद्धि देखी गई है। कर्नाटक में लगभग 14,484 नए स्तन कैंसर के मामले दर्ज किए गए, और 5,388 स्तन कैंसर से संबंधित मौतें भी हुईं। यह वृद्धि केवल कर्नाटक तक सीमित नहीं है, बल्कि देश के हर हिस्से में स्तन कैंसर के मामलों में वृद्धि देखी जा रही है।
स्तन कैंसर की इस बढ़ती दर का सबसे बड़ा कारण समाज में इस रोग को लेकर जागरूकता की कमी है। जब तक स्तन कैंसर के बारे में व्यापक जागरूकता नहीं फैलाई जाएगी, तब तक इस रोग की बढ़ती प्रवृत्ति को रोक पाना मुश्किल होगा। हालांकि, यह जानना भी जरूरी है कि स्तन कैंसर केवल महिलाओं तक सीमित नहीं है। पुरुषों में स्तन कैंसर के मामले बहुत कम होते हैं, लेकिन फिर भी सभी स्तन कैंसर के मामलों का लगभग 0.5-1% पुरुषों में होता है। हालांकि यह प्रतिशत बहुत कम है, लेकिन यह दिखाता है कि स्तन कैंसर पुरुषों में भी हो सकता है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
स्तन कैंसर के जोखिम कारक
स्तन कैंसर के जोखिम कारकों को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है: परिवर्तनीय और गैर-परिवर्तनीय।
गैर-परिवर्तनीय जोखिम कारकों में 50 वर्ष से अधिक आयु, आनुवंशिक कारक और पारिवारिक इतिहास शामिल हैं। इन कारकों को बदला नहीं जा सकता, लेकिन यह जानना आवश्यक है कि 50 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं में भी स्तन कैंसर की दर बढ़ रही है। इसका कारण कई बार हमारे समाज में हो रहे बदलाव होते हैं, जैसे कि देरी से शादी और देरी से बच्चे का जन्म।
मोटापा, शराब का सेवन, हार्मोनल प्रिस्क्रिप्शन का सेवन, स्तनपान का अभाव, और मासिक धर्म की उम्र जैसे कारक भी स्तन कैंसर के जोखिम को बढ़ा सकते हैं। उदाहरण के लिए, 35 वर्ष की आयु के बाद बच्चे के जन्म में देरी से स्तन कैंसर का खतरा बढ़ सकता है, जबकि 12 वर्ष की आयु से पहले मासिक धर्म शुरू होने से भी स्तन कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है। इन कारकों को समय पर पहचाना जाना और उचित कदम उठाना आवश्यक है।
स्तन कैंसर के लक्षण
स्तन कैंसर के लक्षणों को जानना भी जरूरी है ताकि समय पर इसकी पहचान की जा सके। स्तन में या बगल में दर्द रहित या दर्दनाक गांठ, स्तन के आकार में परिवर्तन, स्तन की त्वचा पर डिंपलिंग या मोटा होना, निप्पल से खून आना और निप्पल का उल्टा होना जैसे लक्षण स्तन कैंसर के संकेत हो सकते हैं। यदि इनमें से कोई भी लक्षण दिखे, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। प्रारंभिक अवस्था में कैंसर का पता लगने से इलाज की संभावना अधिक होती है।
स्तन कैंसर की जांच
स्तन कैंसर की जांच एक महत्वपूर्ण कदम है जो हर महिला के लिए 40 वर्ष की आयु से शुरू होनी चाहिए। हालांकि, जिन महिलाओं में पारिवारिक इतिहास या अन्य उच्च जोखिम वाले कारक होते हैं, उनके लिए जांच पहले भी शुरू की जा सकती है।
क्लिनिकल स्तन जांच और नियमित अंतराल पर स्व-स्तन जांच, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां मैमोग्राफी तक पहुंच सीमित हो सकती है, प्रभावी जांच उपकरण साबित हुए हैं। इन तरीकों का उपयोग करके उन देशों में जहां स्तन कैंसर की मृत्यु दर अधिक है, वहां के आंकड़ों में सुधार देखा गया है।
मैमोग्राफी और अन्य स्क्रीनिंग विधियां
मैमोग्राम स्तन कैंसर की जांच के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाला और प्रभावी उपकरण है। इसमें स्तन के ऊतकों को एक्स-रे द्वारा जांचा जाता है, जो स्तन के अंदर किसी भी असामान्य वृद्धि को दिखा सकता है। इस प्रक्रिया में कम खुराक वाले एक्स-रे का उपयोग किया जाता है और यह दर्द रहित होती है।
सोनो मैमोग्राम और अल्ट्रासाउंड का उपयोग तब किया जाता है जब मैमोग्राम के दौरान कोई असामान्यता पाई जाती है। ये दोनों विधियां एक-दूसरे के पूरक होते हैं और स्तन कैंसर की जांच में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
एमआरआई ब्रेस्ट का उपयोग उन रोगियों में किया जाता है जिनमें स्तन कैंसर विकसित होने का अधिक जोखिम होता है। यह विधि विशेष रूप से उन महिलाओं के लिए फायदेमंद होती है, जिनके पारिवारिक इतिहास में स्तन कैंसर होता है या जिनके स्तनों में घने ऊतक होते हैं।
स्तन कैंसर से बचाव के उपाय
हालांकि स्तन कैंसर के कुछ जोखिम कारकों को बदला नहीं जा सकता, फिर भी कुछ उपाय अपनाकर इसके जोखिम को कम किया जा सकता है। स्वस्थ आहार लेना, स्वस्थ वजन बनाए रखना, शारीरिक रूप से सक्रिय रहना, धूम्रपान और शराब का सेवन न करना, और पर्याप्त अवधि तक स्तनपान कराना ऐसे कुछ उपाय हैं जो स्तन कैंसर के जोखिम को कम कर सकते हैं।
हार्मोन थेरेपी से बचना भी एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि इससे स्तन कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। स्तन कैंसर की स्क्रीनिंग और नियमित जांच से इसे शुरुआती अवस्था में पहचाना जा सकता है, जिससे इसका इलाज जल्दी शुरू किया जा सकता है और कठोर उपचार की आवश्यकता कम हो सकती है।
जागरूकता की आवश्यकता
भारत जैसे देश में, जहां स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच अभी भी कई लोगों के लिए एक चुनौती है, जागरूकता फैलाना बहुत जरूरी है। ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में स्तन कैंसर की जांच की पहुंच सीमित है, और वहां की महिलाएं इस रोग के बारे में कम जानकारी रखती हैं।
सरकार और गैर-सरकारी संगठनों को मिलकर काम करना चाहिए ताकि इन क्षेत्रों में स्तन कैंसर के बारे में जागरूकता फैलाई जा सके। विभिन्न स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन, जागरूकता कार्यक्रम और मुफ्त जांच अभियान से इस दिशा में महत्वपूर्ण सुधार किया जा सकता है।
साथ ही, पुरुषों को भी यह समझना चाहिए कि स्तन कैंसर केवल महिलाओं तक सीमित नहीं है। उन्हें भी इसके लक्षणों को पहचानना और इसके बारे में जागरूक होना चाहिए ताकि यदि वे या उनके परिवार में कोई इस बीमारी का शिकार हो, तो समय रहते उसका उपचार हो सके।
चिकित्सक विशेष
स्तन कैंसर के खिलाफ लड़ाई में प्रारंभिक पहचान और समय पर इलाज सबसे महत्वपूर्ण कारक हैं। हमें समाज में इस बीमारी के प्रति जागरूकता फैलानी होगी ताकि अधिक से अधिक लोग समय रहते इसकी जांच करवा सकें और इसके इलाज के लिए उचित कदम उठा सकें। हर महिला और पुरुष को नियमित जांच करवानी चाहिए और किसी भी संदिग्ध लक्षण के दिखने पर डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। जागरूकता, जांच और स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर हम स्तन कैंसर की दर को कम कर सकते हैं और इससे होने वाली मौतों को रोका जा सकता है। स्तन कैंसर के खिलाफ यह लड़ाई तभी जीती जा सकती है जब समाज का हर व्यक्ति इसके प्रति जागरूक हो और अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए इस दिशा में कदम उठाए।