
नई दिल्ली 23 नवंबर। हाल ही में हुए कई दर्दनाक सड़क हादसों ने न केवल कई युवा जिंदगियां छीन लीं, बल्कि समाज में शराब के बढ़ते प्रचलन और उसके खतरनाक परिणामों पर गंभीर बहस को भी जन्म दिया। यह घटना समाज के हर वर्ग में सवाल खड़े करती है—क्या शराब हमारी युवा पीढ़ी को बर्बादी की ओर धकेल रही है? क्या इसे “सामाजिक रूप से स्वीकार्य” मानकर हम इसके दुष्प्रभावों को नजरअंदाज कर रहे हैं? इस लेख में, हम इस विषय को विस्तार से समझेंगे—शराब के सांस्कृतिक, सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधी प्रभावों को ऐतिहासिक और समकालीन संदर्भों में विश्लेषित करेंगे।
शराब: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
शराब मानव सभ्यता का एक प्राचीन हिस्सा रही है। ऐतिहासिक रूप से, इसे धार्मिक अनुष्ठानों, सांस्कृतिक उत्सवों और सामाजिक मेलजोल का अभिन्न हिस्सा माना गया है। भारतीय संदर्भ में, वैदिक काल में “सोमरस” का उल्लेख मिलता है, जो देवताओं को अर्पित किया जाने वाला पेय था। इसी तरह, यूनानी और रोमन सभ्यताओं में मीड और वाइन का प्रचलन देखा गया।
हालांकि, उस समय शराब का सेवन सख्त नियमों और सीमाओं के तहत किया जाता था। इसे नियंत्रित मात्रा में प्रयोग किया जाता था, और इसका दुरुपयोग अनैतिक माना जाता था। लेकिन वर्तमान समय में, शराब का उपयोग धीरे-धीरे अनियंत्रित हो गया है, और इसे सामाजिक हैसियत और मनोरंजन के साधन के रूप में देखा जाने लगा है।
समकालीन भारत में शराब का प्रचलन
भारत में शराब का प्रचलन तेजी से बढ़ा है, खासकर युवा पीढ़ी के बीच। 2019 में केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के एक अध्ययन में पाया गया कि 10-70 आयु वर्ग की 15% आबादी शराब का सेवन करती है। इनमें से 5.7 करोड़ लोग समस्याग्रस्त उपयोगकर्ता हैं, जबकि 2.9 करोड़ लोग शराब पर पूरी तरह निर्भर हैं।
महिलाओं में शराब का बढ़ता प्रचलन
महिलाओं के लिए शराब का सेवन लंबे समय तक वर्जित माना गया था, लेकिन अब यह धारणा बदल रही है। कंपनियां और विज्ञापन शराब को सशक्तिकरण और ग्लैमर से जोड़कर प्रस्तुत कर रही हैं। हालांकि, यह प्रवृत्ति खतरनाक है, क्योंकि महिलाओं के शरीर में शराब के नकारात्मक प्रभाव अधिक गंभीर हो सकते हैं।
शराब और स्वास्थ्य: एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण
शराब के शारीरिक प्रभाव
शराब सीधे तौर पर हमारे मस्तिष्क और शरीर पर असर डालती है। यह एक अवसादक है, जो मस्तिष्क की कार्यक्षमता को धीमा कर देती है, सजगता को प्रभावित करती है, और निर्णय लेने की क्षमता को कमजोर कर देती है।
दीर्घकालिक प्रभाव
- लीवर सिरोसिस: अत्यधिक शराब पीने से लीवर सिरोसिस का खतरा बढ़ता है।
- हृदय रोग: उच्च रक्तचाप और हृदय की समस्याएं शराब से जुड़ी होती हैं।
- कैंसर: अमेरिकन एसोसिएशन फॉर कैंसर रिसर्च के अनुसार, शराब कैंसर के लिए तीसरा सबसे बड़ा जोखिम कारक है।
- मनोवैज्ञानिक प्रभाव: शराब डिप्रेशन, एंग्जायटी और आत्महत्या जैसे मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकती है।
शराब और युवाओं पर प्रभाव
विशेषज्ञों के अनुसार, 25 वर्ष से कम उम्र में शराब का सेवन अत्यधिक खतरनाक है, क्योंकि इस आयु तक मस्तिष्क का विकास जारी रहता है। शराब युवाओं की निर्णय क्षमता को कमजोर करती है, जिससे दुर्घटनाओं और हिंसक घटनाओं का जोखिम बढ़ जाता है।
सड़क दुर्घटनाएं और शराब: खतरनाक संयोजन
देहरादून हादसे जैसे उदाहरण दर्शाते हैं कि शराब और तेज़ रफ्तार का मेल कितना घातक हो सकता है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर साल सड़क दुर्घटनाओं में 1.5 लाख से अधिक लोगों की मौत होती है, जिनमें से एक बड़ा हिस्सा शराब के प्रभाव में गाड़ी चलाने के कारण होता है।
कानूनी प्रयास और उनकी प्रभावशीलता
हालांकि सरकार ने शराब पीकर गाड़ी चलाने को रोकने के लिए कठोर कानून बनाए हैं, लेकिन उनकी प्रभावशीलता पर सवाल उठते हैं। जुर्माने और सजा के प्रावधान के बावजूद, सड़क पर शराब के प्रभाव में गाड़ी चलाने की घटनाएं कम नहीं हो रही हैं।
शराब और समाज: एक नैतिक दुविधा
शराब न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य बल्कि सामाजिक ताने-बाने पर भी बुरा प्रभाव डालती है। यह परिवारों को तोड़ सकती है, घरेलू हिंसा को बढ़ावा दे सकती है, और सामाजिक अपराधों का कारण बन सकती है।
- शराब और गरीबी- शराब का एक प्रमुख सामाजिक प्रभाव इसकी आर्थिक लागत है। गरीब परिवारों में शराब पर खर्च अन्य महत्वपूर्ण जरूरतों, जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य, से समझौता कर देता है।
- महिलाओं और बच्चों पर प्रभाव- शराब के कारण होने वाली घरेलू हिंसा और उपेक्षा से महिलाएं और बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।
क्या शराब का कोई सकारात्मक पक्ष है?
शराब को अक्सर भूमध्यसागरीय आहार का हिस्सा बताते हुए उसके संभावित स्वास्थ्य लाभों का दावा किया जाता है। लेकिन हाल के शोधों ने इस धारणा को चुनौती दी है। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि 35 वर्ष से कम उम्र के लोगों को शराब से पूरी तरह बचना चाहिए।
क्या शराब पूरी तरह बैन होनी चाहिए?
पूजा भट्ट जैसे सेलेब्रिटीज़ इसे “खुलेआम बेची जाने वाली दवा” कहते हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या शराब पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाना संभव और व्यावहारिक है? गुजरात और बिहार जैसे राज्यों में शराबबंदी के बावजूद इसका अवैध व्यापार और तस्करी जारी है।
शराब नियंत्रण के लिए संभावित समाधान
- शिक्षा और जागरूकता: युवाओं को शराब के खतरों के बारे में शिक्षित करना।
- कठोर कानून: शराब पीकर गाड़ी चलाने पर कठोर दंड।
- विकल्प उपलब्ध कराना: शराब की जगह स्वस्थ मनोरंजन के विकल्प प्रदान करना।
- सामाजिक समर्थन: शराब की लत से जूझ रहे लोगों के लिए काउंसलिंग और पुनर्वास सेवाएं।
प्रभात भारत विशेष
देहरादून की यह त्रासदी हमें शराब से जुड़े जोखिमों पर विचार करने के लिए मजबूर करती है। शराब का सेवन केवल एक व्यक्तिगत निर्णय नहीं है; इसका प्रभाव पूरे समाज पर पड़ता है। यह समय है कि हम शराब को लेकर अपनी धारणाओं और नीतियों पर पुनर्विचार करें। समाज, सरकार और परिवारों को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि शराब का सेवन नियंत्रित हो और इससे जुड़े खतरों को कम किया जा सके।