
प्रशासनिक स्तर पर की गई लापरवाहियां पड़ सकती है भारी किसी भी सांप्रदायिक घटना में धर्म का नाम लेने से बचना चाहिए
(विजय प्रताप पांडेय) धर्म और सांप्रदायिकता पर आधारित घटनाओं की रिपोर्टिंग और राजनीतिक, प्रशासनिक तथा बौद्धिक वर्गों की भूमिका पर एक गहन विचार विमर्श की आवश्यकता है। वर्तमान समय में समाज के विभिन्न वर्गों में धर्म और संप्रदाय के नाम पर फैलने वाले विषाक्त विचारधारा का असर व्यापक रूप से देखा जा सकता है। धर्म, जिसे आमतौर पर शांति, सद्भाव और मानवता का प्रतीक माना जाता है, आज नफरत, हिंसा और विभाजन के कारण के रूप में सामने आ रहा है। इसमें मीडिया, राजनीतिक दल, प्रशासन और बौद्धिक वर्ग की अहम भूमिका है।
धर्म का नाम और सांप्रदायिकता की रिपोर्टिंग
मीडिया, जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, उसके कंधों पर यह जिम्मेदारी है कि वह समाज में सच्चाई, न्याय और शांति का संदेश फैलाए। लेकिन जब हम अखबारों और न्यूज़ चैनलों की रिपोर्टिंग को ध्यान से देखते हैं, तो कई बार यह पाया जाता है कि खबरें न सिर्फ तथ्यों को प्रस्तुत करती हैं, बल्कि उनमें धर्म और संप्रदाय के नाम का उल्लेख करके अप्रत्यक्ष रूप से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देती हैं।
एक रिपोर्टिंग जो केवल घटना का निष्पक्ष वर्णन करने का दावा करती है, अगर उसमें एक विशेष धर्म का उल्लेख किया जाए, तो इसका दूरगामी असर होता है। उदाहरण के लिए, एक जगह की सांप्रदायिक घटना को दूसरे स्थान पर पढ़कर लोग उसे अपने समुदाय या धर्म के विरुद्ध एक आक्रमण के रूप में देख सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप नफरत और आक्रोश की भावना और गहरी हो जाती है। ऐसी रिपोर्टिंग से समाज में अलगाव बढ़ता है और यह सामुदायिक सौहार्द्र को गहरा नुकसान पहुंचा सकता है।
प्रशासनिक और राजनीतिक वर्ग की भूमिका
धार्मिक और सांप्रदायिक घटनाओं में राजनीतिक और प्रशासनिक वर्गों की भूमिका को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। कई बार राजनीतिक दल और प्रशासनिक अधिकारी धार्मिक मुद्दों को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करते हैं। राजनीति में धर्म का उपयोग वोट बैंक की राजनीति का हिस्सा बन गया है। इसके परिणामस्वरूप, जब सांप्रदायिक घटनाएं होती हैं, तो उनमें राजनीतिक हस्तक्षेप और दखलअंदाजी बढ़ जाती है।
राजनीतिक दल ऐसे मुद्दों का इस्तेमाल जनता की भावनाओं को भड़काने के लिए करते हैं। चुनाव के दौरान यह प्रवृत्ति और भी स्पष्ट रूप से देखी जाती है, जब सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाकर वोटों का ध्रुवीकरण किया जाता है। यहां पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि प्रशासनिक तंत्र का उपयोग भी कई बार ऐसी घटनाओं में धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव के लिए किया जाता है। किसी एक समुदाय के खिलाफ सख्त कार्रवाई और दूसरे के प्रति नरमी, यह साफ दिखाता है कि किस तरह प्रशासनिक तंत्र का दुरुपयोग किया जा सकता है।
बुद्धिजीवियों का योगदान और उनकी जिम्मेदारी
बुद्धिजीवी वर्ग का समाज में एक विशेष स्थान होता है। इनकी जिम्मेदारी होती है कि वे समाज को सही दिशा दिखाएं और नफरत व हिंसा की मानसिकता को समाप्त करने के लिए प्रयास करें। लेकिन दुख की बात यह है कि कई बार बुद्धिजीवी वर्ग भी राजनीतिक और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का शिकार हो जाता है। उनके द्वारा दिए गए बयान और टिप्पणियां समाज में विभाजन को और बढ़ावा देती हैं।
बुद्धिजीवी वर्ग को सामाजिक जिम्मेदारी को समझते हुए समाज में एकता, भाईचारा और आपसी सहिष्णुता की भावना को बढ़ावा देना चाहिए। लेकिन कई बार देखने में आता है कि बुद्धिजीवी वर्ग भी एक विशेष विचारधारा का समर्थन करते हुए धार्मिक और सांप्रदायिक मुद्दों पर भड़काऊ टिप्पणी करते हैं, जिससे समाज में तनाव बढ़ता है। इसका परिणाम यह होता है कि आम जनता भी उन बातों को सच मानकर उसी दिशा में सोचने लगती है और समाज में नफरत का माहौल और गहरा हो जाता है।
मीडिया की नैतिक जिम्मेदारी और सुधार के उपाय
मीडिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा समाचारों को प्रस्तुत करते समय निष्पक्षता और संवेदनशीलता बनाए रखना होता है। खासकर धर्म और सांप्रदायिक मुद्दों पर रिपोर्टिंग करते समय मीडिया को यह ध्यान रखना चाहिए कि खबरों का स्वरुप कैसा है और वह किस तरह से प्रस्तुत की जा रही है।
सुधार के कुछ महत्वपूर्ण उपाय जो एक पत्रकार को मानने चाहिए
1. निष्पक्ष रिपोर्टिंग: रिपोर्टिंग करते समय मीडिया को सिर्फ तथ्यों पर आधारित खबरें प्रकाशित करनी चाहिए, न कि उसमें धर्म और जाति का उल्लेख करके समाज को बांटने का प्रयास करना चाहिए।
2. सावधानीपूर्वक भाषा का प्रयोग: सांप्रदायिक घटनाओं के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली भाषा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। आपत्तिजनक और भड़काऊ भाषा से बचना चाहिए, जिससे समाज में नफरत फैलने की संभावना कम हो।
3. धार्मिक विशेषज्ञों से परामर्श: धार्मिक और सांप्रदायिक मुद्दों पर रिपोर्टिंग करते समय विशेषज्ञों की राय और समझ लेना आवश्यक है। इससे रिपोर्टिंग का स्तर भी बढ़ता है और सामाजिक संतुलन भी बना रहता है।
4. समाज में शांति और सद्भाव को बढ़ावा देना: मीडिया का उद्देश्य सिर्फ खबरें देना नहीं है, बल्कि समाज में शांति और सद्भाव बनाए रखने में भी भूमिका निभानी चाहिए। इसके लिए सकारात्मक और प्रेरणादायक खबरों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
राजनीतिक और प्रशासनिक सुधार की आवश्यकता
राजनीतिक और प्रशासनिक सुधारों की भी बहुत आवश्यकता है ताकि सांप्रदायिकता और धर्म के नाम पर होने वाली घटनाओं को रोका जा सके। इसके लिए राजनीतिक दलों और प्रशासनिक अधिकारियों को निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए:
1. धर्मनिरपेक्षता का पालन: राजनीतिक दलों को धर्म और जाति से ऊपर उठकर जनता की सेवा करनी चाहिए। धर्म और संप्रदाय के आधार पर विभाजन और ध्रुवीकरण की राजनीति से बचना चाहिए।
2. सख्त प्रशासनिक कार्रवाई: प्रशासनिक तंत्र को निष्पक्ष और सख्त होना चाहिए। किसी भी प्रकार के धार्मिक भेदभाव से बचते हुए सांप्रदायिक घटनाओं पर त्वरित और निष्पक्ष कार्रवाई करनी चाहिए।
3. वोट बैंक की राजनीति से बचना: राजनीतिक दलों को अपने लाभ के लिए सांप्रदायिकता का सहारा नहीं लेना चाहिए। वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठकर समाज में एकता और भाईचारे को बढ़ावा देना चाहिए।
4. शिक्षा और जन-जागरूकता: सांप्रदायिकता से निपटने के लिए शिक्षा और जन-जागरूकता बहुत महत्वपूर्ण है। स्कूलों और कॉलेजों में सांप्रदायिक सौहार्द और धर्मनिरपेक्षता के महत्व को पढ़ाया जाना चाहिए।
बुद्धिजीवियों की जिम्मेदारी
बुद्धिजीवी वर्ग को भी अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए समाज में शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए काम करना चाहिए। इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
1. निष्पक्ष और संतुलित विचारधारा: बुद्धिजीवी वर्ग को धर्म और संप्रदाय से ऊपर उठकर समाज में एकता और सद्भावना के संदेश को फैलाना चाहिए।
2. सामाजिक चेतना का निर्माण: बुद्धिजीवी वर्ग को समाज में फैली नफरत और सांप्रदायिकता के खिलाफ जागरूकता फैलानी चाहिए। उन्हें समाज में शांति और सौहार्द्र का माहौल बनाने के लिए सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
3. नफरत की राजनीति का विरोध: बुद्धिजीवी वर्ग को नफरत और विभाजन की राजनीति के खिलाफ खड़ा होना चाहिए और समाज को सही दिशा में ले जाने के लिए सकारात्मक विचारधारा को बढ़ावा देना चाहिए।
प्रभात भारत विशेष
धर्म और सांप्रदायिकता के नाम पर समाज में फैली नफरत को रोकने के लिए मीडिया, राजनीतिक दल, प्रशासन और बुद्धिजीवी वर्ग सभी की महत्वपूर्ण भूमिका है। धर्म का नाम लेकर हिंसा और विभाजन को बढ़ावा देना मानवता के लिए घातक है। समाज में शांति और सद्भाव बनाए रखने के लिए हमें सभी स्तरों पर सुधार करने होंगे, ताकि धर्म और संप्रदाय के नाम पर फैलने वाले नफरत के जहर को समाप्त किया जा सके। समाज को एकता, भाईचारा और आपसी सहिष्णुता के रास्ते पर आगे बढ़ाने के लिए सभी को मिलकर काम करना होगा।