घोटाले को लेकर राज्यपाल और मुख्यमंत्री तक शिकायत पहुंचाने की तैयारी
गोंडा 17 मार्च। जिले के अनुदानित विद्यालयों में कार्यरत कई अध्यापकों के अवशेष वेतन भुगतान में भारी घोटाले का खुलासा हुआ है। वर्ष 2011 से 2018 के बीच के अवशेष वेतन की रकम का लगभग 90% हिस्सा विद्यालय के इंटर कॉलेज के बैंक खाते में ट्रांसफर कर लिया गया। अध्यापकों का आरोप है कि प्रबंधकों और अधिकारियों की मिलीभगत से यह बड़ा घपला किया गया, जिसमें शिक्षकों को उनका पूरा भुगतान नहीं मिला, बल्कि अधिकांश पैसा हड़प लिया गया। इस घोटाले का खुलासा तब हुआ जब कुछ शिक्षकों ने अपने बैंक खातों की जांच की और पाया कि उनकी सैलरी से बड़ी मात्रा में राशि अनधिकृत रूप से निकाली गई। यह अवशेष वेतन भुगतान वित्तीय वर्ष 2024-25 की शुरुआत में किया गया, लेकिन पहले से ही प्रबंधकों और अन्य प्रभावशाली लोगों ने इसका बड़ा हिस्सा हड़पने की योजना बना ली थी, और शुरुआत में ही अवशेष वेतन पाने वाले अध्यापकों से ब्लैंक चेक ले लिया गया था।
कैसे हुआ घोटाला? जबरन कमीशन का खेल
प्रभावित अध्यापकों ने बताया कि भुगतान की प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही विद्यालय प्रबंधकों द्वारा शिक्षकों से चेक जबरन ले लिए गए। जब किसी शिक्षक ने इस पर आपत्ति जताई तो उन्हें स्पष्ट रूप से कहा गया कि अवशेष वेतन फ्री में नहीं मिलेगा, इसके लिए भारी कमीशन देना होगा। यह कमीशन अध्यापकों की कुल अवशेष वेतन राशि का 90% तक था। यानी, अगर किसी शिक्षक का वेतन ₹2 लाख बनता था तो उसमें से ₹1.80 लाख तक का हिस्सा सीधे काट लिया जाता था और उन्हें मात्र ₹20,000 ही मिलते थे। यह पूरा खेल बहुत ही योजनाबद्ध तरीके से किया गया, ताकि शिक्षकों को विरोध करने का कोई अवसर ही न मिले।
इस पूरे मामले में सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि कटौती की गई रकम आखिर गई कहां? जब इस पैसे के ट्रांजेक्शन की जांच की गई तो पता चला कि यह पैसा बेसिक शिक्षा विभाग के कई प्रभावशाली कर्मचारियों के रिश्तेदारों की फर्मों में ट्रांसफर किया गया। जब इस तरह के ट्रांजेक्शन की संख्या बढ़ने लगी और मामला संदेहास्पद होता गया, तो प्रबंधकों ने नई रणनीति अपनाई। इसके तहत अब कमीशन के पैसे को सीधे विद्यालय के इंटर कॉलेज के बैंक खाते में ट्रांसफर किया जाने लगा, या फिर प्रबंधक अपनी निजी फर्म के खाते में राशि ट्रांसफर करवा लेते थे और बाद में इसे कैश निकाल लिया जाता था।
अधिकारियों की मिलीभगत और कैश निकासी का खेल
जांच में यह भी सामने आया कि इस पूरे घोटाले में विद्यालय प्रबंधकों के साथ-साथ शिक्षा विभाग के अधिकारी भी शामिल थे। इस अवैध कमीशन के पैसे को निकालने के लिए अलग-अलग बैंक खातों का इस्तेमाल किया गया। सबसे पहले शिक्षकों के अवशेष वेतन को उनके बैंक खातों में ट्रांसफर किया जाता था, लेकिन चूंकि पहले ही उनके चेक लिए जा चुके थे, इसलिए यह पैसा सीधे दूसरे खातों में ट्रांसफर कर दिया जाता था। कई मामलों में यह पैसा फर्जी फर्मों के बैंक खातों में भेजा गया, जो कि प्रबंधकों और अधिकारियों के रिश्तेदारों के नाम पर थीं।
इस खेल को और बड़े स्तर पर संचालित करने के लिए कैश निकासी का तरीका अपनाया गया। जब शिक्षकों के पैसे को विद्यालय के बैंक खाते में ट्रांसफर किया गया, तो वहां से चेक के माध्यम से भारी रकम निकाली गई। यह पैसा फिर अलग-अलग माध्यमों से बांटा गया, जिसमें अधिकारी, प्रबंधक और अन्य प्रभावशाली लोग शामिल थे। बड़ी मात्रा में यह पैसा कैश में निकाला गया, ताकि इसका कोई पुख्ता रिकॉर्ड न रह सके।
अध्यापकों की पीड़ा और न्याय की मांग
इस घोटाले से प्रभावित शिक्षकों में गहरा रोष व्याप्त है। कई अध्यापकों ने अपनी शिकायतें उच्च अधिकारियों तक पहुंचाने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें धमकाया गया या फिर उनकी आवाज को दबाने की कोशिश की गई। कुछ शिक्षकों ने जब इस मामले को लेकर आवाज उठाई, तो उन्हें विद्यालय से बाहर करने की धमकी दी गई। पीड़ित शिक्षकों का कहना है कि उन्हें उनका मेहनत का पैसा नहीं मिला और इसके लिए कोई जवाबदेही भी तय नहीं की गई।
शिक्षकों ने अब इस मामले की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। उन्होंने मांग की है कि बेसिक शिक्षा विभाग और वित्तीय विभाग के उच्च अधिकारियों द्वारा इस पूरे घोटाले की जांच कराई जाए और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। कई अध्यापक अब इस घोटाले को लेकर राज्यपाल और मुख्यमंत्री तक शिकायत पहुंचाने की तैयारी कर रहे हैं, ताकि न्याय मिल सके।
क्या होगी कार्रवाई?
गोंडा के अनुदानित विद्यालयों में हुए इस वेतन घोटाले ने शिक्षा विभाग की कार्यशैली पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। यह मामला सिर्फ अध्यापकों की मेहनत की कमाई लूटने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह बेसिक शिक्षा विभाग में फैले भ्रष्टाचार का भी जीता-जागता उदाहरण है। सवाल यह उठता है कि जब अध्यापकों की सैलरी में इस तरह से कटौती की जा रही थी, तो प्रशासन और विभाग के अधिकारी क्या कर रहे थे?
अब यह देखना होगा कि सरकार और प्रशासन इस घोटाले पर क्या कदम उठाते हैं। क्या दोषी अधिकारियों और विद्यालय प्रबंधकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी, या फिर यह मामला भी अन्य घोटालों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा? शिक्षकों की निगाहें अब सरकार और जांच एजेंसियों पर टिकी हैं। अगर जल्द ही कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई, तो यह घोटाला प्रदेशभर में एक बड़ा मुद्दा बन सकता है।

