
गोंडा 11 नवंबर। आजकल के सरकारी दफ्तरों में फाइलें चाहे जितनी धीमी गति से चलें, पर इश्क के मामले में दीवानों की रफ्तार कमाल की होती है। एकतरफा इश्क का ऐसा वायरस एक सरकारी विभाग के एक दीवाने साहब पर चढ़ा कि बस पूछिए मत। और यह इश्क किसी आम लड़की से नहीं, बल्कि उन्हीं की अपनी महिला सहकर्मी से था। भाई साहब ने इश्क की राह में शायर का अवतार धारण कर लिया। दिन-रात मोबाइल पर शायरी का ऐसा भंडार भेजा कि व्हाट्सएप के सर्वर भी शर्मा जाएं।
महिला सहकर्मी का नाम तक नहीं जानते थे, फिर भी हर सुबह-शाम एक नई शायरी – “तुम्हारी हंसी पर ये दिल कुर्बान…” या फिर “तेरे नयन हैं जैसे मय के प्याले…”। मगर महिला सहकर्मी, जो खुद भी एक वर्दी वाले विभाग में थीं, इस प्रेमभरी फायरिंग से घबराकर हर बार उन्हें मना करती रहीं, पर भाई साहब पर इश्क का भूत ऐसा सवार था कि कोई बात समझ ही नहीं आ रही थी। मना करने का मतलब उनके लिए हां समझ में आता था।
महिला सहकर्मी ने उन्हें कई बार समझाया, यहां तक कि कड़क गालियाँ भी दे डालीं, लेकिन साहब इश्क में इतने गहरे डूबे थे कि उन्होंने इसे भी अपने शायराना अंदाज में, “प्यार की नफरत” समझ लिया। भाई साहब ने सोचा कि शायद वह उन्हें और ज्यादा दिल से चाहने लगी हैं और बस इसी चक्कर में शायरी पर शायरी भेजते गए। महिला सहकर्मी का गुस्सा हर बार बढ़ता गया, पर साहब के प्रेम में ‘आह’ का असर नहीं हो रहा था, बल्कि वह इसे नए-नए अंदाज में पेश करने लगे।
अब महिला सहकर्मी को समझ आ गया था कि अगर यह न रुके, तो दफ्तर में परेशानी बढ़ जाएगी। उन्होंने सीधा फैसला किया कि वह अब शिकायत करेंगी और अधिकारी से कहेंगी कि इस नंबर की पड़ताल कराई जाए। जब यह बात दीवाने साहब के कानों तक पहुँची, तो उनका चेहरा देखकर ऐसा लगा मानो दिल तो चूर-चूर हो ही गया हो, अब नौकरी भी खतरे में है। उनका पूरा इश्क जैसे हवा में उड़ता नजर आने लगा।
इसी उधेड़बुन में एक योजना उनके दिमाग में आई। सोचा क्यों न फोन पे से मैसेज भेजना शुरू करें, ताकि महिला सहकर्मी को लगे कि यह किसी बाहर के आदमी का मामला है। फोन पे से मैसेज का खेल शुरू हुआ, मगर महिला सहकर्मी इतनी भी भोली न थीं। उन्हें जल्दी ही समझ आ गया कि यह वही ‘दफ्तर वाला दीवाना’ है। उन्होंने और भी सख्त जवाब देना शुरू किया, और धमकी दी कि अब वो सीधे ऊपर शिकायत कर देंगी और नंबर की जांच भी कराई जाएगी।
इस धमकी के बाद साहब के इश्क का गुब्बारा फूट गया। एक तरफ तो उनकी शायराना ज़िन्दगी थी, और दूसरी तरफ उनके सिर पर नौकरी का खतरा मंडरा रहा था। अब इस मुसीबत से बचने के लिए उन्होंने अपने विभाग के बड़े साहब को पटाने की ठानी। उन्होंने साहब के सामने हाथ जोड़कर कहा, “साहब, यह एकतरफा इश्क का मामला है। मेरे दिल की गहराई समझिए।” साहब ने पहले तो अपने माथे पर हाथ रखा और फिर मामले की गंभीरता समझते हुए, बड़े ही कूटनीतिक अंदाज में महिला सहकर्मी को बुलाया।
साहब ने महिला सहकर्मी को बड़े आराम से समझाने का काम किया। ऊपर वाले साहब ने अपनी वाकपटुता और पुराने अनुभावों के सहारे किसी तरह महिला सहकर्मी को मनाया और दीवाने की जान बचाई। महिला सहकर्मी ने सोचा कि शायद मामला यहीं ठंडा हो गया है और अब कोई समस्या नहीं होगी।
इधर हमारे दीवाने साहब की जान में जान आई। उन्हें लगा कि अब उनका प्रेम खतरे से बाहर है। उन्होंने अपने फोन से सारे शायराना मैसेज तुरंत डिलीट किए और एक गहरी सांस लेते हुए खुद से वादा किया कि अब प्यार के चक्कर में पड़ने से अच्छा है कि वह अपने विभागीय काम पर ध्यान दें। इस पूरे घटना क्रम ने उन्हें एक सीख तो दी ही, साथ ही यह समझ भी दिलाई कि इश्क करने के लिए थोड़ा साहस के साथ-साथ समझ भी जरूरी है।
कहानी का सबक यही है कि इश्क एकतरफा हो, तो दिल की बात कहना आसान नहीं होता। सरकारी विभाग में खासकर यह और भी चुनौतीपूर्ण है। नौकरी के साथ इश्क और जुगाड़ का तालमेल करना मजेदार हो सकता है, परंतु बिना दिमाग के, यह कब सिरदर्द बन जाए, कोई नहीं कह सकता।
तो साहब, सरकारी विभाग का इश्क हो या नौकरी का फर्ज, थोड़ा संभलकर चलना ही अच्छा होता है।