
गोंडा 17 जनवरी। जिले के अनुदानित पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों के कामकाज और उनकी ईमानदारी पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। यह खुलासा हुआ है कि कई ऐसे शिक्षक, जो इन अनुदानित विद्यालयों में नियुक्त हैं, वास्तव में वहां पढ़ाने का काम नहीं कर रहे हैं। इसके बजाय, वे किसी निजी संस्थान या फर्म में नौकरी कर रहे हैं, और वहां से भी वेतन प्राप्त कर रहे हैं। दोहरी नौकरी का यह खेल शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली और प्रशासन की निगरानी व्यवस्था पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाता है।
कैसे चल रहा है दोहरी नौकरी का खेल?
इन अनुदानित विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति तो सरकारी प्रक्रिया के तहत होती है, लेकिन कई शिक्षक विद्यालयों में शिक्षण कार्य के बजाय निजी कंपनियों में सेवाएं दे रहे हैं। इसके लिए उन्हें अनुदानित विद्यालय के प्रबंधन से सांठगांठ करनी पड़ती है। जानकारी के अनुसार, प्रबंधक को हर महीने 15,000 से 25,000 रुपये तक की राशि देकर शिक्षक अपनी अनुपस्थिति की व्यवस्था कर लेते हैं। बदले में, प्रबंधक उनकी उपस्थिति रजिस्टर पर दर्ज कर देता है और वेतन का भुगतान जारी रहता है।
दोहरी नौकरी का दुष्चक्र
इन शिक्षकों के पास न केवल अनुदानित विद्यालय से वेतन आ रहा है, बल्कि निजी संस्थान से भी उन्हें मोटी तनख्वाह मिल रही है। इसके चलते सरकारी खजाने पर दोहरा बोझ पड़ रहा है। दिलचस्प बात यह है कि विभागीय निगरानी में कमी और मानव संपदा पोर्टल पर डेटा फीडिंग न होने के कारण इन शिक्षकों की दोहरी नौकरी का पता नहीं चल पा रहा है।
प्रबंधन की भूमिका सवालों के घेरे में
अधिकारियों और प्रबंधन की मिलीभगत इस पूरे मामले को और गंभीर बनाती है। प्रबंधक, जो इन शिक्षकों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार होते हैं, वे खुद इस घोटाले में भागीदार बन जाते हैं। प्रबंधक इन शिक्षकों से वसूली गई रकम को विद्यालय के खाते में जमा करने के बजाय अपने व्यक्तिगत उपयोग में ले लेते हैं।
मानव संपदा पोर्टल का इस्तेमाल क्यों नहीं हो रहा?
मानव संपदा पोर्टल, जो शिक्षकों की उपस्थिति और उनके स्थानांतरण से संबंधित जानकारी रखने के लिए विकसित किया गया है, का प्रभावी इस्तेमाल इन मामलों में नहीं हो रहा है। यदि इस पोर्टल पर सही ढंग से डेटा फीडिंग हो, तो दोहरी नौकरी करने वाले शिक्षकों की पहचान आसानी से की जा सकती है। लेकिन विभागीय लापरवाही के चलते यह प्रक्रिया ठप पड़ी है।
प्रभावित हो रहा है बच्चों की शिक्षा
शिक्षकों की इस गैर-जिम्मेदाराना हरकत का सबसे बड़ा खामियाजा उन बच्चों को भुगतना पड़ रहा है, जो अनुदानित विद्यालयों में पढ़ाई करते हैं। शिक्षण कार्य न होने की वजह से छात्रों की पढ़ाई बाधित हो रही है। यह स्थिति शिक्षा की गुणवत्ता को कमजोर कर रही है और ग्रामीण इलाकों के बच्चों के भविष्य को अंधकारमय बना रही है।
जांच का अभाव: जिम्मेदार कौन?
शिक्षा विभाग की ओर से इस समस्या पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। ना ही इन शिक्षकों की जांच की जा रही है और ना ही प्रबंधकों के खिलाफ कोई कार्रवाई हो रही है। शिक्षा विभाग की इस उदासीनता के चलते गोंडा जिले के कई अनुदानित विद्यालयों में यह प्रथा जारी है।
दोहरी नौकरी करने वाले शिक्षकों की सूची
दोहरी नौकरी करने वाले शिक्षकों की एक लंबी सूची तैयार है जो आपको अगले भाग में देखने को मिलेगी। इस सूची में ऐसे शिक्षकों के नाम हैं, जो निजी कंपनियों में नौकरी कर रहे हैं और वहां से मोटा वेतन उठा रहे हैं। इसके साथ ही वे अनुदानित विद्यालयों से भी अपना मासिक वेतन प्राप्त कर रहे हैं।
प्रबंधकों की अवैध कमाई
इन शिक्षकों से जो राशि वसूली जाती है, वह सीधे प्रबंधकों की जेब में जाती है। यह पैसा विद्यालय के इंटर कॉलेज के खातों में भी जमा करा लिया जाता है जिससे स्पष्ट होता है कि प्रबंधक भी इस भ्रष्टाचार में बराबर के भागीदार हैं। यह वसूली हर महीने नियमित रूप से की जाती है, जिससे लाखों रुपये की अवैध कमाई होती है।
शिक्षा विभाग के लिए चुनौती
शिक्षा विभाग के लिए यह मामला एक बड़ी चुनौती है। विभाग को इस प्रथा को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने होंगे। मानव संपदा पोर्टल पर सभी शिक्षकों का डेटा अपडेट करना, विद्यालयों की नियमित जांच करना और प्रबंधकों की भूमिका की समीक्षा करना इस दिशा में आवश्यक कदम हो सकते हैं।
जिम्मेदार कौन?
इस घोटाले के लिए मुख्य रूप से तीन पक्ष जिम्मेदार हैं:
1. शिक्षक – जो अपनी जिम्मेदारी को नजरअंदाज कर रहे हैं।
2. प्रबंधक – जो पैसों के लिए इस भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं।
3. शिक्षा विभाग- जो इस पर कार्रवाई करने में असफल साबित हो रहे हैं।
समस्या का समाधान कैसे हो सकता है?
1. सख्त निगरानी: शिक्षा विभाग को अनुदानित विद्यालयों की नियमित जांच करनी चाहिए।
2. डेटा फीडिंग: मानव संपदा पोर्टल पर सभी शिक्षकों का डेटा नियमित रूप से अपडेट किया जाना चाहिए।
3. कानूनी कार्रवाई: दोषी शिक्षकों और प्रबंधकों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए।
4. पारदर्शिता: तैनाती और उपस्थिति से संबंधित सभी जानकारी सार्वजनिक की जानी चाहिए।
5. जागरूकता अभियान: ग्रामीण क्षेत्रों में अभिभावकों और छात्रों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए।
प्रभात भारत विशेष
गोंडा के अनुदानित पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में चल रही दोहरी नौकरी की यह प्रथा शिक्षा विभाग और प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करती है। इससे न केवल शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है, बल्कि सरकारी खजाने को भी नुकसान हो रहा है। यह समय है कि प्रशासन और शिक्षा विभाग इस मुद्दे पर सख्त कदम उठाएं और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें। शिक्षा का भविष्य बचाने के लिए यह कदम अनिवार्य हो गया है।