
प्रयागराज 11 अप्रैल। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद (यूपी बोर्ड) इस बार परीक्षाफल की घोषणा से पूर्व अभूतपूर्व सख्ती और पारदर्शिता के साथ तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुटा है। हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षाओं की समाप्ति और मूल्यांकन कार्य पूर्ण होने के बाद अब बोर्ड उन बिंदुओं पर काम कर रहा है, जहां अतीत में कुछ त्रुटियां सामने आई थीं। विशेष रूप से मूल्यांकन की त्रुटियां, अंकों के गलत योग, और मनमाने ढंग से दिए गए नंबर जैसी समस्याएं बोर्ड की छवि को धूमिल कर चुकी हैं। इनसे सीख लेते हुए बोर्ड ने इस बार कई कड़े और ऐतिहासिक निर्णय लिए हैं।
बोर्ड सचिव भगवती सिंह ने स्पष्ट किया है कि इस बार परीक्षाफल तैयार करते समय न केवल तकनीकी पद्धतियों को बेहतर किया गया है, बल्कि मूल्यांकन की गुणवत्ता को परखने के लिए टॉप 500 उत्तरपुस्तिकाओं की पुनः जांच कराई जाएगी। ये वे उत्तरपुस्तिकाएं होंगी, जिनमें विषयवार सर्वाधिक अंक प्रदान किए गए हैं। इस निर्णय के पीछे बोर्ड का स्पष्ट उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि परीक्षाफल त्रुटिहीन, निष्पक्ष और शुचितापूर्ण हो। विशेषकर उन छात्रों के साथ न्याय हो, जिन्होंने मेहनत करके अच्छे अंक प्राप्त किए हैं।
बोर्ड द्वारा यह निर्णय अतीत की कुछ घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में लिया गया है, जब टॉपर्स की उत्तरपुस्तिकाओं की जांच में गड़बड़ियां पाई गई थीं। पेजों पर अंकों के योग में असमानता, विषय के अनुरूप उत्तरों के विपरीत मिले नंबर, और कुछ मामलों में चापलूसी या लापरवाहीवश उच्च अंक प्रदान किए जाने की शिकायतें भी आई थीं। ऐसे मामलों में छात्रों को बाद में कोर्ट का सहारा लेना पड़ा या संशोधन के लिए महीनों तक चक्कर काटने पड़े। इस बार बोर्ड यह नहीं चाहता कि परीक्षाफल घोषित होने के बाद किसी छात्र को ऐसी परेशानियों का सामना करना पड़े।
यूपी बोर्ड के अनुसार, इस बार मूल्यांकन प्रक्रिया 19 मार्च से प्रारंभ हुई थी और इसे निर्धारित समयसीमा के अनुसार 2 अप्रैल को पूर्ण कर लिया गया। हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की कुल 2.84 करोड़ उत्तरपुस्तिकाओं का मूल्यांकन विभिन्न केंद्रों पर पूर्ण किया गया। इस बार विशेष निर्देश के तहत किसी भी परीक्षक को एक दिन में 50 से अधिक हाईस्कूल या 45 से अधिक इंटरमीडिएट की उत्तरपुस्तिकाएं जांचने की अनुमति नहीं दी गई थी, जिससे त्रुटियों की संभावना न्यूनतम रहे। यह निर्णय भी मूल्यांकन की गुणवत्ता बनाए रखने की दिशा में एक बड़ा सुधार माना जा रहा है।
सभी जांची गई उत्तरपुस्तिकाओं के प्राप्तांक संबंधित फर्मों को भेज दिए गए हैं और तकनीकी टीमें इन अंकों को डिजिटल माध्यम से अनुक्रमांकवार संयोजन कर रही हैं। ओएमआर आधारित उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन भी तकनीकी रूप से निष्पक्षता के साथ पूरा किया गया है। इंटरमीडिएट के छूटे हुए प्रायोगिक परीक्षार्थियों को छोड़कर शेष सभी के अंक पहले ही फीड किए जा चुके हैं, जिससे परीक्षाफल तैयार करने की प्रक्रिया अब लगभग अंतिम चरण में है।
बोर्ड ने परीक्षाफल के आधार पर हर विषय के टॉप 500 छात्रों की पहचान के लिए एक अलग डेटा विश्लेषण टीम बनाई है। यह टीम सर्वाधिक प्राप्तांकों के आधार पर ऐसे छात्रों की उत्तरपुस्तिकाओं को छांटेगी, जिनमें असामान्य रूप से अधिक अंक दिए गए हों। इन उत्तरपुस्तिकाओं को संबंधित क्षेत्रीय कार्यालयों के माध्यम से दोबारा जांचा जाएगा। यदि इनमें किसी भी प्रकार की त्रुटि मिलती है—जैसे अनुचित अंक, गलत अंकगणना या विषयवस्तु से मेल न खाता मूल्यांकन—तो संबंधित परीक्षक के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी।
बोर्ड सचिव ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि किसी उत्तरपुस्तिका में गड़बड़ी पाई जाती है तो संबंधित परीक्षक को मूल्यांकन कार्य से डिबार किया जाएगा। साथ ही उस पर भविष्य में बोर्ड के किसी भी शैक्षिक कार्य में शामिल होने पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। यह निर्णय इसलिए भी अहम है क्योंकि अब तक मूल्यांकन की गड़बड़ियों को बोर्ड ‘मानवीय त्रुटि’ मानकर छोड़ देता था, जिससे परीक्षक लापरवाही करने से नहीं हिचकते थे। इस बार की नीति ‘शून्य सहनशीलता’ पर आधारित है।
बोर्ड इस बार तकनीकी और नैतिक—दोनों ही स्तरों पर अधिक सतर्क है। परीक्षाफल की घोषणा के बाद किसी भी प्रकार की कोर्ट केस या संशोधन याचिका की स्थिति से बचने के लिए यह दोहरी जांच प्रणाली लागू की जा रही है। बोर्ड नहीं चाहता कि टॉप करने वाले छात्र बाद में संशोधन की दौड़ में फंसें और उनकी कड़ी मेहनत बदनाम हो। इसके अलावा बोर्ड की प्रतिष्ठा भी ऐसी घटनाओं से प्रभावित होती है, जो इस बार की रणनीति से बचाई जा सकेगी।
छात्र, अभिभावक, शिक्षक और सामाजिक संगठन बोर्ड की इस पहल की सराहना कर रहे हैं। आमतौर पर बोर्ड परीक्षाओं में निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न उठते रहे हैं, लेकिन इस बार बोर्ड का यह कदम न केवल विश्वास बहाल करेगा, बल्कि यह शिक्षा प्रणाली में जवाबदेही और पारदर्शिता की दिशा में एक ऐतिहासिक प्रयास भी माना जाएगा। उम्मीद की जा रही है कि यह पहल आगामी वर्षों में एक मानक बनकर अन्य बोर्डों के लिए भी प्रेरणा बनेगी।