
गोंडा 31 मार्च: वित्त एवं लेखा अधिकारी (बेसिक) कार्यालय के स्थानांतरण को लेकर उठ रहे सवालों के बीच एक बड़ी साजिश की बू आ रही है। सूत्रों की मानें तो यह स्थानांतरण केवल प्रशासनिक कारणों से नहीं, बल्कि बीते वर्षों में हुए करोड़ों रुपये के फर्जी भुगतान से संबंधित दस्तावेजों को नष्ट करने की मंशा से किया जा रहा है। वर्ष 2023 और 2024 में लघु माध्यमिक अनुदानित विद्यालयों में कर्मचारियों को 200 करोड़ रुपये के फर्जी भुगतान किए जाने के आरोप लगे हैं। इन मामलों की शिकायतें की गई थीं और जांच भी चल रही है। ऐसे में, यह स्थानांतरण कहीं जांच को प्रभावित करने की कोशिश तो नहीं?
200 करोड़ रुपये के फर्जी भुगतान का मामला
बेसिक शिक्षा विभाग में हुए इस घोटाले की परतें धीरे-धीरे खुल रही हैं। वर्ष 2023 और 2024 के दौरान लघु माध्यमिक अनुदानित विद्यालयों के नाम पर लाखों रुपये के फर्जी भुगतान की शिकायतें सामने आई थीं। कई शिक्षकों और कर्मचारियों के नाम पर सरकारी फंड से भारी धनराशि निकाली गई, जबकि असल में वे उसे समय से कर्मचारी थे ही नहीं जिस समय से दिखाए जा रहे हैं । इस मामले में विभाग के उच्च अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है, क्योंकि बिना उच्चाधिकारियों की मंजूरी के इतना बड़ा घोटाला संभव नहीं था।
जब इस मामले की शिकायतें शासन स्तर तक पहुंचीं, तो जांच शुरू की गई। जांच के दायरे में आने के बाद संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई की तलवार लटक रही थी, लेकिन यदि अब इस कार्यालय को स्थानांतरित कर दिया जाता है और जरूरी फाइलें गायब हो जाती हैं, तो जांच प्रभावित हो सकती है।
कार्यालय स्थानांतरण की मंशा पर सवाल
सूत्रों की मानें तो कार्यालय के स्थानांतरण की प्रक्रिया के पीछे सिर्फ प्रशासनिक कारण नहीं, बल्कि इससे जुड़ी महत्वपूर्ण फाइलों को गायब करने की गहरी साजिश हो सकती है। चूंकि वित्तीय वर्ष समाप्ति का समय बेहद महत्वपूर्ण होता है, इसलिए मार्च के अंतिम दिनों में इस प्रकार की गतिविधि कई सवाल खड़े करती है।
बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों पर पहले से ही जांच एजेंसियों की नजर है, और इस बीच कार्यालय को स्थानांतरित करने की कोशिश यह दर्शाती है कि कहीं न कहीं बड़ी गड़बड़ी को छुपाने का प्रयास किया जा रहा है। यदि कार्यालय स्थानांतरित हो गया और फाइलें सुरक्षित न रखी गईं, तो जांच के लिए आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध नहीं रहेंगे, जिससे दोषियों पर कार्रवाई करना मुश्किल हो जाएगा।
निलंबित लिपिक अरुण शुक्ला और बेसिक शिक्षा अधिकारी की भूमिका संदिग्ध
इस पूरे मामले में निलंबित लिपिक अरुण शुक्ला की भूमिका भी संदिग्ध मानी जा रही है। विभागीय सूत्रों के अनुसार, 2024 में किए गए प्रथम भुगतान की पत्रावली का चार्ज बार-बार मांगने के बावजूद अरुण शुक्ला द्वारा नहीं दिया जा रहा है। यह दर्शाता है कि कहीं न कहीं दस्तावेजों को छुपाने या उनसे छेड़छाड़ करने की कोशिश हो रही है।
इसके अलावा, सूत्रों की माने तो बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा मार्च माह में कार्यालय स्थानांतरण के लिए जारी किया गया पत्र भी संदेह के घेरे में है। उन्होंने यह पत्र वित्त एवं लेखा अधिकारी पर दबाव बनाने के लिए जारी किया, जिसमें कार्यालय स्थानांतरित न होने की स्थिति में कार्रवाई की चेतावनी दी गई। यह जानते हुए कि मार्च का महीना वित्त एवं लेखा विभाग के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, इस तरह का आदेश देना खुद अधिकारियों की मंशा पर सवाल खड़े करता है। चर्चा यह भी हो रही है कि जो फाइलें गायब हो सकती हैं, उनमें कुछ फाइलें वरिष्ठ अधिकारियों की भी हो सकती हैं।
वित्त एवं लेखा अधिकारी का बयान
इस पूरे मामले पर वित्त एवं लेखा अधिकारी ने स्पष्ट किया कि वे उच्च अधिकारियों के आदेशों का पालन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान में वित्तीय वर्ष का अंतिम समय चल रहा है और प्रत्येक मिनट बहुमूल्य है। सरकारी कार्यों के निष्पादन के कारण वे पूरी तरह व्यस्त हैं और कार्यालय का स्थानांतरण शीघ्र ही कर दिया जाएगा।
क्या होगी आगे की कार्रवाई?
इस मामले में जांच एजेंसियों और प्रशासन की भूमिका अहम होगी। यदि 200 करोड़ रुपये के इस घोटाले से जुड़े दस्तावेज गायब हो जाते हैं, तो जांच निष्पक्ष नहीं रह पाएगी। इसलिए यह आवश्यक है कि कार्यालय स्थानांतरण से पहले सभी महत्वपूर्ण दस्तावेजों की सूची बनाई जाए और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
इसके अलावा, घोटाले में लिप्त अधिकारियों और कर्मचारियों की भूमिका की गहराई से जांच होनी चाहिए, ताकि दोषियों को सजा मिल सके और भविष्य में इस प्रकार की वित्तीय अनियमितताओं को रोका जा सके।