
पुणे, 20 दिसंबर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने पुणे में आयोजित “विश्वगुरु भारत” विषयक व्याख्यान श्रृंखला में अपने संबोधन के दौरान एक महत्वपूर्ण और विचारोत्तेजक बयान दिया। उन्होंने हिंदू नेताओं द्वारा धार्मिक स्थलों को लेकर उठाए जा रहे नए विवादों की निंदा करते हुए कहा कि राम मंदिर जैसे मुद्दे आस्था और सांस्कृतिक भावनाओं से जुड़े हुए थे, लेकिन वर्तमान में खड़े किए जा रहे विवाद भारतीय समाज के लिए हानिकारक हैं।
भागवत ने स्पष्ट रूप से कहा कि “राम मंदिर का निर्माण एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक आवश्यकता थी, जिसे हिंदू समाज ने एकजुट होकर पूरा किया। लेकिन अब नए विवाद खड़ा करना न केवल अनुचित है, बल्कि इससे देश की एकता और सामाजिक समरसता को खतरा है।”
धार्मिक स्थलों पर उठे विवाद
भागवत का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब उत्तर प्रदेश के संभल में शाही जामा मस्जिद और राजस्थान में अजमेर शरीफ दरगाह को लेकर विवाद उठ रहे हैं। इन विवादों ने समाज में बहस और मतभेद को बढ़ावा दिया है। भागवत ने इस पृष्ठभूमि में कहा कि भारत को विविधता में एकता का उदाहरण बनना चाहिए।
उन्होंने कहा, “भारत दुनिया के लिए एक ऐसा आदर्श प्रस्तुत कर सकता है, जो यह सिखाए कि विभिन्न धर्म और विचारधाराएं कैसे साथ रह सकती हैं। लेकिन इसके लिए हमें नफरत और कट्टरता को दूर करना होगा।”
समाज में तनाव कम करने का उपाय: भारतीय संस्कृति
भागवत ने भारतीय संस्कृति की ओर लौटने को वर्तमान समस्याओं का समाधान बताया। उन्होंने कहा, “हमारी प्राचीन संस्कृति हमें यह सिखाती है कि सभी को साथ लेकर चलना चाहिए। अतिवाद, आक्रामकता और दूसरों के धार्मिक विश्वासों का अपमान करना हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं है।”
उन्होंने आगे कहा, “जो लोग समाज में दरार डालने का प्रयास कर रहे हैं, वे भारतीय सभ्यता और उसके मूल्यों के खिलाफ काम कर रहे हैं।”
बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक की अवधारणा खारिज
आरएसएस प्रमुख ने समाज में बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक की धारणाओं को खारिज करते हुए कहा कि “यह देश सभी का है। यहां हर व्यक्ति को अपनी पूजा पद्धति का पालन करने का अधिकार है।”
भागवत ने इस बात पर जोर दिया कि “हमें पुरानी गलतियों से सीखना चाहिए और समाज में समावेशिता को बढ़ावा देना चाहिए। यह केवल धार्मिक या सांस्कृतिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता के लिए भी आवश्यक है।”
समाज पर संभावित प्रभाव
भागवत का यह बयान केवल वर्तमान विवादों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज को समावेशिता और शांति की दिशा में आगे बढ़ाने का प्रयास है। उनका यह संदेश भारतीय समाज के लिए एक नई सोच प्रस्तुत करता है, जो धार्मिक और सांस्कृतिक विविधताओं को एक साथ जोड़ने की कोशिश करता है।
अतिवाद और आक्रामकता के खिलाफ सख्त रुख
भागवत ने अतिवाद और आक्रामकता पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा, “जो लोग दूसरों के धार्मिक विश्वासों का अपमान करते हैं या बल प्रयोग का सहारा लेते हैं, वे भारतीय संस्कृति और परंपराओं के खिलाफ हैं।”
उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे भारतीय सभ्यता के मूल्यों को अपनाएं और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए काम करें।
“विश्वगुरु” बनने की दिशा में भारत
भागवत ने भारत को “विश्वगुरु” बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि “भारत को दुनिया को यह सिखाना चाहिए कि कैसे विविधता में एकता कायम रखी जा सकती है। हमें समावेशिता और सहिष्णुता का अभ्यास करके समाज में शांति और स्थिरता लाने की कोशिश करनी चाहिए।”
उन्होंने कहा कि “भारत को अपनी प्राचीन परंपराओं और सांस्कृतिक मूल्यों को अपनाना होगा। यही हमारी ताकत है और यही हमें वैश्विक स्तर पर अलग बनाती है।”
नई पीढ़ी के लिए सबक
भागवत का यह बयान युवाओं के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है। उन्होंने कहा कि “युवाओं को अपनी जड़ों से जुड़े रहकर समाज में बदलाव लाना चाहिए। हमें ऐसा समाज बनाना चाहिए, जहां हर व्यक्ति को समान अवसर और सम्मान मिले।”
भारत एक नई दिशा की ओर
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का यह बयान भारतीय समाज के लिए एक नई दिशा का संकेत है। यह बयान धार्मिक और सांस्कृतिक मतभेदों को खत्म करने और समाज में समावेशिता को बढ़ावा देने की कोशिश करता है।
भागवत का संदेश केवल हिंदू नेताओं के लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि विवादास्पद मुद्दों से बचना और समाज में शांति और सद्भाव बनाए रखना ही भारत को “विश्वगुरु” बना सकता है।
यह बयान न केवल सामाजिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी इसका बड़ा प्रभाव हो सकता है। अगर समाज इस संदेश को अपनाता है, तो यह भारत को एक ऐसे आदर्श समाज में बदल सकता है, जो विविधता में एकता का सही उदाहरण पेश कर सके।