आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत: “हमें बांग्लादेश में हुई हिंसा से सबक लेना चाहिए”
नई दिल्ली 13 अक्टूबर। हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने समाज और राष्ट्र को लेकर कई महत्वपूर्ण बातें साझा कीं। उन्होंने बांग्लादेश में हो रही हिंसात्मक घटनाओं की ओर संकेत करते हुए इसे देश और समाज के लिए एक गंभीर चेतावनी बताया। भागवत ने अपने विचारों में समाज के सजग होने और अपनी सुरक्षा के प्रति जागरूक होने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि समाज को बाहरी चुनौतियों और खतरे के प्रति सतर्क रहना चाहिए और जब तक प्रशासनिक सहायता नहीं आती, तब तक अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी खुद उठानी होगी।
हिंसा का संदर्भ और उसका समाज पर असर
भागवत ने अपने वक्तव्य में बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों का ज़िक्र किया और कहा कि इन घटनाओं से हमें सावधान होना चाहिए। उन्होंने कहा कि ये घटनाएं प्रशासनिक विफलता की ओर संकेत करती हैं, और इसका सीधा असर समाज पर पड़ता है। प्रशासन का यह कर्तव्य है कि वह ऐसी घटनाओं को रोके, दोषियों को गिरफ्तार करे और उन्हें उचित दंड दे, लेकिन जब तक प्रशासन अपनी कार्रवाई नहीं करता, तब तक समाज को खुद ही अपनी और अपनी संपत्ति की सुरक्षा करनी होगी। भागवत के अनुसार, समाज को हर समय सजग और संगठित रहना चाहिए ताकि इस प्रकार की घटनाओं से निपटा जा सके।
उन्होंने कहा, “ऐसी घटनाओं को रोकना और दोषियों को तुरंत नियंत्रित करना और उन्हें दंडित करना प्रशासन का काम है। लेकिन जब तक वे नहीं आ जाते, तब तक समाज को खुद की और अपनी संपत्ति की रक्षा करनी होगी और अपने प्रियजनों की जान की भी रक्षा करनी होगी।”
डराने या लड़ाई भड़काने का इरादा नहीं
भागवत ने अपने वक्तव्य में स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य डराने या किसी प्रकार की लड़ाई भड़काने का नहीं है, बल्कि वे समाज को जागरूक और सतर्क करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में हम सभी एक कठिन स्थिति का सामना कर रहे हैं, जिसमें समाज की सजगता और आपसी सहयोग की आवश्यकता है। देश की एकता, खुशी, शांति और मजबूती के लिए सभी नागरिकों को अपना योगदान देना चाहिए, विशेषकर हिंदू समाज की जिम्मेदारी अधिक है। भागवत ने कहा, “हम सभी ऐसी स्थिति का अनुभव कर रहे हैं। देश को एकजुट, खुशहाल, शांतिपूर्ण और मजबूत बनाना सभी की जिम्मेदारी है। हिंदू समाज की जिम्मेदारी अधिक है।”
बांग्लादेश में हिंदू उत्पीड़न का मुद्दा
आरएसएस प्रमुख ने बांग्लादेश में हो रहे हिंदुओं के उत्पीड़न का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यक बन चुके हैं और उन्हें भारी उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है। भागवत ने भारतीय सरकार और विश्वभर के हिंदू समुदाय से अपील की कि वे बांग्लादेश में उत्पीड़न का शिकार हो रहे हिंदुओं की मदद करें।
उनका मानना है कि बांग्लादेश में हिंदू समुदाय को संरक्षण की आवश्यकता है और इसके लिए भारत समेत पूरे विश्व के हिंदुओं को आगे आना चाहिए। भागवत ने इस बात पर बल दिया कि हमें बांग्लादेश में हो रहे हिंदू विरोधी हिंसा से सबक लेना चाहिए और समाज को अपने स्तर पर भी संगठित होकर काम करना चाहिए।
कट्टरता और हिंसा में वृद्धि
भागवत ने देश में कट्टरता के बढ़ते मामलों का ज़िक्र करते हुए इसे एक चिंताजनक प्रवृत्ति बताया। उन्होंने कहा कि बिना किसी कारण के कट्टरता को बढ़ावा देने वाली घटनाओं में अचानक वृद्धि देखी जा रही है, जिससे समाज में असुरक्षा का माहौल बन रहा है।
हालांकि उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि हिंसा का सहारा लेना, किसी विशेष समुदाय पर हमला करना या भय पैदा करने की कोशिश करना गुंडागर्दी है और इसका कोई औचित्य नहीं है। भागवत ने यह भी कहा कि हिंसा का विरोध करने और अपने विचार व्यक्त करने के लोकतांत्रिक तरीके हैं, जिन्हें अपनाया जाना चाहिए।
सांस्कृतिक मार्क्सवाद और “वोकिज्म” का ख़तरा
भागवत ने अपने वक्तव्य में सांस्कृतिक मार्क्सवाद और “वोकिज्म” जैसे विषयों को भी उठाया। उन्होंने कहा कि आजकल इन विषयों पर बहुत चर्चा हो रही है, और इनकी विचारधाराएं समाज की सांस्कृतिक परंपराओं के खिलाफ हैं। उन्होंने कहा, “डीप स्टेट”, “वोकिज्म” और “सांस्कृतिक मार्क्सवाद” आजकल चर्चा के विषय हैं। वास्तव में, वे सभी सांस्कृतिक परंपराओं के घोषित दुश्मन हैं।”
भागवत ने कहा कि ये विचारधाराएं समाज के मूल्यों, परंपराओं और पुण्य माने जाने वाले सिद्धांतों का विनाश करना चाहती हैं। ऐसे में समाज को इनके खिलाफ सजग होना चाहिए और इनके दुष्प्रभाव से बचने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक सकारात्मक आख्यान बनाने की आवश्यकता है।
शैक्षणिक संस्थानों में बढ़ते खतरे
उन्होंने कहा कि इन विचारधाराओं का प्रभाव शैक्षणिक संस्थानों पर भी पड़ रहा है, जहां इन विकृत विचारों को छात्रों के बीच फैलाया जा रहा है। उन्होंने चेताया कि शैक्षणिक संस्थान समाज को जागरूक और शिक्षित करने का स्थान होना चाहिए, लेकिन कुछ तत्व इन संस्थानों का उपयोग अपने राजनीतिक और वैचारिक एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए कर रहे हैं।
भागवत ने कहा कि शिक्षा संस्थानों में पनप रही इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए हमें सजग होना चाहिए और समाज को इन विकृत विचारधाराओं से बचाने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए।
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के विचारों ने समाज और राष्ट्र की वर्तमान स्थिति पर एक गहरा विचार-विमर्श प्रस्तुत किया। उन्होंने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों से लेकर देश में कट्टरता और सांस्कृतिक विनाश की ओर बढ़ती प्रवृत्तियों पर खुलकर अपने विचार रखे। भागवत ने अपने वक्तव्य में समाज को जागरूक, संगठित और सतर्क रहने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि हिंसा का सहारा लेने के बजाय समाज को लोकतांत्रिक और कानून के दायरे में रहते हुए अपनी बात को सामने रखना चाहिए।
भागवत का संदेश स्पष्ट है कि समाज को अपने मूल्यों और परंपराओं की रक्षा के लिए सजग रहना चाहिए और इन विकृत विचारधाराओं से लड़ने के लिए संगठित होना चाहिए। उन्होंने देश को एकजुट, शांतिपूर्ण और मजबूत बनाने की दिशा में सभी नागरिकों से जिम्मेदारी लेने की अपील की, विशेष रूप से हिंदू समाज से।

