
विजय कुमार
भारतीय राजनीति में शक्ति प्रदर्शन हमेशा से अहम रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में यह एक नया स्वरूप ले चुका है—निजी गनरों की मौजूदगी। पहले यह सिर्फ बड़े नेताओं तक सीमित था, लेकिन अब छोटे स्तर के नेता भी बिना चार-पांच निजी सुरक्षाकर्मियों के सार्वजनिक रूप से नजर नहीं आते। सवाल यह उठता है कि यह सुरक्षा की जरूरत है या सिर्फ दबदबा दिखाने का तरीका?
इस रिपोर्ट में हम इस बढ़ते चलन की पड़ताल करेंगे—क्या निजी सुरक्षा सच में आवश्यक है, या यह महज राजनीतिक प्रभाव बढ़ाने का एक तरीका बन गया है?
राजनीति और शक्ति प्रदर्शन का नया तरीका
राजनीति में एक कहावत है—”जिसका जितना बड़ा काफिला, उसकी उतनी बड़ी ताकत!” यह बात सिर्फ गाड़ियों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें हथियारबंद गार्ड भी शामिल हो गए हैं।
कई स्थानीय और क्षेत्रीय नेताओं को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे वे किसी हाई-प्रोफाइल पद पर हों। उनके साथ चलने वाले निजी सुरक्षा गार्ड, महंगी गाड़ियाँ और हूटर बजाते वाहन यह आभास कराते हैं कि वे बहुत प्रभावशाली व्यक्ति हैं। लेकिन क्या यह सब उनकी वास्तविक स्थिति को दर्शाता है, या यह केवल एक भ्रमजाल है?
सुरक्षा जरूरत या दिखावा?
यह सत्य है कि कुछ नेताओं को वाकई खतरा होता है और उनकी सुरक्षा आवश्यक होती है। लेकिन हर छोटे नेता या स्वयंभू राजनेता के लिए निजी सुरक्षा अनिवार्य नहीं हो सकती।
सुरक्षा का तर्क:
1. वास्तविक खतरा: कई नेता आपराधिक पृष्ठभूमि से आते हैं या उनका विरोधी गुटों से टकराव होता रहता है। ऐसे में निजी सुरक्षा उनकी जरूरत हो सकती है।
2. राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: चुनावी माहौल में कुछ नेताओं को हमलों या धमकियों का सामना करना पड़ता है, जिससे उन्हें अतिरिक्त सुरक्षा की आवश्यकता होती है।
3. स्थानीय प्रभाव: कई बार किसी क्षेत्र में किसी नेता की लोकप्रियता इतनी बढ़ जाती है कि उनके प्रशंसक और विरोधी दोनों सक्रिय हो जाते हैं, जिससे सुरक्षा की आवश्यकता महसूस की जाती है।
शक्ति प्रदर्शन का तर्क:
1. दबदबा बनाने का प्रयास: जब कोई नेता निजी सुरक्षा गार्ड के साथ चलता है, तो वह जनता के बीच अलग तरह का प्रभाव बनाता है। इससे वह अधिक शक्तिशाली और प्रभावशाली दिखता है।
2. राजनीतिक ब्रांडिंग: कुछ नेताओं के लिए यह उनकी छवि बनाने का हिस्सा होता है। जब वे सुरक्षा गार्डों के साथ चलते हैं, तो जनता उन्हें एक बड़े नेता के रूप में देखने लगती है।
3. प्रतिद्वंद्वियों को संदेश: जब कोई नेता निजी सुरक्षा के साथ चलता है, तो यह उसके विरोधियों के लिए एक संदेश होता है कि वह कमजोर नहीं है और उसके पास साधन-संपन्नता है।
कैसे बन गया यह एक नया ट्रेंड?
पिछले एक दशक में राजनीतिक संस्कृति में बदलाव आया है। नेताओं की छवि केवल उनके कार्यों से नहीं, बल्कि उनके बाहरी प्रदर्शन से भी तय होने लगी है। यह बदलाव कई कारणों से हुआ है
1. सामाजिक मीडिया का प्रभाव:
आज सोशल मीडिया पर नेता अपने प्रभावशाली होने का प्रदर्शन करते हैं। तस्वीरों और वीडियो में सुरक्षा गार्ड के साथ दिखने से वे अधिक प्रभावशाली प्रतीत होते हैं।
2. सिनेमाई प्रभाव:
फिल्मों और वेब सीरीज में बड़े गैंगस्टर और राजनेताओं को भारी सुरक्षा व्यवस्था के साथ दिखाया जाता है। यह जनता की मानसिकता में गहराई से बस गया है कि शक्तिशाली व्यक्ति की पहचान उसकी सुरक्षा व्यवस्था से होती है।
3. प्रतिस्पर्धा का दबाव:
जब एक नेता सुरक्षा गार्डों के साथ चलता है, तो दूसरा भी वैसा ही करने की कोशिश करता है ताकि उसकी छवि कमजोर न पड़े। इस प्रतिस्पर्धा के चलते यह एक फैशन बन चुका है।
4. जनता की मानसिकता:
आम जनता भी किसी नेता की सुरक्षा व्यवस्था देखकर प्रभावित होती है। उन्हें लगता है कि यह नेता सच में बहुत महत्वपूर्ण है, वरना इतनी सुरक्षा की जरूरत क्यों पड़ती?
राजनीतिक सुरक्षा का खर्च कौन उठाता है?
यह सवाल भी महत्वपूर्ण है कि इन निजी गनरों का खर्च कौन उठाता है?
1. सरकार द्वारा दी गई सुरक्षा: कुछ नेताओं को सरकार द्वारा वाई, जेड या जेड+ सुरक्षा दी जाती है। इसमें सरकारी खर्च पर सशस्त्र बल उनकी सुरक्षा करते हैं।
2. निजी सुरक्षा एजेंसियों से ली गई सुरक्षा: कई नेता निजी सुरक्षा एजेंसियों से गनर हायर करते हैं, जिनका मासिक वेतन लाखों रुपये तक हो सकता है।
3. स्थानीय समर्थकों द्वारा इंतजाम: कई बार नेताओं के समर्थक और व्यवसायी उनकी सुरक्षा का खर्च उठाते हैं, ताकि वे नेता के प्रभाव के दायरे में बने रहें।
4. अपराध से जुड़े नेताओं की सुरक्षा: कुछ अपराधी पृष्ठभूमि वाले नेता अपने गिरोह के सदस्यों को ही सुरक्षा गार्ड बना लेते हैं। ये गार्ड नाम मात्र की सुरक्षा देते हैं, लेकिन असल में वे उनके निजी हितों के रक्षक होते हैं।
क्या यह कानूनी है?
भारत में निजी सुरक्षा रखना अवैध नहीं है, लेकिन इसके लिए उचित लाइसेंस और अनुमति जरूरी होती है।
1. आर्म्स एक्ट, 1959:
कोई भी व्यक्ति बिना लाइसेंस के हथियार नहीं रख सकता। निजी सुरक्षा एजेंसियों को भी केवल लाइसेंसी हथियारों की अनुमति होती है।
2. प्राइवेट सिक्योरिटी एजेंसी (रेगुलेशन) एक्ट, 2005:
इस कानून के तहत निजी सुरक्षा एजेंसियों को सरकार से रजिस्ट्रेशन कराना होता है। बिना रजिस्ट्रेशन के निजी गार्ड रखना अवैध माना जाता है।
3. पुलिस की भूमिका:
कई बार पुलिस यह जांचती है कि क्या कोई नेता अवैध तरीके से हथियारबंद सुरक्षाकर्मी रख रहा है? अगर हां, तो उन पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
क्या जनता इस प्रवृत्ति को पसंद करती है?
जनता के बीच इस विषय पर मिश्रित राय देखने को मिलती है। कुछ लोग मानते हैं कि नेताओं को सुरक्षा की जरूरत होती है और गनर रखना उनकी मजबूरी है। कुछ लोग इसे शक्ति प्रदर्शन का हिस्सा मानते हैं और इसे अनावश्यक दिखावा कहते हैं। कई लोग यह भी सवाल उठाते हैं कि क्या यह सरकारी धन का दुरुपयोग है, अगर सुरक्षा सरकारी खर्चे पर दी गई हो?
प्रभात भारत विशेष
राजनीति में निजी गनर रखना अब एक सामान्य बात हो गई है। कुछ मामलों में यह जरूरी है, लेकिन अधिकतर मामलों में यह शक्ति प्रदर्शन और राजनीतिक प्रभाव बढ़ाने का तरीका बन चुका है।
समस्या यह नहीं है कि नेता अपनी सुरक्षा के लिए गनर रख रहे हैं, बल्कि समस्या यह है कि कई नेता इसे राजनीतिक ब्रांडिंग का जरिया बना रहे हैं। इससे जनता में गलत संदेश जाता है और राजनीति में दिखावे की संस्कृति को बढ़ावा मिलता है।
अंततः, यह जनता पर निर्भर करता है कि वह ऐसे नेताओं को किस नजर से देखती है—क्या वे सच में प्रभावशाली हैं, या केवल सुरक्षा के दिखावे से अपनी ताकत का भ्रम पैदा कर रहे हैं?