
ऑपरेशन सिंदूर: भारतीय सशस्त्र बलों की पराक्रम गाथा
नई दिल्ली 7 मई। भारत ने 6 मई की दरमियानी रात को जब अपनी घड़ी की सुइयां 1:05 पर पहुंचीं, तब एक ऐतिहासिक सैन्य अभियान का आगाज़ हुआ, जिसका नाम रखा गया—‘ऑपरेशन सिंदूर’। 25 मिनट की इस बिजली गति वाली कार्रवाई में भारतीय वायुसेना और विशेष बलों की सटीक योजना, साहस और तकनीकी श्रेष्ठता का प्रदर्शन पूरी दुनिया ने देखा। कुल 24 मिसाइलें दागकर नौ आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूद किया गया। इनमें से पांच पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में थे, जबकि चार पाकिस्तान की सीमा के भीतर थे। इस अभियान की खूबी यह रही कि इसमें एक भी पाकिस्तानी आम नागरिक या सैन्य प्रतिष्ठान को नुकसान नहीं पहुंचाया गया। भारतीय सेना ने यह सुनिश्चित किया कि इस हमले की नैतिक वैधता बरकरार रहे।
ऑपरेशन सिंदूर को नाम देने के पीछे एक गहरी रणनीतिक और सांस्कृतिक भावना है। सिंदूर भारतीय संस्कृति में विजय, बलिदान और शक्ति का प्रतीक है। इस ऑपरेशन के जरिए भारत ने न केवल अपने सुरक्षा हितों की रक्षा की, बल्कि आतंक के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति को भी सशक्त रूप में प्रस्तुत किया। आतंकियों को प्रशिक्षित करने, उन्हें भारत में घुसपैठ के लिए तैयार करने और नागरिकों पर हमले के लिए भेजने वाले ठिकानों पर भारत की यह कड़ी कार्रवाई, आने वाले वर्षों की एक स्पष्ट दिशा तय करती है।
इस अभियान की सबसे मार्मिक बात यह रही कि इसमें जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर के परिवार के 10 सदस्य मारे गए। बहावलपुर में स्थित आतंकी अड्डे पर मिसाइल हमले से अजहर की बहन, बहनोई, भांजे, भतीजे, उनके बच्चे और उसकी मां सहित कई करीबी रिश्तेदार मारे गए। यही नहीं, अजहर के चार विश्वासपात्र सहयोगी भी इस ऑपरेशन में ढेर हुए। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मसूद अजहर इस नुकसान से बेहद टूट गया और फूट-फूटकर रोया। यह वही मसूद है, जो भारत पर आतंकी हमलों की साजिश रचते हुए कभी थमता नहीं था।
इस हमले में एक और बड़ी सफलता भारत को तब मिली जब जैश का टॉप ऑपरेशनल कमांडर कारी मोहम्मद इकबाल मारा गया। इकबाल कोटली क्षेत्र के आतंकवादी कैंपों का कमांडर था और भारतीय सीमाओं पर कई हमलों की साजिश में उसका हाथ था। साथ ही, बिलाल आतंकी कैंप का मुखिया याकूब मुगल भी ऑपरेशन सिंदूर में मारा गया, जिससे जैश और लश्कर दोनों को करारा झटका लगा।
आइए जानते हैं उन नौ आतंकी ठिकानों के बारे में, जिन्हें ऑपरेशन सिंदूर में ध्वस्त किया गया। पहला था सवाई नाला कैम्प, जो मुजफ्फराबाद, पीओके में स्थित था। यह लश्कर-ए-तैयबा का प्रमुख शिविर था और नियंत्रण रेखा से 30 किलोमीटर दूर था। यहां से 2024 में सोनगर्म, गुलमर्ग और 2025 में पहलगाम में हुए हमलों के आतंकी प्रशिक्षित होकर आए थे। यह शिविर 2000 से सक्रिय था और पाक सेना तथा आईएसआई की देखरेख में संचालित होता था।
दूसरा ठिकाना था मरकज सैयदना बिलाल कैम्प, जो जैश-ए-मोहम्मद का था। इस शिविर में घने जंगलों में जिंदा रहने की ट्रेनिंग दी जाती थी। हथियारों का भंडारण और विस्फोटकों की असेंबलिंग यहां होती थी। पाकिस्तानी सेना की स्पेशल फोर्सेज यहां आतंकियों को प्रशिक्षित करती थीं।
तीसरा आतंकी शिविर गुलपुर में था, जो कोटली (पीओके) में स्थित था। यह भी लश्कर-ए-तैयबा के अधीन था और यहां से राजौरी, पुंछ और रियासी जैसे इलाकों में घुसपैठ की जाती थी। 2023 और 2024 के हमलों के कई आतंकी इसी कैम्प से निकलकर भारत में दाखिल हुए थे।
चौथा था बरनाला कैम्प, भीमबेर (पीओके) में स्थित। यह नियंत्रण रेखा से मात्र 9 किलोमीटर दूर था और हथियारों व आईईडी का मुख्य भंडार था। एक साथ 100 से अधिक आतंकी इस शिविर में ठहर सकते थे। यह स्थान खासतौर पर लश्कर की घातक टुकड़ियों का प्रशिक्षण केंद्र था।
पांचवां शिविर था अब्बास कैम्प, कोटली में, जो लश्कर और जैश दोनों का साझा अड्डा था। यहां फिदायीन दस्ते तैयार किए जाते थे। कारी जरार नामक खूंखार आतंकी अक्सर यहां आता था। पुंछ और राजौरी सेक्टर में घुसपैठ की अधिकांश घटनाओं की जड़ें इसी कैम्प से जुड़ी थीं।
पाकिस्तान की सीमा में जो चार आतंकी शिविर ध्वस्त किए गए, उनमें बहावलपुर स्थित आतंकी अड्डा सबसे प्रमुख था। यहीं पर मसूद अजहर के परिवार के सदस्य मारे गए। यह जैश का कमांड और कंट्रोल सेंटर था, जहां से पूरे भारत में हमलों की योजना बनाई जाती थी।
दूसरा शिविर पंजाब प्रांत में डेरा गाजी खान के पास स्थित था। यह लश्कर का गुप्त प्रशिक्षण केंद्र था, जहां महिलाओं को भी आत्मघाती दस्ते के लिए प्रशिक्षित किया जाता था। इसमें बड़ी मात्रा में RDX और ड्रोन भी बरामद हुए।
तीसरा अड्डा कराची के बाहरी इलाके में था, जहां भारतीय नौसेना पर संभावित हमलों की साजिशें रची जाती थीं। समुद्र मार्ग से घुसपैठ की ट्रेनिंग दी जाती थी और यहां पाकिस्तानी नौसेना के कुछ गुप्त अफसरों की संलिप्तता के भी प्रमाण मिले हैं।
चौथा अड्डा खैबर पख्तूनख्वा में था। यह आतंकी कैंप अफगान सीमा के पास था और यहां जैश, तहरीक-ए-तालिबान और हक्कानी नेटवर्क का संयुक्त प्रशिक्षण केंद्र था। इस स्थान पर विदेशी आतंकियों की बड़ी संख्या में उपस्थिति ने भारत की सुरक्षा एजेंसियों को चौंका दिया।
ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय सेना ने इजरायली और स्वदेशी तकनीकों का मिश्रण करते हुए बेहद परिष्कृत हथियारों का प्रयोग किया। हवा से सतह पर मार करने वाली ब्रह्मोस मिसाइलें, हर ऑपरेशनल टारगेट पर सटीक बैठीं। साथ ही, स्पाइस-2000 जैसी स्मार्ट बमों से दुश्मन के ठिकानों पर कहर बरपाया गया। भारतीय सेना ने ड्रोन और सैटेलाइट इमेजरी का उपयोग करके रियल टाइम लोकेशन को चिन्हित किया।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने ऑपरेशन के बाद स्पष्ट किया कि यह कार्रवाई आत्मरक्षा के तहत की गई है। भारत की संप्रभुता पर हमला करने वालों को जवाब देना अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत जायज़ है। दुनिया के अधिकांश लोकतांत्रिक देशों ने भारत के इस कदम को आतंक के खिलाफ सशक्त पहल बताया।
पाकिस्तान ने शुरुआत में इस ऑपरेशन से इनकार किया, लेकिन बाद में मसूद अजहर के परिवार की मौत की पुष्टि के बाद उनकी कहानी बदल गई। वहां की सेना और सरकार के बीच तनाव की खबरें भी सामने आईं। विपक्षी दलों ने सरकार की विफलता पर सवाल उठाए और इसे देश की सुरक्षा व्यवस्था की विफलता बताया।
पाकिस्तान के आम नागरिकों में भय और असमंजस की स्थिति पैदा हो गई। कई पत्रकारों और बुद्धिजीवियों ने सोशल मीडिया पर आतंक के खिलाफ भारत की कार्रवाई को समर्थन देते हुए अपने ही देश की नीतियों की आलोचना की। कई ने यह भी सवाल उठाया कि आखिर कब तक पाकिस्तानी सरज़मीं आतंकी गतिविधियों की पनाहगाह बनी रहेगी।
भारत में इस अभियान को लेकर उत्साह और गर्व का माहौल था। रक्षा विशेषज्ञों ने इसे 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 के बालाकोट एयरस्ट्राइक से भी कहीं अधिक सटीक और प्रभावी करार दिया। यह अभियान न केवल सैन्य सफलता का प्रतीक है, बल्कि यह भारत की सामरिक आत्मनिर्भरता की घोषणा भी है।
ऑपरेशन सिंदूर ने एक बार फिर यह संदेश दिया कि भारत आतंकवाद के खिलाफ किसी भी स्तर तक जा सकता है। यह संदेश सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं, बल्कि उन देशों को भी गया जो आतंक को परोक्ष या अपरोक्ष समर्थन देते हैं। यह एक नई सुरक्षा नीति की नींव है, जिसमें स्पष्ट कहा गया है—आतंक का जवाब अब केवल ‘बातचीत’ नहीं, ‘कार्रवाई’ होगी।
अंततः ऑपरेशन सिंदूर एक रणनीतिक, सैन्य और नैतिक जीत है। यह उस भारत का परिचय है जो अब अपने नागरिकों की रक्षा के लिए सीमाओं से परे जाकर भी निर्णायक कदम उठाने से नहीं हिचकिचाता। यह विजय उन शहीदों को समर्पित है, जिन्होंने आतंक के खिलाफ लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दी। ऑपरेशन सिंदूर, भारत की नई सैन्य चेतना की वह लाल रेखा है, जिसे पार करना अब किसी के लिए आसान नहीं होगा।