जम्मू, 14 अक्टूबर। जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक हलचल एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुँच चुकी है, जहाँ नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के वरिष्ठ नेता उमर अब्दुल्ला 16 अक्टूबर को राज्य के नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करेंगे। यह महत्वपूर्ण शपथ ग्रहण समारोह सुबह 11:30 बजे आयोजित होगा, जिससे राज्य में लगभग छह साल बाद एक चुनी हुई सरकार के नेतृत्व में लोकतांत्रिक शासन की वापसी होगी।
उमर अब्दुल्ला, जिनका राजनीतिक करियर व्यापक अनुभव और चुनौतियों से भरा है, ने सोमवार को लेफ्टिनेंट गवर्नर (एलजी) मनोज सिन्हा द्वारा भेजे गए पत्र को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर साझा किया, जिसमें उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के लिए आमंत्रित किया गया था। उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट करते हुए कहा, “एलजी के प्रधान सचिव मनोज सिन्हा जी से मिलकर खुशी हुई। उन्होंने एलजी कार्यालय से मुझे जम्मू-कश्मीर में अगली सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करते हुए एक पत्र सौंपा।”
राष्ट्रपति शासन हटने के बाद नई सरकार का गठन
रविवार को केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन हटा दिया गया, जो पिछले लगभग छह सालों से लागू था। इस महत्वपूर्ण कदम ने हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनावों के बाद नई सरकार के गठन का मार्ग प्रशस्त किया। यह राजनीतिक घटनाक्रम जम्मू-कश्मीर के लिए एक ऐतिहासिक और निर्णायक मोड़ है, जहाँ वर्षों से राजनीतिक अस्थिरता और केंद्र सरकार के प्रत्यक्ष शासन के बीच राज्य की जनता ने लंबा इंतजार किया।
उमर अब्दुल्ला ने शुक्रवार को लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा से मुलाकात की और नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन द्वारा सरकार बनाने का दावा पेश किया। इस मुलाकात के दौरान, अब्दुल्ला ने अपने गठबंधन सहयोगियों का समर्थन पत्र प्रस्तुत किया। इस बैठक से कुछ ही घंटे पहले कांग्रेस ने एनसी के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला को अपना समर्थन देने की घोषणा की थी, जिससे इस गठबंधन की राजनीतिक शक्ति और मजबूती की पुष्टि हुई।
नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन की जीत
हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 90 सीटों वाले जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 42 सीटों पर शानदार जीत हासिल की, जिससे यह सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। चुनाव तीन चरणों में आयोजित किए गए थे, जिसमें जम्मू-कश्मीर के विभिन्न क्षेत्रों से लोगों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ गठबंधन में रही कांग्रेस पार्टी ने भी 6 सीटों पर जीत दर्ज की। इस तरह, दोनों दलों के पास 95 सदस्यीय सदन में बहुमत का आंकड़ा पार करने के लिए पर्याप्त सीटें हैं।
इस गठबंधन को और मजबूत बनाते हुए, चार निर्दलीय विधायकों और आम आदमी पार्टी (आप) के एकमात्र विधायक ने भी नेशनल कॉन्फ्रेंस को अपना समर्थन दिया है, जिससे इस गठबंधन की स्थिति और मजबूत हो गई है। इन अतिरिक्त समर्थन के साथ, उमर अब्दुल्ला की मुख्यमंत्री पद की दावेदारी को एक मजबूत समर्थन प्राप्त हुआ है, और अब वह निर्विवाद रूप से जम्मू-कश्मीर के अगले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करने की तैयारी कर रहे हैं।
उमर अब्दुल्ला का राजनीतिक करियर और मुख्यमंत्री के रूप में दूसरा कार्यकाल
उमर अब्दुल्ला का राजनीतिक करियर न केवल जम्मू-कश्मीर बल्कि पूरे भारत में गहराई से देखा गया है। वह जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला के पुत्र हैं और अब तक कई महत्वपूर्ण राजनीतिक और प्रशासनिक जिम्मेदारियाँ निभा चुके हैं। उमर अब्दुल्ला पहले भी जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उनका पहला कार्यकाल 2009 से 2014 तक था, जब उन्होंने एनसी और कांग्रेस के गठबंधन के प्रमुख के रूप में राज्य का नेतृत्व किया था।
मुख्यमंत्री के रूप में उनके पहले कार्यकाल के दौरान, उमर अब्दुल्ला ने कई महत्वपूर्ण नीतिगत सुधारों और विकास कार्यों की शुरुआत की। हालांकि, उनके कार्यकाल को कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा, विशेषकर कश्मीर घाटी में लगातार उभरते राजनीतिक तनाव और सुरक्षा मुद्दों के कारण। इसके बावजूद, उमर अब्दुल्ला की नेतृत्व क्षमता और उनकी प्रशासनिक दक्षता को व्यापक सराहना मिली।
अब, मुख्यमंत्री के रूप में उनके दूसरे कार्यकाल के लिए चुने जाने के बाद, उमर अब्दुल्ला के सामने चुनौतियाँ और भी जटिल हैं, लेकिन उनके पास इन चुनौतियों से निपटने का अनुभव और आत्मविश्वास भी है।
गठबंधन सरकार और नई सरकार की प्राथमिकताएँ
नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के गठबंधन के तहत बनने वाली यह नई सरकार जम्मू-कश्मीर के लिए कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना करेगी। राज्य में विकास, स्थिरता, और शांति लाने के लिए इस सरकार की प्राथमिकताएँ स्पष्ट रूप से तय होंगी। हाल के वर्षों में जम्मू-कश्मीर ने आतंकवाद, हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता का सामना किया है। ऐसे में उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली यह सरकार राज्य में शांति और स्थिरता लाने के लिए अहम कदम उठा सकती है।
इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर में शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढाँचे के विकास जैसे मुद्दे भी सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल होंगे। लंबे समय से राष्ट्रपति शासन के कारण राज्य में कई विकास परियोजनाएँ ठप पड़ी हुई थीं, जिन्हें अब गति दी जा सकती है।
गठबंधन सरकार का गठन यह भी सुनिश्चित करेगा कि राज्य के विभिन्न हिस्सों और समुदायों के बीच समन्वय और सहयोग बना रहे। जम्मू और कश्मीर की भौगोलिक और सांस्कृतिक विभाजन को देखते हुए, नई सरकार के लिए यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण होगा कि सभी क्षेत्रों और समुदायों की आवाज़ को सुना जाए और उन्हें उचित प्रतिनिधित्व मिले।
केंद्र-राज्य संबंध और संवैधानिक बदलाव
जम्मू-कश्मीर के लिए यह राजनीतिक पुनर्गठन केंद्र और राज्य के संबंधों के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण है। 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के बाद से जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिला हुआ था, और इसे केंद्र शासित प्रदेश में बदल दिया गया था। हालांकि, इस नई सरकार के गठन के साथ, राज्य की राजनीतिक संरचना और अधिकारों में बदलाव देखने को मिल सकते हैं।
उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में गठबंधन सरकार केंद्र सरकार के साथ बेहतर समन्वय स्थापित करने की कोशिश कर सकती है। हालांकि, यह देखना बाकी है कि उमर अब्दुल्ला और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के बीच कैसा तालमेल बनेगा, क्योंकि दोनों के राजनीतिक दृष्टिकोण में काफी भिन्नताएँ हैं।
स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ
उमर अब्दुल्ला के मुख्यमंत्री के रूप में फिर से शपथ लेने की घोषणा पर विभिन्न स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं। जम्मू-कश्मीर के विभिन्न राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन इस घटनाक्रम को राज्य के लिए एक सकारात्मक कदम मान रहे हैं। राज्य की जनता ने भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया की वापसी का स्वागत किया है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक स्थिरता की वापसी का व्यापक समर्थन किया जा रहा है। कई देशों ने उम्मीद जताई है कि नई सरकार राज्य में शांति और विकास को बढ़ावा देगी और क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करेगी।
चुनौतियों का सामना
हालांकि, नई सरकार के सामने चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। राज्य में आतंकवाद और चरमपंथ अब भी एक गंभीर समस्या बने हुए हैं। इसके अलावा, राजनीतिक ध्रुवीकरण और असंतोष भी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती हो सकता है। उमर अब्दुल्ला को अपने गठबंधन सरकार में संतुलन बनाए रखना होगा, साथ ही राज्य में विकास और सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।
सुरक्षा के अलावा, आर्थिक मुद्दे भी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती होंगे। जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था पर्यटन और कृषि पर निर्भर है, और हाल के वर्षों में इन दोनों क्षेत्रों को गंभीर झटके लगे हैं। सरकार को राज्य में निवेश को प्रोत्साहित करने, पर्यटन उद्योग को पुनर्जीवित करने और रोजगार के नए अवसर पैदा करने के लिए काम करना होगा।
प्रभात भारत विशेष
उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन सरकार के गठन से जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक स्थिरता की उम्मीद जगी है। यह सरकार राज्य के विकास, सुरक्षा और शांति की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा सकती है। हालाँकि, सरकार के सामने चुनौतियाँ भी कम नहीं होंगी, लेकिन उमर अब्दुल्ला का राजनीतिक अनुभव और उनके गठबंधन की ताकत राज्य के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।
16 अक्टूबर को होने वाले शपथ ग्रहण समारोह के बाद जम्मू-कश्मीर में एक नई राजनीतिक यात्रा की शुरुआत होगी। यह यात्रा राज्य के भविष्य को किस दिशा में ले जाएगी, यह देखना अब बाकी है

