
नई दिल्ली (विजय प्रताप पांडे) 25 अक्टूबर। भारत और अमेरिका के बीच बढ़ते कूटनीतिक तनाव का एक प्रमुख मुद्दा आतंकवादी अभियुक्तों का प्रत्यर्पण बन गया है। एक ओर, अमेरिकी संघीय जांच ब्यूरो (एफबीआई) ने हाल ही में विकास यादव का पोस्टर जारी किया है, जो खालिस्तानी अलगाववादी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश में कथित रूप से शामिल है। दूसरी ओर, भारत ने एक बार फिर से मुंबई के 2008 के 26/11 हमलों के मास्टरमाइंड डेविड कोलमैन हेडली के प्रत्यर्पण की अपनी पुरानी मांग को फिर से ताजा किया है। भारत के लिए यह सवाल अब केवल न्याय का नहीं रह गया है, बल्कि यह उसकी वैश्विक स्थिति और अमेरिका के साथ उसके रिश्तों के संतुलन को तय करने वाला है।
अमेरिका और भारत के बीच प्रत्यर्पण की राजनीति
भारत ने बार-बार डेविड हेडली और तहव्वुर हुसैन राणा के प्रत्यर्पण की मांग की है, जो 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए वांछित हैं। इन हमलों में 166 लोग मारे गए थे, जिनमें छह अमेरिकी नागरिक भी शामिल थे। भारतीय अधिकारियों का मानना है कि हेडली, जिसे पहले दाऊद गिलानी के नाम से जाना जाता था, ने पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के लिए मुंबई हमलों की रेकी की थी। हेडली ने अमेरिकी पासपोर्ट का इस्तेमाल कर भारत की यात्रा की, जिससे वह पाकिस्तानी नागरिकों की जांच से बच पाया।
हालांकि, हेडली पर अमेरिका में मुकदमा चलाया गया और उसे दोषी ठहराया गया, लेकिन भारत को अब तक उसका प्रत्यर्पण नहीं मिला है। यह सवाल अब उठ रहा है कि अमेरिका, जो आतंकवाद विरोधी अभियानों में सबसे आगे रहता है, उसने हेडली को भारत को सौंपने में इतनी देर क्यों कर दी है।
हेडली के डीईए से संबंध: भारत के लिए कठिनाई
हेडली का मामला इसलिए जटिल है क्योंकि उसके अमेरिकी ड्रग प्रवर्तन एजेंसी (DEA) के साथ संबंध रहे हैं। हेडली ने DEA के मुखबिर के रूप में भी काम किया था, जिसके कारण उसके लश्कर-ए-तैयबा के साथ संबंधों की अनदेखी की गई। यह संभावना जताई जाती है कि डीईए के साथ उसके काम ने उसके खिलाफ ठोस सबूतों को नजरअंदाज करने में मदद की, जिससे उसकी भारतीय एजेंसियों की पकड़ में आने से बचने की संभावना बनी रही। यही कारण है कि अमेरिका अब तक उसे भारत को सौंपने में हिचकिचा रहा है।
भारत इस मुद्दे को जोर-शोर से उठा रहा है। भारतीय अधिकारियों का मानना है कि हेडली का प्रत्यर्पण न केवल न्याय की मांग है, बल्कि यह एक मजबूत संदेश भी होगा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में कोई भी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी देश का नागरिक हो, छूट नहीं सकता। अमेरिका, जो आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में नेतृत्वकर्ता होने का दावा करता है, यदि वह हेडली को सौंपने में विफल रहता है, तो उसकी साख पर भी सवाल खड़ा हो सकता है।
विकास यादव का मामला: नई कूटनीतिक चुनौती
इस बीच, विकास यादव का मामला भारत के लिए एक नई कूटनीतिक चुनौती बनकर सामने आया है। यादव पर आरोप है कि वह खालिस्तानी अलगाववादी नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश में शामिल था। पन्नू, जिसे भारत ने आतंकवादी घोषित कर रखा है, अमेरिका और कनाडा दोनों की नागरिकता रखता है। यादव की भूमिका को लेकर अमेरिका ने अपने कानूनी उपकरणों का इस्तेमाल किया है, और अब उसे पकड़ने की कोशिश कर रहा है।
यह मामला भारत और अमेरिका के बीच पहले से चल रहे प्रत्यर्पण मुद्दों को और जटिल बना सकता है। अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने हाल ही में टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए गए एक साक्षात्कार में संकेत दिया है कि वाशिंगटन डीसी, नई दिल्ली पर यादव को गिरफ्तार करने और प्रत्यर्पित करने का दबाव डाल सकता है।
यहां सवाल यह उठता है कि क्या अमेरिका वास्तव में विकास यादव के मामले में भारत पर दबाव बना सकता है, जबकि वह खुद हेडली और राणा के मामले में भारत की मांगों को पूरा करने में विफल रहा है।
भारत का हेडली के प्रत्यर्पण पर दोबारा जोर
भारत ने हेडली के प्रत्यर्पण के लिए अपने अनुरोधों को दोबारा उठाने की योजना बनाई है। भारतीय अधिकारियों के अनुसार, हेडली के प्रत्यर्पण से न केवल 26/11 के पीड़ितों के परिवारों को न्याय मिलेगा, बल्कि यह अमेरिका और भारत के बीच आतंकवाद विरोधी सहयोग को भी मजबूती देगा।
अमेरिका के लिए हेडली को सौंपना आसान नहीं हो सकता है। डीईए के साथ उसके संबंधों ने मामले को जटिल बना दिया है, लेकिन भारतीय सरकार स्पष्ट कर चुकी है कि वह अपने प्रयासों में कोई कमी नहीं छोड़ेगी। नई दिल्ली इस मुद्दे को लेकर वाशिंगटन पर लगातार दबाव बनाए हुए है, और संकेत मिल रहे हैं कि भारत हेडली के प्रत्यर्पण के लिए एक नया अनुस्मारक भेज सकता है।
तहव्वुर हुसैन राणा का मामला
हेडली के अलावा, तहव्वुर हुसैन राणा का प्रत्यर्पण भी एक लंबित मुद्दा है। राणा, जो एक पाकिस्तानी मूल का कनाडाई ट्रैवल एजेंट है, ने 26/11 के हमलों की साजिश में हेडली की मदद की थी। उसने हेडली के लिए यात्रा टिकट की व्यवस्था की थी और उसे भारत भेजने में मदद की थी।
अमेरिकी अदालत ने पिछले साल राणा के प्रत्यर्पण को मंजूरी दी थी, लेकिन उसके वकीलों ने भारत में आरोपों का सामना करने के लिए नई दिल्ली के प्रयास को विफल करने के लिए कानूनी चालें चली हैं। राणा ने अपने प्रत्यर्पण का विरोध करने के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी, लेकिन इसे खारिज कर दिया गया।
अमेरिका पर भारत का दबाव
अमेरिका के लिए यह समय है कि वह अपने दावे के अनुरूप काम करे। भारत अब यह स्पष्ट रूप से बता रहा है कि यदि अमेरिका वास्तव में आतंकवाद के खिलाफ अपनी प्रतिबद्धता पर खरा उतरना चाहता है, तो उसे हेडली और राणा को भारत के हवाले करना चाहिए।
विकास यादव के मामले में अमेरिका का भारत पर दबाव डालने का प्रयास, हेडली और राणा के प्रत्यर्पण की मांग के बीच और अधिक जटिलताओं को जन्म दे सकता है। यदि अमेरिका यादव को लेकर भारत पर दबाव डालता है, तो भारत भी इस अवसर का उपयोग हेडली और राणा के मुद्दे पर अपनी स्थिति को और मजबूत करने के लिए करेगा।
भारत का सख्त रुख
भारत का रुख अब बेहद स्पष्ट है। हेडली और राणा जैसे आतंकवादियों का प्रत्यर्पण भारतीय कूटनीति की प्राथमिकता है। अमेरिका को यह समझना होगा कि यदि वह भारत के साथ अपने रिश्तों को और मजबूत करना चाहता है, तो उसे इन मुद्दों पर भारत की मांगों को गंभीरता से लेना होगा।
हेडली का प्रत्यर्पण केवल एक कानूनी मामला नहीं है; यह भारत की संप्रभुता, न्याय और आतंकवाद के खिलाफ उसकी लड़ाई का भी प्रतीक है। भारत का यह सख्त रुख यह दिखाता है कि वह अब आतंकवाद के मुद्दे पर किसी भी देश के साथ समझौता करने के लिए तैयार नहीं है, चाहे वह अमेरिका ही क्यों न हो।
आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिका किस तरह से इन मुद्दों को संभालता है और क्या वह वास्तव में हेडली और राणा को भारत को सौंपने के लिए कदम उठाता है। एक बात तो स्पष्ट है—भारत अब अपने हितों के प्रति अधिक मुखर और आक्रामक हो रहा है, और अमेरिका को इस बात का ध्यान रखना होगा कि वह भारतीय जनभावनाओं और न्याय की मांगों को नजरअंदाज नहीं कर सकता।