
गोंडा 1 जनवरी। गोंडा जिसे अक्सर भ्रष्टाचार के केंद्र के रूप में जाना जाता था, एक बार फिर सुर्खियों में है। पहले खाद्यान्न घोटाला, फिर मनरेगा और एनआरएचएम जैसे मामलों के बाद अब बेसिक शिक्षा विभाग में फर्जीवाड़ा सामने आया है। जिले के कुछ लघु माध्यमिक विद्यालयों ने प्राथमिक विद्यालयों के नाम पर सरकारी अनुदान हड़पने की कोशिश की है। इस घटना ने शिक्षा विभाग और शासन व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
फर्जी मान्यता पत्र का खेल
गोंडा जिले में कुल 29 अनुदानित विद्यालय हैं। इनमें से कुछ ने फर्जी मान्यता प्रमाणपत्र और दस्तावेज बनाकर सरकारी अनुदान प्राप्त करने का प्रयास किया। इसका सबसे बड़ा उदाहरण परसपुर ब्लॉक के सूकर खेत लघु माध्यमिक विद्यालय का है। यह विद्यालय कक्षा 6 से 8 तक संचालित होता है, लेकिन विद्यालय प्रबंधन ने दावा किया कि यहां 1992 से कक्षा 1 से 5 तक की पढ़ाई भी हो रही है। इसके लिए एक फर्जी मान्यता प्रमाणपत्र तैयार किया गया और इसे बेसिक शिक्षा विभाग में जमा कर दिया गया।
कैसे हुआ फर्जीवाड़ा?
इस मामले में सामने आए तथ्यों के अनुसार, विद्यालय प्रबंधन ने स्कैनिंग और एडिटिंग के जरिए फर्जी दस्तावेज तैयार किए। इन दस्तावेजों में मान्यता का प्रमाणपत्र, छात्रों की संख्या और अन्य विवरण शामिल थे। विभागीय अभिलेखों में जब इन दस्तावेजों की जांच की गई, तो पाया गया कि ये प्रमाणपत्र पूरी तरह से फर्जी हैं।
बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) ने बताया कि विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार, विद्यालय को प्राथमिक कक्षाओं के लिए कोई मान्यता प्राप्त नहीं थी। इसके बावजूद विद्यालय प्रबंधन ने फर्जी तरीके से मान्यता लेने की कोशिश की। मामले की गंभीरता को देखते हुए बीएसए ने विभागीय कार्रवाई का आदेश दिया है।
विद्यालय प्रबंधन के बीच मची खलबली
जैसे ही फर्जीवाड़े का यह मामला उजागर हुआ, जिले के अन्य संदिग्ध विद्यालय प्रबंधकों में खलबली मच गई। कई विद्यालयों ने अपने आवेदन वापस ले लिए हैं। यह स्पष्ट है कि कुछ विद्यालयों ने इसी तरह के फर्जी दस्तावेज बनाकर सरकारी अनुदान प्राप्त करने की योजना बनाई थी।
शासन और जनता की उम्मीदें
इस मामले ने शासन व्यवस्था और शिक्षा विभाग की साख को फिर से कठघरे में खड़ा कर दिया है। हालांकि, बेसिक शिक्षा अधिकारी ने कड़ी कार्रवाई का आश्वासन दिया है, लेकिन जनता की निगाहें शासन पर टिकी हुई हैं। सवाल यह है कि क्या केवल विभागीय कार्रवाई पर्याप्त होगी, या इस घोटाले के दोषियों को कानूनी प्रक्रिया के तहत कठोर दंड दिया जाएगा।
फर्जीवाड़े की व्यापकता
गोंडा जैसे जिले में यह पहला मामला नहीं है जब शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ हो। पहले भी जिले में शिक्षकों की फर्जी नियुक्तियों, मिड-डे मील योजना में गड़बड़ियों और विद्यालयों के नाम पर सरकारी धन के दुरुपयोग के मामले सामने आए हैं। इस बार का मामला इसलिए अधिक गंभीर है क्योंकि इसमें अनुदान प्राप्त करने के लिए सीधे फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल किया गया।
सरकारी धन का दुरुपयोग
सरकार का उद्देश्य शिक्षा के माध्यम से समाज के पिछड़े वर्गों को सशक्त बनाना है। ऐसे में सरकारी अनुदान का दुरुपयोग न केवल आर्थिक हानि है, बल्कि यह शिक्षा के अधिकार जैसे मूलभूत सिद्धांतों का भी अपमान है।
जांच की दिशा और उम्मीदें
बेसिक शिक्षा विभाग ने घोटाले की जांच शुरू कर दी है। बीएसए ने स्पष्ट किया है कि दोषियों के खिलाफ न केवल विभागीय कार्रवाई की जाएगी, बल्कि वित्त और लेखा विभाग के साथ समन्वय कर पूरे प्रकरण की गहन जांच होगी।
हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि शासन इस मामले में क्या कदम उठाता है। क्या दोषियों को कठोर सजा मिलेगी, या यह मामला भी अन्य घोटालों की तरह समय के साथ ठंडे बस्ते में चला जाएगा? गोंडा जिले में बार-बार होने वाले घोटालों से जनता अब यह सवाल पूछ रही है कि क्या प्रशासन और सरकार इन घटनाओं पर पूर्ण विराम लगा पाएंगे?
प्रभात भारत विशेष
बेसिक शिक्षा विभाग में सामने आया यह फर्जीवाड़ा केवल एक घोटाला नहीं है; यह शिक्षा प्रणाली और प्रशासन की नाकामी का प्रतीक है। यह घटना दर्शाती है कि भ्रष्टाचार जड़ से खत्म करने के लिए कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है। शासन को चाहिए कि वह दोषियों पर न केवल कार्रवाई करे, बल्कि ऐसी प्रणाली विकसित करे, जिससे भविष्य में इस तरह के घोटाले रोके जा सकें। जनता को भी सतर्क रहना होगा और ऐसे मामलों में शासन और प्रशासन से जवाबदेही की मांग करनी होगी।