
नई दिल्ली ( विजय प्रताप पांडे )। भारत के अपने पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों का ताना-बाना लंबे समय से भू-राजनीतिक चर्चा का केंद्र रहा है। पड़ोसी देशों के साथ संबंध बनाए रखना और अपने हितों की रक्षा करना भारत के लिए हमेशा एक चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है। चाहे बात पाकिस्तान की हो, जो दशकों से आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है, या मालदीव जैसी छोटी लेकिन रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण देशों की, जो कभी चीन के प्रभाव में जा चुका था—भारत के लिए यह समझना आवश्यक हो गया है कि वह अपने पड़ोसियों को नहीं बदल सकता, लेकिन उनके व्यवहार को जरूर बदल सकता है।
इस लेख में हम गहराई से समझने की कोशिश करेंगे कि किस तरह भारत ने मालदीव को अपने करीब लाने में सफलता हासिल की, और क्या वही नीति पाकिस्तान के लिए भी कारगर हो सकती है। साथ ही, हम यह भी देखेंगे कि कैसे भारत ने गाजर-और-छड़ी की नीति का प्रयोग किया और क्या यह रणनीति पड़ोसी देशों के साथ दीर्घकालिक संबंध बनाने में सहायक हो सकती है।
मालदीव: चीन के प्रभाव से भारत की ओर वापसी
चीन के प्रभाव में मालदीव की फिसलन
2013 से 2018 तक मालदीव के राष्ट्रपति यामीन अब्दुल गय्यूम का शासनकाल वह दौर था जब मालदीव धीरे-धीरे चीन के प्रभाव में जाने लगा। यामीन ने भारत से दूर रहकर चीन के साथ अपने संबंध मजबूत किए और बड़े पैमाने पर चीन से निवेश और आर्थिक सहायता प्राप्त की। इस दौरान चीन की “बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव” (BRI) के तहत मालदीव में कई बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को चलाया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि भारत और मालदीव के संबंधों में तनाव बढ़ने लगा।
चीन का उद्देश्य हिंद महासागर में अपनी स्थिति को मजबूत करना और भारत को घेरना था, और मालदीव इस योजना का एक अहम हिस्सा था। मालदीव की भौगोलिक स्थिति इसे रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाती है, क्योंकि यह भारत के समुद्री मार्गों के काफी करीब है। चीन के साथ बढ़ते संबंधों के कारण मालदीव ने अपने पारंपरिक सहयोगी भारत से दूरी बना ली, जिससे भारत की समुद्री सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौतियाँ उत्पन्न होने लगीं।
भारत की गाजर-और-छड़ी वाली कूटनीति
भारत ने मालदीव की इस फिसलन को रोकने के लिए गाजर-और-छड़ी वाली कूटनीति का सहारा लिया।
गाजर: आर्थिक सहयोग और पर्यटन
भारत ने मालदीव के साथ अपने संबंध सुधारने के लिए आर्थिक सहायता और निवेश का सहारा लिया। जब मालदीव की नई सरकार ने भारत के साथ संबंध सुधारने के संकेत दिए, तब भारत ने 400 मिलियन डॉलर का पुनर्वित्तपोषण पैकेज दिया, जिससे मालदीव की आर्थिक स्थिति को स्थिर करने में मदद मिली। इसके अलावा, भारतीय पर्यटकों के लिए आकर्षक योजनाएँ और प्रोत्साहन दिए गए, क्योंकि मालदीव की अर्थव्यवस्था का 30% हिस्सा पर्यटन पर निर्भर है, और भारतीय पर्यटक इसका सबसे बड़ा स्रोत हैं।
मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने भारत के साथ अपने रिश्तों को सुधारने की दिशा में कदम बढ़ाया और बॉलीवुड निर्माताओं से मुलाकात कर उन्हें मालदीव में शूटिंग करने का निमंत्रण दिया। इससे मालदीव को पर्यटन के क्षेत्र में और लाभ हो सकता है, क्योंकि भारतीय फिल्म उद्योग का वैश्विक प्रभाव है और इससे मालदीव की छवि को फायदा हो सकता है।
छड़ी: पर्यटन बहिष्कार और दबाव
जब मालदीव ने “इंडिया आउट” नीति अपनाई और भारतीय सैनिकों को हटाने की मांग की, तब भारत ने अपनी नीति में कड़ा रुख अपनाया। भारतीय पर्यटकों ने मालदीव का बहिष्कार करना शुरू किया, जिससे मालदीव की अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर पड़ा। पर्यटन से होने वाली आय में गिरावट आने के बाद मुइज़्ज़ू को यह एहसास हुआ कि भारत से दूरी बनाना उनके देश के लिए आर्थिक रूप से घातक साबित हो सकता है।
इस गाजर-और-छड़ी की नीति ने अंततः मुइज़्ज़ू को भारत के साथ अपने संबंध सुधारने के लिए प्रेरित किया। यह भारत की कूटनीतिक सफलता थी, जो दर्शाती है कि कैसे वह अपने पड़ोसी देशों के व्यवहार को बदलने में सक्षम है, भले ही वे चीन जैसे बड़े देशों के प्रभाव में क्यों न आ गए हों।
पाकिस्तान: क्या गाजर-और-छड़ी की नीति काम करेगी?
अब सवाल यह उठता है कि क्या वही नीति पाकिस्तान के साथ भी लागू की जा सकती है, जो दशकों से आतंकवाद का समर्थन करता आ रहा है और चीन के साथ अपने संबंधों को मजबूत कर रहा है।
पाकिस्तान और आतंकवाद
पाकिस्तान का आतंकवाद को लेकर रवैया भारत के लिए हमेशा से एक बड़ी चुनौती रहा है। सीमा पार से होने वाले आतंकी हमलों ने भारत-पाक संबंधों को कभी सामान्य नहीं होने दिया। 2019 में पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारत ने सख्त सैन्य जवाबी कार्रवाई की थी, जिसके बाद दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया।
पाकिस्तान का आधिकारिक रुख यह है कि जब तक भारत जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को वापस नहीं लेता, तब तक बातचीत संभव नहीं है। लेकिन भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि अनुच्छेद 370 खत्म हो चुका है और अब कोई भी बातचीत सिर्फ पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) पर ही होगी।
चीन के साथ पाकिस्तान की निकटता
चीन और पाकिस्तान के बीच गहरी होती दोस्ती ने भी भारत के लिए एक और मोर्चे पर चुनौती खड़ी की है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) और अन्य परियोजनाओं के चलते पाकिस्तान ने चीन के साथ अपने आर्थिक और सैन्य संबंध मजबूत कर लिए हैं।
चीन, पाकिस्तान को हर तरह से समर्थन दे रहा है, जिससे भारत के लिए स्थिति और भी जटिल हो गई है। चीन की रणनीति पाकिस्तान के माध्यम से भारत पर दबाव बनाए रखना है, और पाकिस्तान इसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहा है।
गाजर-और-छड़ी का प्रयोग: क्या यह संभव है?
मालदीव के मामले में गाजर-और-छड़ी की नीति सफल रही, लेकिन पाकिस्तान के मामले में यह नीति उतनी कारगर नहीं हो सकती। पाकिस्तान के साथ समस्या यह है कि वहां की सेना और खुफिया एजेंसी (आईएसआई) की ताकत बहुत ज्यादा है, जो देश की विदेश नीति को नियंत्रित करती है। पाकिस्तान में लोकतांत्रिक सरकारें भी आईं, लेकिन वहां की सेना का दबदबा हमेशा से हावी रहा है।
पाकिस्तान को आर्थिक दबाव में लाने का एक रास्ता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसे अलग-थलग करना हो सकता है। फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) द्वारा पाकिस्तान को “ग्रे लिस्ट” में डालना एक बड़ा कदम था, जिससे पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुंचा और उसकी अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ा। लेकिन पाकिस्तान ने अब भी अपनी नीतियों में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया है।
भारत को पाकिस्तान के साथ बातचीत करने से पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि वह आतंकवाद का समर्थन बंद करे। इसके लिए पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ाना आवश्यक है, ताकि वह अपने व्यवहार में सुधार करे।
प्रभात भारत विशेष
मालदीव और पाकिस्तान, दोनों ही भारत के पड़ोसी देश हैं, लेकिन इनके साथ संबंधों को सुधारने के लिए अलग-अलग दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। मालदीव के मामले में गाजर-और-छड़ी की नीति सफल रही, क्योंकि वहां की सरकार ने अपने आर्थिक हितों को ध्यान में रखते हुए भारत के साथ संबंध सुधारने की दिशा में कदम बढ़ाए।
लेकिन पाकिस्तान के मामले में स्थिति जटिल है। वहां की सेना और आतंकवाद के समर्थन के चलते भारत को एक अधिक सख्त और संयमित नीति अपनानी होगी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को दबाव में लाने के साथ-साथ भारत को अपनी सुरक्षा को और मजबूत करना होगा।
भारत अपने पड़ोसियों को नहीं बदल सकता, लेकिन वह उनके जहरीले व्यवहार को जरूर बदल सकता है। मालदीव इसका उदाहरण है, और पाकिस्तान के मामले में भी यह संभव है, बशर्ते कि सही रणनीति अपनाई जाए।