
नई दिल्ली 2 नवंबर (विजय कुमार पांडे)। भारत की विदेश नीति वर्षों से कई सिद्धांतों पर आधारित रही है, जिसमें ‘गुटनिरपेक्षता’, ‘वसुधैव कुटुंबकम्’, और ‘प्रथम पड़ोसी नीति’ जैसे सिद्धांत प्रमुख रहे हैं। इसके माध्यम से भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ शांतिपूर्ण और सहयोगी संबंधों को प्राथमिकता देता है। हालाँकि, बदलते वैश्विक परिदृश्य और भारत की उभरती आर्थिक शक्ति के चलते आज भारत की विदेश नीति में नई सोच और दृष्टिकोण शामिल हो रहे हैं।
वर्तमान में, भारत वैश्विक शक्ति बनने की दिशा में अग्रसर है। इसके लिए भारत को केवल सैन्य शक्ति ही नहीं, बल्कि एक मजबूत अर्थव्यवस्था भी बनानी होगी। जब किसी देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है, तो वह दूसरे देशों पर अधिक प्रभाव डाल सकता है। चीन इसका प्रमुख उदाहरण है, जिसने अपनी आर्थिक ताकत के माध्यम से दक्षिण एशिया में बड़ा प्रभाव बनाया है।
भारत का आर्थिक विकास और उसकी विदेश नीति में भूमिका
भारत के आर्थिक सुधार
- 1991 के आर्थिक सुधारों ने भारत को वैश्विक बाजार का हिस्सा बना दिया। इन सुधारों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को विदेशी निवेश और व्यापार के लिए खोल दिया, जिससे भारत का विकास हुआ और यह दक्षिण एशिया का प्रमुख आर्थिक शक्ति बन गया।
आर्थिक सुधारों का प्रभाव
- भारत के बढ़ते आर्थिक विकास ने उसे एक महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार बना दिया है। विशेषकर, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका जैसे देशों के लिए भारत की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गई है, क्योंकि इन देशों के बड़े हिस्से का व्यापार और आर्थिक निर्भरता भारत पर है।
चीन से तुलना
- भारत की तुलना चीन से की जाए तो दोनों के बीच का आर्थिक अंतर साफ़ दिखाई देता है। चीन की अर्थव्यवस्था, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का पाँच गुना से अधिक है, वैश्विक मंच पर बड़ी भूमिका निभा रही है। इससे भारत पर यह दबाव बनता है कि वह अपने आर्थिक संसाधनों का विस्तार करे और वैश्विक व्यापार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाए।
भारत का आर्थिक विकास उसके पड़ोसी देशों पर अधिक प्रभाव डालने में सहायक हो सकता है। जब कोई देश आर्थिक रूप से सशक्त होता है, तो उसे अपने पड़ोस में भी एक मजबूत स्थिति मिलती है। उदाहरणस्वरूप, बांग्लादेश में चीन के बावजूद भारत का प्रभाव अधिक है, क्योंकि उसके ज्यादातर उद्योगों में भारत से ही कच्चा माल आता है।
भारत और उसके पड़ोसी देशों की भू-राजनीतिक स्थिति
बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता
- बांग्लादेश की राजनीति में भारत के अनुकूल शेख हसीना सरकार का प्रभावी योगदान रहा है। शेख हसीना ने भारत के साथ संबंध मजबूत बनाए रखे, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ा है। हालाँकि, किसी नए नेतृत्व की संभावनाओं में भारत को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता हो सकती है।
श्रीलंका और मालदीव में प्रभाव
- भारत और चीन के बीच शक्ति संघर्ष में श्रीलंका और मालदीव जैसे छोटे द्वीप देश भी फँसे हुए हैं। श्रीलंका में चीन का बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचा निवेश है, लेकिन भारत ने भी अपनी आर्थिक और कूटनीतिक उपस्थिति के माध्यम से इन देशों के साथ अपने संबंध बनाए रखे हैं।
चीन का बढ़ता प्रभाव
- चीन द्वारा उपमहाद्वीपीय देशों में किया गया भारी निवेश और बुनियादी ढाँचे का निर्माण उसे भारत के लिए एक बड़ी चुनौती बनाता है। इससे भारत पर दबाव बढ़ता है कि वह अपने पड़ोसी देशों में अपना प्रभाव बनाए रखे और चीन के आर्थिक प्रभाव को संतुलित करे।
भारत की प्रतिक्रिया
- भारत ने बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका में अपनी सॉफ्ट पावर के माध्यम से अपनी स्थिति बनाए रखी है। भारत इन देशों में व्यापारिक साझेदारी के माध्यम से संबंधों को मज़बूत कर रहा है। यहाँ पर भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति उल्लेखनीय है, जिसमें वह पड़ोसी देशों के साथ सहयोग बढ़ा रहा है।
चीन की ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) जैसी पहल के चलते भारत को अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंध बनाए रखने के लिए नई रणनीतियों की आवश्यकता है। चीन का आर्थिक निवेश भले ही अधिक हो, लेकिन सांस्कृतिक और भौगोलिक निकटता भारत को इन देशों के लिए एक सहज साथी बनाती है।
भारत की घरेलू आर्थिक संरचना का विश्लेषण
विनिर्माण में चुनौतियाँ
- भारत का विनिर्माण क्षेत्र अभी भी अपनी पूरी क्षमता का उपयोग नहीं कर पा रहा है। चीन और वियतनाम की तुलना में भारत का विनिर्माण क्षेत्र विकसित नहीं हो पाया है।
बुनियादी ढाँचे का विकास
- सड़कों, रेल, बंदरगाहों और अन्य बुनियादी ढाँचे का विकास किसी भी आर्थिक शक्ति के लिए महत्वपूर्ण है। भारत में इन क्षेत्रों में बहुत सुधार की जरूरत है ताकि यह एक प्रभावी व्यापारिक साझेदार बन सके और वैश्विक निवेश को आकर्षित कर सके।
मानव संसाधन विकास
- भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य और तकनीकी कौशल की संरचना पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। इससे न केवल भारत की कार्यबल क्षमता बढ़ेगी, बल्कि भारत को एक मजबूत आर्थिक आधार भी मिलेगा।
भारत को वैश्विक व्यापार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए अपने विनिर्माण क्षेत्र को मज़बूत करना होगा। ‘मेक इन इंडिया’ जैसे अभियानों को और गति देने की आवश्यकता है ताकि भारत वैश्विक आपूर्ति शृंखला का एक अनिवार्य हिस्सा बन सके।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का विकास और चुनौतियाँ
भारत का वैश्विक व्यापार
- भारत का अन्य प्रमुख देशों जैसे अमेरिका, यूरोप और एशियाई देशों के साथ व्यापारिक संबंध उसकी विदेश नीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। भारत के निर्यात और आयात में इन देशों की बड़ी हिस्सेदारी है।
सैन्य शक्ति और कूटनीति का उपयोग
- भारत की सैन्य शक्ति और उसकी विदेश नीति में भूमिका पर विचार करना भी जरूरी है। चीन के साथ सीमा विवादों के चलते भारत को अपनी सैन्य ताकत को मज़बूत करना पड़ा है।
वैश्विक मंच पर भूमिका
- भारत विभिन्न वैश्विक मंचों जैसे संयुक्त राष्ट्र, जी20, और ब्रिक्स में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इन मंचों पर भारत की नेतृत्व क्षमता और कूटनीतिक प्रभाव उसे एक वैश्विक शक्ति बनने की दिशा में आगे बढ़ाता है।
भारत का वैश्विक मंच पर बढ़ता प्रभाव उसकी आर्थिक और सैन्य शक्ति का ही परिणाम है। इसके माध्यम से वह अपने क्षेत्रीय और वैश्विक हितों की रक्षा कर सकता है और उभरती शक्तियों के साथ संतुलन बना सकता है।
आगे का रास्ता: भारत का आर्थिक विकास और विदेश नीति
अर्थव्यवस्था को और मजबूत करना
- भारत को अपने आर्थिक संसाधनों का पूर्ण उपयोग करने की आवश्यकता है। ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे अभियानों को बढ़ावा देकर वह अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ा सकता है।
पड़ोसी देशों के साथ सहयोग बढ़ाना
- भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ सहयोग बढ़ाकर उनकी आर्थिक जरूरतों को पूरा कर सकता है। भारत को नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और अन्य पड़ोसी देशों के साथ बेहतर संबंध बनाने चाहिए, जिससे उसे एक मजबूत क्षेत्रीय स्थिति प्राप्त हो।
प्रभावशाली विदेश नीति की आवश्यकता
- भारत को अपनी कूटनीति को मजबूत बनाकर वैश्विक स्तर पर अपनी स्थिति को और प्रभावशाली बनाना होगा। एक बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ भारत एक मजबूत विदेश नीति अपना सकता है जो वैश्विक मंच पर उसे समर्थन प्राप्त करने में सहायक होगी।
भारत का आर्थिक विकास ही उसकी विदेश नीति का मजबूत आधार बन सकता है। एक सशक्त अर्थव्यवस्था के माध्यम से ही भारत अपने कूटनीतिक हितों की रक्षा कर सकता है और उपमहाद्वीप में अपनी स्थिति को स्थिर रख सकता है।
भारत को आर्थिक रूप से मज़बूत बनकर ही अपनी विदेश नीति को प्रभावशाली बनाना होगा। उपमहाद्वीप के देशों में अपनी स्थिति को स्थिर रखने और वैश्विक स्तर पर अपनी उपस्थिति को और अधिक मजबूत बनाने के लिए यह आवश्यक है कि भारत आर्थिक और कूटनीतिक रूप से शक्तिशाली बने।