
लखनऊ (विजय प्रताप पांडे)। जब भी वरिष्ठ नागरिकों के स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर चर्चा होती है, आमतौर पर दिल के दौरे, स्ट्रोक, और कैंसर जैसी बीमारियाँ प्राथमिकता पाती हैं। हालांकि, एक और गंभीर बीमारी है जो न केवल सामान्य है बल्कि व्यापक भी है—ऑस्टियोपोरोसिस। यह बीमारी अक्सर चर्चा का विषय नहीं बन पाती, बावजूद इसके कि यह हड्डियों को कमजोर कर देती है और फ्रैक्चर का गंभीर खतरा पैदा करती है। दुनिया भर में लाखों लोग इससे प्रभावित हैं, और यह स्थिति भारत में भी तेजी से बढ़ रही है।
ऑस्टियोपोरोसिस एक मूक महामारी के रूप में उभर रही है। इसका नाम लेते ही बहुत से लोग इसे जीवन का स्वाभाविक हिस्सा मानने की भूल कर सकते हैं, लेकिन यह वास्तविकता से कोसों दूर है। फ्रैक्चर और हड्डियों के स्वास्थ्य की उपेक्षा न केवल एक चिकित्सा समस्या है, बल्कि इसका व्यापक सामाजिक और आर्थिक असर भी है। इसलिए, इस लेख में हम इस महामारी को विस्तार से समझेंगे और रोकथाम के उपायों पर चर्चा करेंगे।
1. ऑस्टियोपोरोसिस: एक मूक महामारी
ऑस्टियोपोरोसिस एक ऐसी बीमारी है जिसमें हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं और उनमें फ्रैक्चर होने की संभावना बढ़ जाती है। यह बीमारी मूक इसीलिए कही जाती है क्योंकि इसके कोई स्पष्ट लक्षण नहीं होते जब तक कि व्यक्ति की हड्डी टूट न जाए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, ऑस्टियोपोरोसिस दुनिया भर में 50 मिलियन से अधिक लोगों को प्रभावित कर रहा है। फ्रैक्चर के कारण लाखों लोग अपनी गतिशीलता और स्वतंत्रता खो देते हैं। यह स्थिति महिलाओं में अधिक सामान्य है, खासकर पोस्टमेनोपॉज़ल महिलाओं में, जिनकी हड्डियों का घनत्व तेजी से घटता है।
भारत की स्थिति और भी चिंताजनक है। यहां हड्डियों की कमजोरी और ऑस्टियोपोरोसिस की शुरुआत पश्चिमी देशों की तुलना में 10 से 20 साल पहले होती है। भारतीय महिलाओं में 50 वर्ष की आयु के बाद ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा सबसे अधिक देखा गया है। हालाँकि पुरुष भी इस बीमारी से अछूते नहीं हैं, फिर भी महिलाओं की तुलना में उनमें इसका खतरा कम है।
ऑस्टियोपोरोसिस के फैलाव को देखते हुए इसे एक वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल कहना गलत नहीं होगा। इस मूक महामारी से निपटने के लिए समाज, सरकार, और स्वास्थ्य सेवाओं को मिलकर काम करना होगा।
2. ऑस्टियोपोरोसिस का कारण बनने वाले कारक
ऑस्टियोपोरोसिस के विकास के कई कारक हो सकते हैं, जिनमें से अधिकांश हमारी जीवनशैली और आहार से जुड़े होते हैं। यह एक जटिल स्थिति है जो केवल एक कारण से उत्पन्न नहीं होती, बल्कि कई कारकों का संयोजन इसके विकास में योगदान देता है।
2.1 आनुवांशिक और पर्यावरणीय कारक
ऑस्टियोपोरोसिस के विकास में आनुवंशिक कारक भी भूमिका निभाते हैं। यदि किसी के परिवार में ऑस्टियोपोरोसिस के मामले रहे हैं, तो उस व्यक्ति के इस बीमारी से प्रभावित होने की संभावना होती है। इसके अलावा, पर्यावरणीय कारक, जैसे कि विटामिन डी की कमी, हड्डियों की कमजोरी का कारण बन सकते हैं। भारत में, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में, लोग अक्सर सूरज की रोशनी में कम समय बिताते हैं, जिससे विटामिन डी की कमी हो जाती है।
सूर्य के प्रकाश से विटामिन डी का निर्माण होता है, जो शरीर में कैल्शियम के अवशोषण को नियंत्रित करता है। जब विटामिन डी की कमी होती है, तो हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं और ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा, वायु प्रदूषण, विशेष रूप से धुंध (स्मॉग), सूरज की किरणों को अवरुद्ध कर देता है, जिससे लोग पर्याप्त धूप नहीं ले पाते हैं।
2.2 जीवनशैली और शारीरिक गतिविधि की कमी
व्यायाम की कमी ऑस्टियोपोरोसिस के जोखिम को बढ़ा देती है। हड्डियाँ एक जीवंत ऊतक हैं, जिन्हें स्वस्थ और मजबूत बनाए रखने के लिए नियमित शारीरिक गतिविधि की आवश्यकता होती है। जब हम नियमित व्यायाम करते हैं, तो यह हमारे शरीर को मजबूत बनाने में मदद करता है।
आज के समय में, शहरीकरण और कार्यालयीय नौकरियों के कारण शारीरिक गतिविधियों में कमी देखी जा रही है। युवा पीढ़ी भी कंप्यूटर और मोबाइल की दुनिया में व्यस्त है, जिससे वे शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं रहते। लंबे समय तक गतिहीन रहने से हड्डियों की ताकत कम होती है और ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है।
2.3 आहार की भूमिका
आहार का हड्डियों के स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण योगदान होता है। विटामिन डी, कैल्शियम और प्रोटीन की कमी से हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं। भारतीय आहार में आमतौर पर कार्बोहाइड्रेट का अधिक प्रचलन होता है, जबकि प्रोटीन और कैल्शियम का सेवन कम होता है।
दूध, पनीर, दही, हरी पत्तेदार सब्जियों, और सूखे मेवों में भरपूर कैल्शियम पाया जाता है, जो हड्डियों के लिए आवश्यक है। वहीं, विटामिन डी के लिए सूर्य का प्रकाश मुख्य स्रोत है, लेकिन इसे आहार से भी प्राप्त किया जा सकता है, जैसे कि विटामिन डी से समृद्ध खाद्य पदार्थों और सप्लीमेंट्स के माध्यम से। भारतीय जनसंख्या में विटामिन डी की कमी एक सामान्य समस्या है, जो हड्डियों की कमजोरी और ऑस्टियोपोरोसिस का प्रमुख कारण है।
3. महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस की उच्च दर: एक विश्लेषण
ऑस्टियोपोरोसिस विशेष रूप से महिलाओं के लिए एक गंभीर समस्या है। महिलाओं में रजोनिवृत्ति के बाद इस बीमारी का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। हार्मोनल बदलाव, विशेष रूप से एस्ट्रोजन के स्तर में गिरावट, हड्डियों की मजबूती को कमजोर कर देती है। भारत में, यह स्थिति और भी विकट है क्योंकि यहां सामाजिक और सांस्कृतिक कारणों से महिलाओं के स्वास्थ्य पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता है।
3.1 सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाएँ
भारतीय समाज में महिलाओं को अक्सर घरेलू कामकाज में व्यस्त रखा जाता है, जिससे उनके पास अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने का समय नहीं होता। इसके अलावा, पारंपरिक भारतीय परिवारों में शारीरिक गतिविधि की कमी और बाहर खेलने या व्यायाम करने पर सामाजिक प्रतिबंध भी महिलाओं की हड्डियों की कमजोरी में योगदान देते हैं।
महिलाओं को गर्भावस्था और रजोनिवृत्ति के दौरान विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है, लेकिन अधिकांश मामलों में उन्हें पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता। गर्भावस्था के दौरान कैल्शियम और विटामिन डी की बढ़ी हुई आवश्यकता होती है, जो अगर पूरी नहीं होती, तो बाद के जीवन में ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है।
3.2 हार्मोनल बदलाव और हड्डियों का स्वास्थ्य
महिलाओं में रजोनिवृत्ति के दौरान एस्ट्रोजन का स्तर तेजी से गिरता है, जिससे हड्डियों का घनत्व कम हो जाता है। एस्ट्रोजन हड्डियों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और इसकी कमी से हड्डियाँ कमजोर होने लगती हैं। इस स्थिति में, महिलाओं को विशेष आहार और हड्डियों की सुरक्षा के लिए चिकित्सा सलाह की आवश्यकता होती है।
4. जीवन के विभिन्न चरणों में हड्डियों का स्वास्थ्य
हमारे हड्डियों का स्वास्थ्य जीवन के विभिन्न चरणों में बदलता है, और हर उम्र में हड्डियों की देखभाल आवश्यक होती है। किशोरावस्था से लेकर बुजुर्गावस्था तक, हड्डियों को मजबूत रखने के लिए सही देखभाल, पोषण, और व्यायाम की आवश्यकता होती है।
4.1 किशोरावस्था और युवावस्था में हड्डियों की देखभाल
यह वह समय होता है जब हड्डियों का अधिकतम घनत्व विकसित होता है। इस समय पर्याप्त पोषण, व्यायाम, और विटामिन डी का सेवन हड्डियों को मजबूत बनाता है।
4.2 वयस्कावस्था में हड्डियों का स्वास्थ्य
जब कोई व्यक्ति वयस्कता में प्रवेश करता है, तो हड्डियों का घनत्व अपने चरम पर होता है। 20 से 35 साल की उम्र के बाद, हड्डियों का यह घनत्व धीरे-धीरे कम होना शुरू हो जाता है। हालांकि, इस गिरावट की गति और इसकी गंभीरता इस बात पर निर्भर करती है कि व्यक्ति ने अपने युवा और वयस्क जीवन के दौरान कितनी देखभाल की है।
जो लोग नियमित रूप से शारीरिक गतिविधि करते हैं, और जो अपने आहार में कैल्शियम और विटामिन डी का समुचित मात्रा में सेवन करते हैं, उनकी हड्डियाँ लंबे समय तक मजबूत रहती हैं। लेकिन व्यस्त जीवनशैली, काम का तनाव, और शारीरिक गतिविधि की कमी वयस्कों में ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ा सकती है।
4.3 बुजुर्गावस्था और ऑस्टियोपोरोसिस
बुजुर्गों में ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा सबसे अधिक होता है, क्योंकि उम्र के साथ हड्डियाँ स्वाभाविक रूप से कमजोर हो जाती हैं। 40 से 50 वर्ष की उम्र के बाद महिलाओं में रजोनिवृत्ति के कारण एस्ट्रोजन का स्तर कम हो जाता है, जिससे हड्डियों का घनत्व तेजी से घटता है।
पुरुषों में भी उम्र बढ़ने के साथ टेस्टोस्टेरोन का स्तर कम होने लगता है, जो हड्डियों की मजबूती को बनाए रखने में मदद करता है। बुजुर्गों के लिए, हड्डियों को मजबूत रखने के लिए नियमित रूप से कैल्शियम, विटामिन डी, और प्रोटीन युक्त आहार का सेवन आवश्यक है। साथ ही, हल्की शारीरिक गतिविधि जैसे पैदल चलना और योग भी हड्डियों की ताकत को बनाए रखने में मदद कर सकता है।
5. ऑस्टियोपोरोसिस के प्रभाव: व्यक्तिगत और सामाजिक दृष्टिकोण
ऑस्टियोपोरोसिस न केवल एक चिकित्सा समस्या है, बल्कि इसका प्रभाव व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों स्तरों पर महसूस किया जाता है। यह रोग व्यक्ति की शारीरिक क्षमता को सीमित कर देता है और सामाजिक आर्थिक परिदृश्य को भी प्रभावित करता है।
5.1 व्यक्तिगत प्रभाव
ऑस्टियोपोरोसिस के कारण होने वाले फ्रैक्चर व्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित कर सकते हैं। कूल्हे, रीढ़, और कलाई में होने वाले फ्रैक्चर से जीवन की गुणवत्ता में गिरावट आती है। व्यक्ति चलने-फिरने में असमर्थ हो सकता है, जिससे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों पर असर पड़ता है।
फ्रैक्चर के बाद की जटिलताएँ, जैसे संक्रमण, स्थायी विकलांगता और गतिहीन जीवनशैली, व्यक्ति के जीवन को कठिन बना सकती हैं। कई मामलों में, फ्रैक्चर के बाद मरीज अपनी पुरानी शारीरिक स्थिति में वापस नहीं लौट पाते, जिससे उनकी रोजमर्रा की गतिविधियाँ सीमित हो जाती हैं।
5.2 सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
ऑस्टियोपोरोसिस के कारण समाज पर भी भारी आर्थिक बोझ पड़ता है। चिकित्सा खर्च, अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता, और पुनर्वास सेवाओं की मांग समाज और सरकार दोनों के लिए वित्तीय चुनौतियाँ उत्पन्न करती हैं।
विशेष रूप से वृद्ध जनसंख्या में ऑस्टियोपोरोसिस के कारण होने वाले फ्रैक्चर से स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव बढ़ता है। इसके अलावा, बुजुर्गों की देखभाल और पुनर्वास के लिए पारिवारिक जिम्मेदारियाँ भी बढ़ जाती हैं, जिससे परिवार के अन्य सदस्यों पर वित्तीय और भावनात्मक दबाव बनता है।
6. रोकथाम: ऑस्टियोपोरोसिस से लड़ने के उपाय
ऑस्टियोपोरोसिस को रोकने के लिए कुछ कारगर उपाय किए जा सकते हैं। हड्डियों को स्वस्थ और मजबूत बनाए रखने के लिए उचित देखभाल, पोषण, और शारीरिक गतिविधि आवश्यक है। हालांकि, इसके लिए व्यक्तिगत प्रयासों के साथ-साथ सरकारी और सामाजिक स्तर पर भी सहयोग जरूरी है।
6.1 बचपन से हड्डियों की देखभाल
हड्डियों के स्वास्थ्य की नींव बचपन और किशोरावस्था में रखी जाती है। बच्चों को सही पोषण और व्यायाम की आदतें विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। यह जरूरी है कि बच्चों को स्कूल में शारीरिक शिक्षा का पर्याप्त मौका मिले।
लड़कियों को खेलकूद और शारीरिक गतिविधियों में शामिल करना उनके हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है। समाज में लड़कियों के लिए शारीरिक गतिविधियों पर लगाए गए प्रतिबंधों को हटाना आवश्यक है ताकि वे भी स्वस्थ जीवन जी सकें।
6.2 पोषण: कैल्शियम और विटामिन डी का महत्व
कैल्शियम और विटामिन डी हड्डियों की मजबूती के लिए आवश्यक हैं। इसलिए, आहार में इन पोषक तत्वों की पर्याप्त मात्रा शामिल की जानी चाहिए।
स्रोत के रूप में, दूध और डेयरी उत्पाद, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, और सूखे मेवे कैल्शियम के अच्छे स्रोत हैं। विटामिन डी के लिए सूर्य की रोशनी सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है, और इसके अलावा, विटामिन डी से युक्त खाद्य पदार्थ या सप्लीमेंट्स का सेवन भी किया जा सकता है।
6.3 नियमित शारीरिक गतिविधि
नियमित व्यायाम हड्डियों की ताकत को बनाए रखने में मदद करता है। विशेष रूप से वेट-बेयरिंग एक्सरसाइज, जैसे चलना, दौड़ना, और वजन उठाना, हड्डियों के घनत्व को बनाए रखने में सहायक होते हैं।
जो लोग वृद्ध हैं, उनके लिए हल्की शारीरिक गतिविधि, जैसे पैदल चलना, योग, और स्ट्रेचिंग, भी हड्डियों की सेहत को बनाए रखने में मदद कर सकती है। इस तरह की गतिविधियाँ न केवल हड्डियों को मजबूत बनाती हैं बल्कि संतुलन और कोऑर्डिनेशन को भी सुधारती हैं, जिससे गिरने और फ्रैक्चर का खतरा कम हो जाता है।
6.4 स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच
भारत में, ऑस्टियोपोरोसिस के निदान और उपचार की पहुँच में सुधार की आवश्यकता है। DXA (डुअल-एनर्जी एक्स-रे एब्जॉर्प्टियोमेट्री) स्कैनिंग, जो हड्डियों के घनत्व को मापने का सबसे अच्छा तरीका है, भारत में कम उपलब्ध है।
इसके साथ ही, ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता बढ़ाने और उचित चिकित्सा सेवाएँ प्रदान करने की आवश्यकता है। सरकारी नीतियों और सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों को महिलाओं और वृद्धों में ऑस्टियोपोरोसिस की रोकथाम पर केंद्रित करना चाहिए।
7. ऑस्टियोपोरोसिस का उपचार और प्रबंधन
ऑस्टियोपोरोसिस के निदान के बाद, इसे प्रबंधित करना और इलाज करना आवश्यक है। जबकि इस बीमारी को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता, लेकिन इसके प्रभावों को कम किया जा सकता है।
7.1 दवाइयाँ और सप्लीमेंट्स
ऑस्टियोपोरोसिस के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली दवाइयों में बिस्फॉस्फोनेट्स, कैल्सीटोनिन, और हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी शामिल हैं। ये दवाइयाँ हड्डियों के टूटने की प्रक्रिया को धीमा कर देती हैं और नए हड्डी ऊतक के निर्माण में मदद करती हैं।
इसके अलावा, कैल्शियम और विटामिन डी सप्लीमेंट्स भी दिए जाते हैं ताकि हड्डियों को आवश्यक पोषण मिल सके। डॉक्टर द्वारा सुझाए गए दवाइयों का नियमित रूप से सेवन करना हड्डियों को मजबूत रखने में सहायक होता है।
7.2 जीवनशैली में बदलाव
ऑस्टियोपोरोसिस के मरीजों को अपनी जीवनशैली में कुछ बदलाव करने चाहिए ताकि हड्डियाँ सुरक्षित और मजबूत रह सकें। गिरने और फ्रैक्चर से बचने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए। घर के भीतर और बाहर गिरने की संभावना को कम करने के लिए घर में सुरक्षा उपाय अपनाए जा सकते हैं।
इसके साथ ही, संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, और डॉक्टर के निर्देशों का पालन करना जरूरी है ताकि ऑस्टियोपोरोसिस के प्रभावों को कम किया जा सके।
8. भविष्य की दिशा: नीति निर्माण और सामाजिक बदलाव की आवश्यकता
भारत में ऑस्टियोपोरोसिस जैसी मूक महामारी से निपटने के लिए, हमें एक व्यापक नीति निर्माण की आवश्यकता है जो न केवल उपचार पर बल्कि रोकथाम और जागरूकता पर भी केंद्रित हो। सरकार और निजी क्षेत्र को इस दिशा में मिलकर काम करना होगा ताकि जनता को ऑस्टियोपोरोसिस के खतरों और उससे बचाव के उपायों के बारे में सही जानकारी मिल सके।
8.1 स्वास्थ्य नीतियाँ और कार्यक्रम
सरकार को ऑस्टियोपोरोसिस की बढ़ती चुनौती को देखते हुए इसे अपनी प्राथमिकताओं में शामिल करना चाहिए। इसके लिए कुछ आवश्यक कदमों में शामिल हो सकते हैं:
नवीनतम निदान उपकरणों की उपलब्धता: जैसे DXA स्कैनिंग की उपलब्धता को सभी सरकारी और निजी अस्पतालों में सुनिश्चित करना। इससे समय पर निदान हो सकेगा और प्रारंभिक अवस्था में ही रोग का उपचार शुरू किया जा सकेगा।
महिलाओं और बुजुर्गों के लिए विशेष स्वास्थ्य योजनाएँ: गर्भावस्था के दौरान और रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं को विशेष पोषण योजनाएँ और स्वास्थ्य सेवाएँ दी जानी चाहिए। इसके साथ ही, बुजुर्गों को नियमित जांच और हड्डी स्वास्थ्य पर केंद्रित सेवाओं का लाभ देने के लिए विशेष सरकारी योजनाएँ बनाई जानी चाहिए।
पोषण कार्यक्रमों का विस्तार: स्कूलों और आँगनवाड़ी केंद्रों में कैल्शियम और विटामिन डी युक्त भोजन की व्यवस्था की जानी चाहिए। विशेष रूप से लड़कियों के लिए ऐसे कार्यक्रम लागू करने की आवश्यकता है जो उन्हें मजबूत हड्डियाँ विकसित करने में मदद करें।
8.2 सामाजिक जागरूकता और शिक्षा
ऑस्टियोपोरोसिस के प्रभावों को कम करने के लिए व्यापक जागरूकता अभियानों की आवश्यकता है। समाज में इस बीमारी के बारे में जानकारी और इसे रोकने के उपायों को लेकर जागरूकता बढ़ानी होगी।
मीडिया अभियानों का महत्व: टेलीविजन, रेडियो, और सोशल मीडिया के माध्यम से हड्डियों के स्वास्थ्य पर जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए। इससे लोग इस बीमारी के लक्षणों, इसके कारणों और उससे बचाव के उपायों के बारे में जान सकेंगे।
स्कूल और कॉलेज स्तर पर शिक्षा: शारीरिक शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम में महत्वपूर्ण स्थान दिया जाना चाहिए। साथ ही, हड्डी स्वास्थ्य पर केंद्रित कार्यशालाएँ और सेमिनार आयोजित किए जाने चाहिए ताकि युवाओं में सही आदतें विकसित हो सकें।
8.3 स्वास्थ्य सेवा में सुधार
स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को ऑस्टियोपोरोसिस के निदान और उपचार के लिए तैयार करना अत्यंत आवश्यक है। इसमें निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
सभी स्वास्थ्य केंद्रों में हड्डी घनत्व परीक्षण: छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में भी ऑस्टियोपोरोसिस का पता लगाने के लिए DXA जैसे परीक्षण उपकरण उपलब्ध कराए जाने चाहिए।
डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों का प्रशिक्षण: ऑस्टियोपोरोसिस की पहचान और उपचार के लिए डॉक्टरों और नर्सों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि वे इस बीमारी का समय पर निदान कर सकें।
मरीजों की सहायता के लिए पुनर्वास सेवाएँ: ऑस्टियोपोरोसिस से पीड़ित मरीजों को समुचित पुनर्वास सेवाएँ प्रदान की जानी चाहिए, जिनमें फिजियोथेरेपी और मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ शामिल हों, ताकि वे अपने जीवन की गुणवत्ता में सुधार कर सकें।
प्रभात भारत विशेष
ऑस्टियोपोरोसिस एक मूक महामारी है जो न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया को प्रभावित कर रही है। यह एक गंभीर स्वास्थ्य संकट है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। भारत में ऑस्टियोपोरोसिस की रोकथाम और उपचार के लिए एक सशक्त और सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। यह प्रयास न केवल सरकार और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं से होना चाहिए, बल्कि समाज के सभी वर्गों से भी सहयोग की अपेक्षा की जाती है।
हमें अपने जीवनशैली में बदलाव करने होंगे, पोषण में सुधार करना होगा, और नियमित शारीरिक गतिविधि को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाना होगा। समाज में महिलाओं और बुजुर्गों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है, ताकि उन्हें उचित चिकित्सा सुविधाएँ और पोषण मिल सके।
सरकार, स्वास्थ्य सेवा प्रणाली, और समाज के विभिन्न हितधारकों को मिलकर एक दीर्घकालिक योजना बनानी होगी ताकि आने वाले वर्षों में ऑस्टियोपोरोसिस से होने वाली मौतों और विकलांगताओं को रोका जा सके। समय की मांग है कि हम इस गंभीर स्वास्थ्य संकट को पहचानें और इसके खिलाफ सामूहिक रूप से कार्य करें।
यह लेख गोंडा मेडिकल कॉलेज के अस्थि रोग संकाय के प्रोफेसर और अस्थि रोग के शल्य चिकित्सक डॉ. अरुण मिश्रा के सहयोग से लिखा गया है