
गोंडा 23 अक्टूबर। जब हम दिल्ली की बात करते हैं, तो सबसे पहले जो तस्वीर हमारे दिमाग में आती है, वह है घने कोहरे में लिपटी इमारतें, गाड़ियों की अंतहीन कतारें, और लोगों के चेहरे पर मास्क। अब सोचिए, अगर यह दृश्य आपको दिल्ली की जगह गोंडा में दिखने लगे तो? एक ऐसा शहर, जो अपनी प्राकृतिक खूबसूरती और सादगी के लिए जाना जाता है, लेकिन अब तेजी से उस ‘विकास’ की ओर बढ़ रहा है, जहां विकास का मतलब सड़कों, इमारतों और चमचमाती गाड़ियों से नहीं, बल्कि दमघोंटू हवा से है।
गोंडा जल्द ही दिल्ली की तरह प्रदूषित होने की राह पर है, और इसके पीछे का कारण है, जिले में गोंडा- मनकापुर रोड पर लगी एक चीनी मिल का विद्युत संयंत्र, जिसकी चिमनी से निकलता धुआं आसपास के लोगों की सांसों पर भारी पड़ रहा है। तो क्या गोंडा जल्द ही ‘दिल्ली-2’ बनने की तैयारी कर रहा है? आइए जानते हैं रिपोर्ट में।
गोंडा का ‘विकास’: सांस लेना भी चुनौती
हम सभी को विकास चाहिए, और क्यों न हो? चमचमाती सड़कें, बढ़िया इमारतें, 24×7 बिजली, और क्या कुछ नहीं! लेकिन क्या कभी हमने सोचा है कि इस ‘विकास’ की कीमत क्या होगी? अगर आप गोंडा के निवासी हैं, तो आपको इसका जवाब बहुत जल्द मिलने वाला है। जिले में लगी चीनी मिल का विद्युत संयंत्र मानो गोंडा के लिए ‘उपहार’ लेकर आया है।
इस प्लांट की चिमनी से निकलता धुआं अब आसपास के लोगों की जिंदगी का हिस्सा बन गया है। हर सांस के साथ वे उस धुएं को अपने फेफड़ों में भर रहे हैं, मानो यह धुआं उनका नया ‘ऑक्सीजन’ हो। और यह सिर्फ एक शुरुआत है। अगर ऐसे ही चलता रहा, तो गोंडा का वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) जल्द ही दिल्ली के खतरनाक स्तर तक पहुंच जाएगा। और हां, तब हमें मास्क और एयर प्यूरीफायर की जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि हम तो अपने ‘विकास’ के दम पर पहले ही आदत डाल चुके होंगे।
दिल्ली की तरह गोंडा भी ‘सांसों की राजधानी’ बनने की राह पर
दिल्ली को भला कौन नहीं जानता? देश की राजधानी, जहां सत्ता के गलियारों में बड़े फैसले लिए जाते हैं। लेकिन अब गोंडा भी दिल्ली की राह पर है, हालांकि किसी और तरह से। यहां भी बड़े-बड़े फैसले लिए जा रहे हैं, लेकिन ये फैसले हवा की गुणवत्ता के खिलाफ हैं। जिस तरह से दिल्ली में प्रदूषण ने लोगों की जिंदगी को मुश्किल बना दिया है, उसी राह पर अब गोंडा भी कदम बढ़ा रहा है।
गोंडा के इस ‘विकास’ में अब लोग भी पीछे नहीं हैं। उन्हें भी हवा में धुएं के साथ मिलती गंध की आदत डालनी पड़ रही है।
चीनी मिल का ‘मीठा जहर’: विकास की कीमत कौन चुकाएगा?
चीनी मिलें आमतौर पर मिठास का प्रतीक मानी जाती हैं, लेकिन गोंडा में स्थित यह चीनी मिल ‘मीठा जहर’ फैलाने का काम कर रही है। जब से इस मिल के विद्युत संयंत्र से निकलने वाले धुएं ने आसपास के क्षेत्रों को अपनी चपेट में लिया है, तब से इलाके के लोग परेशानी झेल रहे हैं।
गांववालों की मानें तो पहले जहां वे खुली हवा में सांस लिया करते थे, अब वहां धुएं का एक बादल हमेशा मंडराता रहता है। कई लोगों को सांस लेने में तकलीफ हो रही है, तो कुछ को आंखों में जलन की शिकायत है। लेकिन इस ‘विकास’ की कीमत कौन चुकाएगा? मिल के मालिक, प्रशासन या फिर आम जनता?
विकास के नाम पर प्रदूषण: जब तक सड़कें नहीं तो प्रदूषण क्यों नहीं?
गोंडा का एक खास वर्ग कहता है कि विकास के बिना शहर आगे नहीं बढ़ सकता। इस तर्क में दम है। आखिर सड़कें, बिजली, पानी, और उद्योगों के बिना विकास कैसे हो सकता है? लेकिन अगर यह सब होने के बाद आपको अपनी सांसों की भी कीमत चुकानी पड़े, तो फिर यह किस प्रकार का विकास है?
गोंडा के इस तथाकथित विकास में सबसे बड़ा योगदान चीनी मिल के विद्युत संयंत्र का है, जिसका धुआं लगातार बढ़ता जा रहा है। आसपास के ग्रामीणों ने कई बार प्रशासन से शिकायत की, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया।
गोंडा में ‘दिल्ली का मॉडल’: प्रदूषण को भी अपनाने की तैयारी
दिल्ली ने देश को कई मॉडल दिए हैं। शिक्षा का मॉडल, स्वास्थ्य का मॉडल, और अब प्रदूषण का मॉडल। दिल्ली का AQI जब भी 500 के पार जाता है, तो वह दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार हो जाता है। और अब गोंडा भी उसी राह पर चल पड़ा है।
चीनी मिल की चिमनी से निकलता धुआं गोंडा को जल्द ही ‘प्रदूषण के मॉडल’ में तब्दील कर देगा। लोग अपने बच्चों को बताते थे कि देखो, दिल्ली में प्रदूषण कितना ज्यादा है, वहां सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है। लेकिन अब शायद उन्हें यह कहने की जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि गोंडा के लोग खुद उस अनुभव से गुजरने वाले हैं।
प्रदूषण का नया स्तर: जल्द ही हम दिल्ली को पीछे छोड़ देंगे
दिल्ली की तरह अगर गोंडा ने अपने प्रदूषण के स्तर को बढ़ाने की रफ्तार इसी तरह जारी रखी, तो वह जल्द ही दिल्ली को पीछे छोड़ सकता है। आखिर, क्यों न हो? दिल्ली की आबादी ज्यादा है, वहां गाड़ियों की संख्या अनगिनत है, लेकिन गोंडा? यहां तो सिर्फ एक चीनी मिल का विद्युत संयंत्र ही काफी है।
किसी ने सच ही कहा है कि “विकास की कीमत चुकानी पड़ती है।” गोंडा के लोगों ने भी शायद यही मान लिया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह कीमत सिर्फ सांसों की होगी या फिर लोगों की सेहत और जिंदगी की भी?
गोंडा का ‘विकास’ और प्रदूषण की दौड़
गोंडा का भविष्य अब साफ दिखने लगा है। सड़कों, इमारतों, और उद्योगों के साथ-साथ प्रदूषण का भी एक महत्वपूर्ण स्थान बनने वाला है। चीनी मिल का यह ‘उपहार’ गोंडा को दिल्ली की तर्ज पर एक नया रूप दे रहा है।
अब बस इंतजार है उस दिन का, जब गोंडा भी AQI में दिल्ली को पीछे छोड़ देगा, और लोग कहेंगे, “देखो, गोंडा ने दिल्ली को भी मात दे दी।”
सवाल यह है कि क्या यह वह भविष्य है, जिसकी हमने कल्पना की थी? क्या विकास की यह कीमत चुकानी होगी, जहां हवा में सांस लेना भी मुश्किल हो जाए?
गोंडा अब दिल्ली की राह पर है, लेकिन यह वह राह है, जहां हवा में जहर घुला हुआ है।