
लखनऊ, (विजय प्रताप पांडे) 22 अक्टूबर। उत्तर प्रदेश का गोंडा जिला, जो कभी अपने सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व के लिए जाना जाता था, आज नशे की चपेट में तेजी से फंसता जा रहा है। यह समस्या सिर्फ गोंडा तक सीमित नहीं है बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश में जड़ें जमा चुकी है। राज्य के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में नशे का कारोबार युवाओं को अपनी चपेट में ले रहा है। अगर इस पर समय रहते काबू नहीं पाया गया, तो उत्तर प्रदेश जल्द ही पंजाब की तरह नशे की गंभीर समस्या से जूझेगा। यह चेतावनी सिर्फ एक कल्पना नहीं है, बल्कि वास्तविकता बनती जा रही है।
नशे का बढ़ता कारोबार: एक गंभीर समस्या
नशे का कारोबार गोंडा और आस-पास के इलाकों में तेजी से पैर पसार रहा है। नशा बेचने वालों ने अब दवाइयों से लेकर महंगे ड्रग्स तक की पहुंच आम लोगों और खासकर युवाओं तक बना ली है। पहले खांसी की कुछ दवाएं, जो आसानी से मेडिकल स्टोर्स पर मिलती थीं, युवाओं द्वारा नशे के रूप में इस्तेमाल की जाती थीं। इन दवाओं का सेवन करने वाले ज्यादातर 15 से 25 साल तक के युवा होते थे, जिन्हें खुलकर शराब या अन्य नशे का सेवन करने में झिझक महसूस होती थी। ये दवाएं मेडिकल स्टोर्स पर बिना किसी प्रिस्क्रिप्शन के मिल जाती हैं, और इसका दुरुपयोग नशे के लिए किया जाता है।
लेकिन अब यह समस्या खांसी की दवाओं तक सीमित नहीं रह गई है। सफेद पाउडर जैसा दिखने वाला एक नशीला पदार्थ, जिसे ड्रग्स के नाम से जाना जाता है, तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। यह नशा ज्यादा खतरनाक और महंगा होता है, लेकिन युवा इसे किसी भी तरह से हासिल कर रहे हैं। सूत्रों की मानें तो गोंडा के डुमरियाडीह, तरबगंज, कर्नलगंज, कटरा बाजार, मसकनवा और खोडारे जैसे क्षेत्रों में यह समस्या अधिक गंभीर हो चुकी है। भले ही कुछ जगहों के नाम गलत हों, लेकिन नशे की महामारी की चपेट में इन इलाकों के युवा तेजी से फंस रहे हैं।
नशे के असर से जूझते युवा
उत्तर प्रदेश के युवाओं के लिए नशा एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। जो युवा पढ़ाई और खेल-कूद में अपना समय लगाते थे, वे अब नशे के जाल में फंसते जा रहे हैं। गोंडा और आस-पास के इलाकों में स्कूल और कॉलेज जाने वाले छात्र भी इस समस्या से अछूते नहीं हैं। इस नशे की लत में फंसने वाले युवा शुरुआत में खांसी की दवाओं का सेवन करते हैं, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें और अधिक शक्तिशाली नशीले पदार्थों की आदत लग जाती है।
आंकड़ों की मानें तो, पिछले कुछ सालों में नशे के कारण युवा वर्ग में अपराध की घटनाएं भी बढ़ी हैं। चोरी, डकैती, घरेलू हिंसा और सड़क दुर्घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई है। नशे के प्रभाव में आए हुए युवा अक्सर अपने परिवारों के खिलाफ हिंसा करते हैं, जिससे सामाजिक ताने-बाने पर भी असर पड़ रहा है। समाज में तेजी से बिखराव दिखने लगा है, जहां परिवार के लोग अपने बच्चों को संभालने में नाकाम हो रहे हैं।
पुलिस की भूमिका: ढीलापन या भ्रष्टाचार?
नशे के कारोबार पर रोक लगाने के लिए पुलिस की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। लेकिन उत्तर प्रदेश पुलिस पर सवाल उठने लगे हैं। कई बार स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया है कि पुलिस इस मुद्दे पर सख्ती से कदम नहीं उठा रही है। यहां तक कि यह भी सुनने में आता है कि कुछ मामलों में पुलिसकर्मी खुद भी इन नशा तस्करों से मिले हुए हैं। “साहब तो अपने हैं, कुछ नहीं होगा, मामला सैटल्ड है,” जैसी बातें आम हो चुकी हैं।
यह एक गंभीर संकेत है कि कानून का पालन करवाने वाली संस्थाएं भी अगर इस काम में लिप्त हो जाती हैं, तो स्थिति और गंभीर हो सकती है। स्थानीय लोगों के अनुसार, पुलिस को नशे के ठिकानों की जानकारी होने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाती। यह स्थिति नशे के कारोबारियों को और अधिक प्रोत्साहित करती है।
नशे के खिलाफ सख्त कदम की आवश्यकता
हालांकि, उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में पुलिस ने नशे के कारोबार के खिलाफ सख्त कदम उठाए हैं। कई नशा तस्करों को गिरफ्तार किया गया है और उनके गिरोहों को ध्वस्त करने के लिए विशेष टीमें बनाई गई हैं। लेकिन यह कदम पर्याप्त नहीं है। पूरे राज्य में पुलिस को सख्त कार्रवाई करनी होगी और नशे के ठिकानों को ढूंढकर नष्ट करना होगा। साथ ही, मेडिकल स्टोर्स पर भी सख्त निगरानी की जानी चाहिए ताकि खांसी की दवाओं का दुरुपयोग न हो सके।
इस समय जरूरत है कि उत्तर प्रदेश की सरकार, पुलिस और स्थानीय समाज एकजुट होकर नशे के खिलाफ अभियान छेड़ें। इसके लिए न केवल नशा बेचने वालों पर कार्रवाई की जानी चाहिए, बल्कि नशे के शिकार हो चुके युवाओं के पुनर्वास के लिए भी ठोस कदम उठाए जाने चाहिए। इसके लिए विशेष शिविरों का आयोजन, स्कूलों और कॉलेजों में जागरूकता कार्यक्रमों का संचालन और परिवारों को शिक्षित करने की आवश्यकता है।
पंजाब का उदाहरण: उत्तर प्रदेश के लिए एक चेतावनी
उत्तर प्रदेश को पंजाब से सबक लेना चाहिए। पंजाब में नशे की लत ने एक पूरी पीढ़ी को तबाह कर दिया। वहां के ग्रामीण इलाकों में युवाओं ने ड्रग्स की वजह से अपने करियर और जीवन को बर्बाद कर दिया। अगर उत्तर प्रदेश ने अभी भी नशे के खिलाफ सख्त कदम नहीं उठाए, तो स्थिति बेकाबू हो जाएगी और राज्य को पंजाब जैसी त्रासदी का सामना करना पड़ सकता है।
पंजाब में नशे की समस्या का एक बड़ा कारण यह था कि सरकार और पुलिस समय पर कार्रवाई नहीं कर पाईं। उत्तर प्रदेश को इस गलती को नहीं दोहराना चाहिए। यहां समय रहते कड़े कानूनों का पालन करवाया जाना चाहिए और नशे के कारोबार को पूरी तरह से खत्म करने के लिए समाज और पुलिस को एकजुट होकर काम करना चाहिए।
समाज की भूमिका: जिम्मेदारी और जागरूकता
नशे के खिलाफ लड़ाई में समाज की भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण है। जब तक समाज के लोग इस समस्या के प्रति जागरूक नहीं होंगे, तब तक इसका समाधान संभव नहीं है। गोंडा और अन्य जिलों के परिवारों को अपने बच्चों पर ध्यान देना होगा, उन्हें सही दिशा दिखानी होगी और नशे से दूर रखने के लिए उन्हें सही शिक्षा देनी होगी।
इसके अलावा, स्कूल और कॉलेजों में नशे के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए। शिक्षकों और प्रशासन को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नशे का असर उनके छात्रों पर न पड़े। समाज के हर वर्ग को नशे के खिलाफ एकजुट होकर खड़ा होना होगा, तभी इस गंभीर समस्या से निपटा जा सकता है।
प्रभात भारत विशेष
गोंडा और उत्तर प्रदेश के अन्य हिस्सों में नशे की समस्या तेजी से फैल रही है। अगर इस पर समय रहते नियंत्रण नहीं किया गया, तो राज्य को पंजाब जैसी भयावह स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। सरकार, पुलिस और समाज को मिलकर इस लड़ाई में कड़ा रुख अपनाना होगा। केवल सख्त कानून और जागरूकता अभियान ही उत्तर प्रदेश को नशे की चपेट में आने से बचा सकते हैं।
अब समय आ गया है कि सभी पक्ष एकजुट होकर नशे के खिलाफ निर्णायक कदम उठाएं, ताकि उत्तर प्रदेश का भविष्य सुरक्षित और स्वस्थ रह सके।