
लेख – संजय शुक्ला
गोण्डा। छठ पर्व सूर्य उपासना का प्रमुख पर्व है। सूर्य देव को आदिदेव के रूप में भी जाना जाता है। सूर्य भगवान निरंतर कर्मरत रहते हैं, सूर्य ने ही सर्वप्रथम कर्मयोग का उपदेश दिया था इस पर्व में उपयोग में आने वाली सभी वस्तुएं प्राकृतिक होती हैं।
प्रत्यक्ष देव के रूप में भुवन भास्कर भगवान सूर्यनारायण संपूर्ण जगत के परम आराध्य हैं आराध्य हैं। भारत में सूर्य भगवान की उपासना काफी प्रचलित है। छठ पर्व का आयोजन साल में दो बार क्रमशः चैत्र एवं कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी से ‘नहाए खाय’ से शुरु होकर सप्तमी के दिन पारण से समाप्त होता है। इन चार दिनों के व्रतानुष्ठान के दौरान 36 घण्टे की उपवास व्रती रखते हैं। यह पर्व मुख्यता बिहार और झारखंड में मनाया जाता रहा है परंतु अब पूरे देश में इसका महत्व हो गया है।
इस छठ पूजा में लोग बिना किसी भेदभाव के किसी जलाशय के पास एकत्रित होकर पूजा पाठ करते हैं। प्रकृति और संस्कृति के प्रति स्वाभिमान प्रकट करते हैं।
भारत एक कृषि प्रधान देश है यहां इस पर्व को कुछ लोग कृषि से जोड़कर भी देखते हैं कार्तिक मास के में धान की फसल और चैत्र मास में रबी की फसल तैयार होती है यह फसलें मुख्यता मौसम पर निर्भर है और मौसम सूर्य पर निर्भर होता है। रबी फसल का नाम भगवान सूर्य के नाम पर है क्योंकि रवि का अर्थ सूर्य होता है छठ पर्व में सूर्य को अस्ताचलगामी और उदयाचलगामी दोनों स्थिति में अर्घ्य दिया जाता है। पौराणिक प्रसंग यह भी है कि भगवान सूर्य जब अपनी पत्नी संज्ञा को लेकर अपने ससुर विश्वकर्मा के घर गए थे तो वहां विश्वकर्मा ने अपनी बेटी की विदाई बड़ी धूम-धाम से की। विश्वकर्मा की बेटी और भगवान सूर्य की पत्नी संज्ञा की पूजा छठी माता के रूप में होती है। छठ पूजा में मुख्यता ठेकुआ, फल चढ़ाने का विधान है।