
वृद्धाश्रम पहुंचकर बुजुर्गों संग बांटी खुशियां, मिठाई खिलाकर दी शुभकामनाएं
गोण्डा, 30 अक्टूबर 2024 – दिवाली का त्योहार हर वर्ष देशभर में हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस बार गोण्डा में मंडलायुक्त शशि भूषण लाल सुशील की धर्मपत्नी गरिमा भूषण ने यह पर्व समाज के एक ऐसे वर्ग के साथ मनाया जो अक्सर मुख्यधारा की खुशियों से दूर हो जाते हैं। उन्होंने शहर के वृद्धाश्रम में जाकर वृद्धजनों के साथ समय बिताया, उन्हें मिठाइयां खिलाई, और उपहार देकर दिवाली की खुशियां बांटी। इस भावुक और समाज को प्रेरित करने वाले इस कार्य ने सभी का ध्यान आकर्षित किया और समाज में एक अनूठा संदेश छोड़ा।
गरिमा भूषण न्याय मिशन सेवा समिति द्वारा संचालित वृद्धाश्रम में पहुंचीं, जहां बुजुर्गों के बीच समय बिताकर उन्होंने उनकी बातें सुनीं और उनके साथ संवाद स्थापित किया। वृद्धजनों के लिए यह समय किसी बड़े उपहार से कम नहीं था। यह पहल न केवल बुजुर्गों के जीवन में खुशी भरने वाली थी, बल्कि समाज के लिए भी एक सकारात्मक उदाहरण प्रस्तुत करती है।
वृद्धाश्रम में मनाई गई दिवाली की खासियतें
वृद्धाश्रम में गरिमा भूषण के आगमन से पहले ही दीयों और रंगोली से सजावट की गई थी। वहां पर उपस्थित बुजुर्ग इस अनोखे पर्व का इंतजार कर रहे थे। जैसे ही गरिमा भूषण वहां पहुंचीं, बुजुर्गों के चेहरे खुशी से चमक उठे। दिवाली के अवसर पर उन्होंने बुजुर्गों के साथ मिलकर दीप जलाए और उनकी खुशहाली की कामना की।
गरिमा भूषण ने अपने इस प्रयास में बुजुर्गों को मिठाइयों के साथ उपहार भी दिए। इसमें ड्राई फ्रूट्स, फल और मिठाइयां शामिल थीं। यह एक सजीव दृश्य था, जहां सभी बुजुर्ग अपनी उम्र के अनुभव और जीवन की विभिन्न कहानियों को साझा कर रहे थे और गरिमा भूषण ने उनमें रुचि लेकर उन्हें अपनेपन का एहसास कराया।
वृद्धजनों की कहानियां और भावनाएं
वृद्धाश्रम में कई बुजुर्ग ऐसे हैं, जिनके पास जीवन की अनगिनत कहानियां हैं। परिवार से दूर, अपनी यादों में खोए इन बुजुर्गों के लिए यह मौका उन यादों को ताजा कर देने वाला था। उनमें से कुछ ने बताया कि परिवार के विभिन्न कारणों से वे वृद्धाश्रम में रहते हैं, और इस दिवाली उनके लिए खास बन गई, क्योंकि उन्होंने अपने परिवार जैसा अपनापन महसूस किया। गरिमा भूषण ने उनकी बातें सुनीं और उनके साथ सहानुभूति व्यक्त की, जो वृद्धजनों के लिए एक राहत का क्षण था।
एक बुजुर्ग महिला ने भावुक होकर कहा, “बच्चों के पास अब समय नहीं है, लेकिन आज ऐसा लगा कि कोई अपना पास बैठा है।” उन्होंने गरिमा भूषण का हाथ पकड़कर अपने दिल की बातें कीं। इसी प्रकार, एक अन्य बुजुर्ग ने कहा, “यह त्योहार हमारे लिए खाली हो जाता था, लेकिन आज आपने हमें वह खुशी दी जो सालों से नहीं मिली।”
समाज में वृद्धजनों के प्रति दृष्टिकोण
वृद्धजनों को अक्सर समाज में भूल जाते हैं। उनकी उपस्थिति को नजरअंदाज कर दिया जाता है और वे एकांत में रहने को मजबूर हो जाते हैं। लेकिन गरिमा भूषण की यह पहल इस विचारधारा के खिलाफ एक मजबूत संदेश देती है कि हमारे बुजुर्ग समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उनकी खुशियों और भावनाओं को समझना और उन्हें परिवार जैसा अनुभव कराना बेहद आवश्यक है। समाज को यह समझने की जरूरत है कि बुजुर्गों का अनुभव और ज्ञान अमूल्य है, और हमें उन्हें अनदेखा नहीं करना चाहिए।
आयुक्त की धर्मपत्नी गरिमा भूषण की सोच और भावना
इस मौके पर गरिमा भूषण ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए कहा, “त्योहारों का असली मकसद खुशियां बांटना और सभी के चेहरे पर मुस्कान लाना है। दिवाली जैसे शुभ अवसर पर बुजुर्गों का आशीर्वाद मिलना हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण है। वृद्धाश्रम में आकर मुझे हमेशा एक अलग तरह का सुकून मिलता है।” उन्होंने यह भी कहा कि बुजुर्गों के साथ समय बिताना किसी अनमोल अनुभव से कम नहीं है, क्योंकि यह हमें अपने जीवन में संतोष और धैर्य का महत्व समझाता है।
गरिमा भूषण के इस मानवीय दृष्टिकोण ने समाज के अन्य लोगों को भी प्रेरणा दी है कि वे अपने त्योहारों को बुजुर्गों और समाज के अन्य जरूरतमंद वर्गों के साथ मनाएं और खुशियां साझा करें।
वृद्धाश्रम की भूमिका और न्याय मिशन सेवा समिति का योगदान
गोण्डा का यह वृद्धाश्रम न्याय मिशन सेवा समिति द्वारा संचालित होता है। यह संस्था बुजुर्गों के लिए एक ऐसा माहौल बनाने का प्रयास करती है जहां वे सुकून और सम्मान के साथ जीवन बिता सकें। संस्था के विभिन्न सदस्यों ने इस मौके पर गरिमा भूषण के आगमन और उनके इस पहल के प्रति आभार व्यक्त किया। समिति के एक सदस्य ने कहा, “हमारी कोशिश रहती है कि बुजुर्गों को यहां पर ऐसा महसूस हो कि वे अपने घर में ही हैं। गरिमा जी का यहां आना और उनकी यह भावना हमारे बुजुर्गों को खुशियों से भर देने वाला है।”
दीवाली का सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व
दीवाली न केवल रोशनी का त्योहार है, बल्कि यह प्रेम, सद्भावना और मिलन का पर्व है। यह हमें सिखाता है कि हमें अपने समाज के हर वर्ग के साथ खुशियां बांटनी चाहिए। गरिमा भूषण ने इस अवसर को वृद्धजनों के साथ बांटकर यह साबित किया कि दिवाली का असली अर्थ तभी पूरा होता है जब हम इसे उन लोगों के साथ मनाएं जिनकी उपस्थिति समाज में सबसे महत्वपूर्ण होते हुए भी अक्सर उपेक्षित रह जाती है।
बुजुर्गों के चेहरों पर खुशी, उनके हर्षित भाव, और गरिमा भूषण द्वारा उनकी सुधि लेने का यह प्रयास न केवल वृद्धजनों को एक अनूठा अनुभव दे गया, बल्कि समाज को यह भी याद दिला गया कि बुजुर्ग हमारी संस्कृति, सभ्यता और अनुभव का अनमोल खजाना हैं।
समाज के लिए प्रेरणा
इस पहल ने समाज के अन्य लोगों को भी प्रेरणा दी कि वे त्योहारों को केवल अपने परिवार और दोस्तों के साथ ही नहीं बल्कि उन लोगों के साथ भी मनाएं जो समाज में एकांत में रह जाते हैं। गरिमा भूषण का यह मानवीय कार्य समाज में बुजुर्गों के प्रति जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है। इस तरह की पहल न केवल समाज को संवेदनशील बनाती है बल्कि लोगों को अपने बुजुर्गों का सम्मान करने के लिए भी प्रेरित करती है।
गरिमा भूषण द्वारा वृद्धाश्रम में मनाई गई यह दिवाली समाज में एक प्रेरणादायक संदेश के रूप में उभरी है। यह एक यादगार अवसर था, जिसने न केवल वृद्धजनों को खुशी दी, बल्कि हमें यह भी सिखाया कि सच्ची खुशी वही होती है जो दूसरों के साथ बांटी जाए। गरिमा भूषण के इस कदम से समाज में एक नयी ऊर्जा का संचार हुआ है, और उम्मीद है कि भविष्य में और लोग इस तरह के मानवीय कार्यों में भाग लेंगे।