
गोण्डा, 21 अप्रैल। जनपद गोण्डा में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और मानकों को लेकर एक बार फिर प्रशासन ने सख्त तेवर दिखाए हैं। जिलाधिकारी नेहा शर्मा ने जिले में बिना अग्निशमन सुरक्षा प्रमाणपत्र (फायर एनओसी) के संचालित हो रहे निजी चिकित्सालयों, नर्सिंग होम्स, एवं पैथोलॉजी केंद्रों के खिलाफ गहन जांच और कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। उन्होंने मुख्य अग्निशमन अधिकारी (Chief Fire Officer) को निर्देशित किया है कि सभी सरकारी और निजी चिकित्सालयों में तत्काल प्रभाव से अग्निशमन सुरक्षा ऑडिट अभियान प्रारंभ किया जाए और एक सप्ताह के भीतर रिपोर्ट जिलाधिकारी कार्यालय को सौंपी जाए। यह कदम तब उठाया गया जब हाल ही में कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जनशिकायतों में यह बात सामने आई कि जिले के कई स्वास्थ्य केंद्र बिना फायर एनओसी के वर्षों से संचालन कर रहे हैं।
स्वास्थ्य संस्थानों में आग से सुरक्षा की अनिवार्यता
अस्पतालों में ऑक्सीजन सिलेंडर, विद्युत उपकरण, ज्वलनशील दवाएं और बड़ी संख्या में मरीज व कर्मचारी मौजूद होते हैं। इस संवेदनशीलता को देखते हुए अस्पतालों में अग्निशमन सुरक्षा उपकरणों की स्थापना और नियमित फायर सेफ्टी ऑडिट अत्यंत आवश्यक होता है। एक छोटी सी चूक जानलेवा हो सकती है। वर्ष 2023 में दिल्ली के एक अस्पताल में लगी आग और उसके परिणामस्वरूप हुई कई मरीजों की मौत की घटना आज भी प्रशासनिक तंत्र को चेताती है। गोण्डा जैसे विकसित हो रहे जनपद में इस तरह की किसी भी दुर्घटना को रोकना जिला प्रशासन की प्राथमिकता है।
पूर्व के निर्देशों की अनदेखी पर नाराज़गी
जिलाधिकारी ने कहा कि पूर्व में भी संबंधित विभागों को इस संबंध में निर्देशित किया गया था, लेकिन पालन में लापरवाही सामने आई है। उन्होंने इस पर गहरी नाराज़गी जताते हुए कहा कि प्रशासन की ओर से जब बार-बार दिशा-निर्देश जारी किए जाते हैं, तो उनका पालन करना संबंधित अधिकारियों व संस्थानों की नैतिक जिम्मेदारी बनती है। यह बेहद खेदजनक है कि कुछ अस्पताल संचालकों ने इन चेतावनियों को हल्के में लिया, जो न केवल नियमों की अवहेलना है, बल्कि नागरिकों की जान से खिलवाड़ भी है।
जांच के दायरे में आएंगे दर्जनों संस्थान
सूत्रों की मानें तो जिले में संचालित करीब 80 से अधिक निजी अस्पताल और 100 से अधिक पैथोलॉजी सेंटरों में से आधे से अधिक के पास फायर एनओसी नहीं है। प्रशासन की सूची में इन सभी संस्थानों को चिह्नित कर उन्हें नोटिस भेजा जाएगा। इसके अलावा अग्निशमन विभाग की टीमें मौके पर जाकर यह भी जांच करेंगी कि उपलब्ध फायर सेफ्टी उपकरण कार्यशील हैं या नहीं। जिन संस्थानों में भारी खामियां पाई जाएंगी, उनके खिलाफ नियमानुसार जुर्माना, सीलिंग या संचालन पर रोक जैसी कठोर कार्रवाई संभव है।
जनहित के नाम पर लापरवाही का पर्दाफाश
अस्पतालों का उद्देश्य लोगों की जान बचाना है, लेकिन यदि वही संस्थान लापरवाही से लोगों की जान को खतरे में डालें, तो यह विडंबना ही कही जाएगी। फायर एनओसी न होना या उसका नवीनीकरण न कराना, अस्पताल प्रबंधन की गैर-जिम्मेदाराना प्रवृत्ति को दर्शाता है। कई निजी अस्पताल, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, किराए के भवनों में चलते हैं, जहां न तो फायर अलार्म सिस्टम होता है और न ही अग्निशमन उपकरण। ऐसे में अचानक लगी आग की स्थिति में मरीजों और स्टाफ को बाहर निकालना अत्यंत चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
डीएम का स्पष्ट संदेश – ‘कानून से ऊपर कोई नहीं’
जिलाधिकारी नेहा शर्मा ने साफ किया कि कोई भी संस्थान कानून से ऊपर नहीं है। स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता के साथ किसी प्रकार का समझौता नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा, “अगर कोई निजी अस्पताल, चाहे वह कितना भी बड़ा या प्रतिष्ठित क्यों न हो, अग्निशमन नियमों का पालन नहीं करता है, तो उसके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी। प्रशासन किसी भी स्तर पर कोताही नहीं बरतेगा।”
सीएमओ और सीएफओ को संयुक्त कार्रवाई का निर्देश
जिलाधिकारी ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) और मुख्य अग्निशमन अधिकारी (CFO) को संयुक्त रूप से सभी अस्पतालों की सूची तैयार कर समन्वय स्थापित करने को कहा है। यह भी निर्देशित किया गया है कि जहां भी फायर एनओसी अनुपलब्ध हो, वहां के अस्पताल संचालकों को कारण बताओ नोटिस भेजा जाए। साथ ही एक हेल्पलाइन नंबर भी जारी करने की बात कही गई है, जिस पर आमजन अस्पतालों की अग्निशमन सुरक्षा संबंधी शिकायत दर्ज करा सकें।
जनजागरूकता भी बनेगी अभियान का हिस्सा
जिलाधिकारी ने इस पूरी प्रक्रिया को केवल प्रशासनिक कार्रवाई तक सीमित न रखते हुए जनजागरूकता अभियान के रूप में चलाने का संकेत भी दिया है। उन्होंने कहा कि आम नागरिकों को भी यह जानने का अधिकार है कि जिस अस्पताल में वह उपचार हेतु जा रहे हैं, वहां उनकी सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम हैं या नहीं। इसके लिए जिलाधिकारी कार्यालय की वेबसाइट पर भी अस्पतालों की फायर एनओसी स्थिति सार्वजनिक किए जाने की योजना बनाई जा रही है।
स्थानीय नागरिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की सराहना
इस सख्त कदम का जिले के सामाजिक कार्यकर्ताओं, जनप्रतिनिधियों और नागरिकों ने स्वागत किया है। वरिष्ठ समाजसेवी विजय कुमार अवस्थी ने कहा कि “जिलाधिकारी ने जो पहल की है, वह अभूतपूर्व है। वर्षों से यह शिकायतें आती रही हैं कि कई अस्पताल बिना लाइसेंस और सुरक्षा मानकों के चल रहे हैं। अब समय आ गया है कि इस पर रोक लगे।” वहीं नगर पालिका के एक पूर्व अध्यक्ष ने कहा कि अगर प्रशासन इसी तरह सक्रिय रहा, तो गोंडा में स्वास्थ्य सेवाओं की तस्वीर पूरी तरह बदल सकती है।
नियम पालन से ही सुनिश्चित होगी सुरक्षा
गोंडा में जिलाधिकारी नेहा शर्मा की इस सक्रियता से यह संदेश स्पष्ट है कि स्वास्थ्य सेवाओं में अब कोई भी ढिलाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी। यह कार्रवाई सिर्फ एक प्रशासनिक औपचारिकता नहीं, बल्कि लोगों की जान की सुरक्षा सुनिश्चित करने की गंभीर कोशिश है। यदि इस दिशा में सभी विभाग एकजुट होकर कार्य करें और नागरिक भी जागरूक रहें, तो न केवल गोण्डा, बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाएं और अधिक सुरक्षित, पारदर्शी और विश्वसनीय बन सकती हैं।