
लेखपाल अंबिकेश्वर प्रताप को “मध्यावधि विशेष प्रतिकूल प्रविष्टि”
गोण्डा, 13 जून 2025। जनपद गोंडा में शासन की मंशा के अनुरूप पारदर्शी, उत्तरदायी और जनकल्याणकारी प्रशासनिक व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए जिलाधिकारी श्रीमती नेहा शर्मा निरंतर सक्रिय और सजग बनी हुई हैं। जनशिकायतों की निष्पक्ष जांच और त्वरित निस्तारण की दिशा में जब भी कोई लापरवाही अथवा शिथिलता सामने आती है, तो वे तत्काल कार्रवाई करने से पीछे नहीं हटतीं। इसी क्रम में उन्होंने एक अहम फैसला लेते हुए तहसील मनकापुर के एक लेखपाल को गंभीर लापरवाही के चलते “मध्यावधि विशेष प्रतिकूल प्रविष्टि” जारी कर सख्त चेतावनी दी है।
उक्त प्रकरण ग्राम बन्दरहा, परगना बभनीपायर, तहसील मनकापुर का है, जहां के निवासी श्री जगदीश प्रसाद ने अपने गांव के चकमार्ग गाटा संख्या-4 एवं गाटा संख्या-11 पर अवैध अतिक्रमण हटवाने के संबंध में जिलाधिकारी कार्यालय में एक शिकायती पत्र प्रस्तुत किया था। उक्त प्रकरण का निस्तारण क्षेत्रीय लेखपाल श्री अम्बिकेश्वर प्रताप को सौंपा गया था, जिनसे यह अपेक्षित था कि वे मौके पर जाकर स्थलीय निरीक्षण करें, दोनों पक्षों को सुनें और साक्ष्यों के आधार पर निष्पक्ष रिपोर्ट तैयार करें।
किन्तु जांच के दौरान यह तथ्य उजागर हुआ कि लेखपाल द्वारा बिना किसी स्थलीय निरीक्षण के केवल खानापूर्ति करते हुए एक सतही, अधूरी और भ्रामक रिपोर्ट तहसील स्तर पर प्रस्तुत की गई। आख्या में न तो स्पॉट मेमो संलग्न किया गया था और न ही किसी भी निष्पक्ष स्थानीय गवाह के हस्ताक्षर या बयान लिए गए थे, जिससे संदेह की स्थिति उत्पन्न हो गई। इस लापरवाही ने न केवल शिकायतकर्ता को न्याय से वंचित किया, बल्कि शासन की पारदर्शी और जवाबदेही सुनिश्चित करने की नीति को भी ठेस पहुंचाई।
इस पूरे प्रकरण की जिलाधिकारी नेहा शर्मा द्वारा गंभीरता से समीक्षा की गई और उन्होंने स्पष्ट रूप से यह पाया कि लेखपाल ने अपने पदीय कर्तव्यों का निर्वहन ईमानदारी और संवेदनशीलता के साथ नहीं किया। न केवल शिकायत की उपेक्षा की गई, बल्कि जिस कार्य प्रणाली की अपेक्षा एक राजस्व अधिकारी से होती है, उसमें भी घोर शिथिलता प्रदर्शित की गई।
इस आधार पर जिलाधिकारी द्वारा लेखपाल अम्बिकेश्वर प्रताप के विरुद्ध “मध्यावधि विशेष प्रतिकूल प्रविष्टि” अंकित करने का निर्णय लिया गया। यह प्रविष्टि उनकी सेवा पुस्तिका में स्थायी रूप से दर्ज रहेगी और यह भविष्य में उनके प्रोन्नति, वेतनवृद्धि एवं अन्य प्रशासनिक मूल्यांकन में प्रभाव डालेगी। इसके साथ ही जिलाधिकारी द्वारा उन्हें चेताया गया है कि वे अपनी कार्यप्रणाली में त्वरित और ठोस सुधार लाएं तथा आगे से किसी भी जनशिकायत के प्रति लापरवाही या उपेक्षा का रवैया अपनाने से बचें।
इस कार्रवाई का व्यापक संदेश जिला प्रशासन के समस्त कर्मचारियों और अधिकारियों को दिया गया है कि जनशिकायतों के निस्तारण में किसी भी प्रकार की ढिलाई अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी। प्रशासन जन अपेक्षाओं के अनुरूप निष्पक्ष और संवेदनशीलता से कार्य करे—यह जिलाधिकारी की स्पष्ट प्राथमिकता है।
जिलाधिकारी ने यह भी दोहराया कि “कोई भी शिकायत छोटी या बड़ी नहीं होती। जब कोई नागरिक शासन प्रशासन से उम्मीद लेकर दरवाज़ा खटखटाता है तो उसका विश्वास और संवेदना दोनों जुड़ी होती है। ऐसे में उसे नजरअंदाज करना न केवल अमानवीय है, बल्कि प्रशासनिक जिम्मेदारी का घोर उल्लंघन भी।”
उन्होंने समस्त राजस्व अधिकारियों को निर्देशित किया है कि वे प्रत्येक शिकायत का भलीभांति परीक्षण करें, मौके पर जाकर निरीक्षण करें और दोनों पक्षों को सुनकर पारदर्शी एवं संतुलित आख्या प्रस्तुत करें। विशेषकर चकमार्गों और सार्वजनिक जमीनों से अतिक्रमण हटवाने के मामलों में त्वरित कार्यवाही अनिवार्य रूप से सुनिश्चित की जाए, जिससे शासन की “भूमि मुक्त अभियान” जैसी महत्त्वाकांक्षी योजनाओं को बल मिल सके।
इस निर्णय से यह भी स्पष्ट संकेत गया है कि प्रशासनिक व्यवस्था में कदाचार, लापरवाही और असंवेदनशीलता के लिए कोई स्थान नहीं है। जिलाधिकारी ने यह भी कहा कि यदि भविष्य में किसी अधिकारी या कर्मचारी के विरुद्ध इस प्रकार की शिकायतें पुनः प्राप्त होती हैं और वे तथ्यात्मक रूप से पुष्ट पाई जाती हैं, तो संबंधित के विरुद्ध कठोरतम अनुशासनिक कार्यवाही की जाएगी।
जनपद गोंडा में जिलाधिकारी नेहा शर्मा के नेतृत्व में एक जवाबदेह और संवेदनशील प्रशासनिक कार्यशैली को संस्थागत रूप देने की दिशा में यह निर्णय एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। उन्होंने यह साबित किया है कि जनसमस्याओं की उपेक्षा अब बीते कल की बात है और प्रशासन अब तत्परता, सत्यनिष्ठा और पारदर्शिता के साथ कार्य करेगा।
प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार, इस प्रकार की अनुकरणीय कार्रवाइयों का उद्देश्य केवल दंड देना नहीं, बल्कि समस्त विभागों में कार्य संस्कृति को सुधारना और प्रशासनिक नैतिकता को पुनर्स्थापित करना है। जनपद स्तर पर पारदर्शी, उत्तरदायी और प्रभावी प्रशासनिक वातावरण के निर्माण हेतु जिलाधिकारी की यह सतर्कता और सजगता एक प्रेरक पहल के रूप में देखी जा रही है।
बंदरहा गांव के शिकायतकर्ता श्री जगदीश प्रसाद ने भी जिलाधिकारी की तत्परता और निष्पक्ष कार्रवाई की सराहना करते हुए कहा कि यदि इस प्रकार से प्रत्येक शिकायत पर ध्यान दिया जाए तो ग्रामीणों का प्रशासन में भरोसा और मजबूत होगा तथा आम नागरिकों को शीघ्र न्याय प्राप्त होगा।
यह प्रकरण यह भी दर्शाता है कि उत्तर प्रदेश सरकार की मंशा के अनुरूप जिलाधिकारी नेहा शर्मा हर स्तर पर पारदर्शिता और कार्यदक्षता सुनिश्चित करने हेतु निरंतर प्रयासरत हैं और जनहित को सर्वोपरि मानते हुए किसी भी स्तर पर लापरवाही या उदासीनता बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
तहसील स्तरीय अधिकारियों के लिए यह एक स्पष्ट संदेश है कि वे अपने कार्यों को केवल औपचारिकता के रूप में न लें, बल्कि जनता की सेवा को अपना धर्म और कर्तव्य समझें। चकमार्ग, चरागाह और सार्वजनिक उपयोग की भूमि से जुड़े मामलों में विशेष सावधानी और संवेदनशीलता आवश्यक है, क्योंकि ऐसे प्रकरणों में जनहित और सार्वजनिक संसाधनों की रक्षा सीधे-सीधे जुड़ी होती है।
जिलाधिकारी द्वारा लेखपाल को दी गई चेतावनी और प्रविष्टि से स्पष्ट है कि प्रशासन अब केवल आदेश जारी करने तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि उन आदेशों के क्रियान्वयन की सतत निगरानी भी सुनिश्चित की जाएगी। यह निगरानी ही प्रशासन को मजबूत, निष्पक्ष और जनोन्मुखी बनाती है।
भविष्य में यदि इसी तरह से प्रत्येक शिकायत की निष्पक्षता से जांच की जाती रही और दोषी कर्मियों के विरुद्ध कठोर कदम उठाए जाते रहे, तो न केवल आम जनता का भरोसा प्रशासन पर और अधिक गहरा होगा, बल्कि जनपद में सुशासन की वास्तविक तस्वीर उभरकर सामने आएगी।
गोंडा जैसे जिले में जहां विकास की गति को प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही से सीधा जोड़ा जाता है, वहां इस प्रकार की कार्रवाईयां लंबे समय तक सकारात्मक प्रभाव छोड़ने वाली साबित होंगी। यह निर्णय भी उसी दिशा में एक आवश्यक एवं साहसिक कदम के रूप में दर्ज किया जाएगा।