
नई दिल्ली 19 दिसंबर। भारत की राजनीति में दलितों के नेता और संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर का नाम हमेशा से गरमागरम चर्चा का विषय रहा है। हाल ही में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने अंबेडकर के प्रति कांग्रेस के रवैये को लेकर तीखा हमला किया और उन्हें ‘मगरमच्छ के आंसू’ बहाने वाला बताया। प्रधान ने दावा किया कि कांग्रेस पार्टी, जिसमें पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर राहुल गांधी तक का नेतृत्व शामिल है, ने हमेशा अंबेडकर के प्रति नफरत और अवमानना दिखाई है।
प्रधान का यह बयान उस समय आया जब उन्होंने 2012 में प्रकाशित एनसीईआरटी की 11वीं कक्षा की किताब में एक कार्टून का जिक्र किया। इस कार्टून में नेहरू को अंबेडकर को कोड़े मारते हुए दिखाया गया है। धर्मेंद्र प्रधान ने इस कार्टून को ‘शर्मनाक’ करार दिया और कांग्रेस पर हमला बोलते हुए दावा किया कि यह गांधी परिवार की मंजूरी से प्रकाशित हुआ था।
कार्टून विवाद: क्या है मामला?
2012 में यूपीए-2 सरकार के दौरान एनसीईआरटी की 11वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की किताब में प्रकाशित एक कार्टून पर भारी विवाद हुआ था। इस कार्टून में अंबेडकर को एक घोंघे पर बैठा दिखाया गया था और नेहरू उनके पीछे कोड़ा चलाते हुए दिखाई दिए। इस कार्टून का उद्देश्य संविधान निर्माण की धीमी प्रक्रिया को दर्शाना था, लेकिन इसके प्रतीकात्मक अर्थ को कई लोगों ने अपमानजनक माना।
विवाद बढ़ने के बाद, तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने माफी मांगी और इस कार्टून को किताब से हटाने का आदेश दिया। प्रधान ने इसी घटना का उल्लेख करते हुए कांग्रेस पर निशाना साधा और दावा किया कि पार्टी ने कभी अंबेडकर को उचित सम्मान नहीं दिया।
अचानक @INCIndia के अंदर बाबासाहेब अंबेडकर जी के प्रति सम्मान उमड़ पड़ा है। बाबासाहेब को लेकर कांग्रेस के ये घड़ियाली आंसू सिर्फ दिखावा हैं, इनकी कथनी और करनी में जमीन-आसमान का अंतर है।
कांग्रेस पार्टी की बाबासाहेब को लेकर नफरत और घृणा जगजाहिर है 👇
– कांग्रेस के नेतृत्व वाली… pic.twitter.com/SzrjAlTVLf
— Dharmendra Pradhan (@dpradhanbjp) December 19, 2024
धर्मेंद्र प्रधान का बयान: सियासी नीयत या इतिहास की व्याख्या?
धर्मेंद्र प्रधान ने अपने बयान में कहा, “अचानक से कांग्रेस में बाबा साहेब अंबेडकर के प्रति सम्मान उमड़ पड़ा है। ये मगरमच्छ के आंसू हैं। कांग्रेस पार्टी ने हमेशा अंबेडकर का अपमान किया है। जिन्होंने खुद को ‘भारत रत्न’ दिया, उन्होंने अंबेडकर को कभी उचित सम्मान नहीं दिया।”
प्रधान ने दावा किया कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंबेडकर को उचित सम्मान दिया, तो कांग्रेस इसे सहन नहीं कर पाई। उन्होंने कांग्रेस पर अंबेडकर के नाम का राजनीतिक लाभ उठाने का आरोप लगाया और कहा कि पार्टी मजबूरी में उनका नाम लेती है।
क्या धर्मेंद्र प्रधान का बयान तर्कसंगत है?
धर्मेंद्र प्रधान के इस बयान में दो मुख्य पहलू उभरकर आते हैं:
1. कांग्रेस की ऐतिहासिक भूमिका पर सवाल: प्रधान ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि उसने अंबेडकर के प्रति कभी सम्मान नहीं दिखाया। लेकिन यह तथ्य है कि अंबेडकर को भारतीय संविधान सभा में शामिल करने और कानून मंत्री बनाने में कांग्रेस की भूमिका महत्वपूर्ण थी। पंडित नेहरू और सरदार पटेल ने उन्हें संविधान सभा का चेयरमैन बनाया। क्या यह ‘नफरत’ थी?
2. राजनीतिक अवसरवाद: प्रधान के बयान में यह साफ झलकता है कि भाजपा अंबेडकर के नाम का इस्तेमाल कांग्रेस को घेरने के लिए कर रही है। भाजपा ने 2014 के बाद अंबेडकर की विरासत को आगे बढ़ाने की कोशिश की है, लेकिन क्या यह सही है कि पहले उनकी पार्टी या विचारधारा ने अंबेडकर के प्रति उचित सम्मान दिखाया था? इतिहास में अंबेडकर के संघ परिवार के साथ तनावपूर्ण रिश्ते रहे हैं।
कार्टून का राजनीतिकरण: शिक्षा का गिरता स्तर?
प्रधान ने जिस कार्टून का उल्लेख किया, वह एनसीईआरटी की किताब में शिक्षा और जागरूकता बढ़ाने के लिए शामिल किया गया था। कार्टून बनाने का उद्देश्य संविधान निर्माण की प्रक्रिया और उसकी चुनौतियों को दर्शाना था। हालांकि, प्रतीकात्मकता को लेकर विवाद और राजनीति ने इस कार्टून का अर्थ बदल दिया।
लेकिन यहां यह सवाल उठता है कि क्या धर्मेंद्र प्रधान, जो देश के शिक्षा मंत्री हैं, कार्टून को लेकर केवल कांग्रेस पर हमला करने तक सीमित रह गए हैं? क्या उन्होंने यह जांचने की कोशिश की कि एनसीईआरटी और शिक्षा में सुधार के लिए उनकी सरकार ने क्या कदम उठाए हैं?
प्रधान का यह बयान शिक्षा जैसे संवेदनशील क्षेत्र को राजनीतिक विवाद का हिस्सा बना देता है।
कांग्रेस का जवाब: ‘झूठी बातें’
धर्मेंद्र प्रधान के बयान पर कांग्रेस ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी। पार्टी ने इसे ‘झूठ का पुलिंदा’ बताया और कहा कि भाजपा अंबेडकर के नाम पर राजनीति कर रही है। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा, “अंबेडकर को भारतीय संविधान सभा में सम्मान और नेतृत्व कांग्रेस ने दिया। भाजपा के पास आज उनके नाम का कोई ठोस उदाहरण नहीं है। यह बयान केवल ध्यान भटकाने की कोशिश है।”
क्या अंबेडकर का नाम केवल सियासी हथियार है?
धर्मेंद्र प्रधान और कांग्रेस के बीच इस विवाद ने एक बड़े मुद्दे को उजागर किया है—क्या भारतीय राजनीति में अंबेडकर का नाम केवल सियासी हथियार बनकर रह गया है?
भाजपा और कांग्रेस दोनों ने समय-समय पर अंबेडकर की विरासत को अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश की है। कांग्रेस ने संविधान निर्माण में उनकी भूमिका को अपने एजेंडे में रखा, जबकि भाजपा ने दलित मतदाताओं को लुभाने के लिए अंबेडकर का नाम बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया।
लेकिन दोनों ही पार्टियां शायद यह भूल रही हैं कि अंबेडकर केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक विचारधारा और क्रांति का प्रतीक हैं। उनका योगदान भारतीय समाज को जाति व्यवस्था और असमानता से बाहर निकालने के लिए था।
प्रभात भारत विशेष
धर्मेंद्र प्रधान का बयान और कार्टून विवाद दिखाता है कि किस तरह राजनीति शिक्षा के क्षेत्र को भी विवादों में घसीट लेती है। बतौर शिक्षा मंत्री प्रधान से उम्मीद थी कि वे शिक्षा की गुणवत्ता, एनसीईआरटी की सामग्री और पाठ्यक्रम सुधार पर ध्यान दें। लेकिन उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधने के लिए एक पुरानी घटना का सहारा लिया।
यह समय है कि राजनीतिक दल अंबेडकर जैसे महान नेता के नाम का सम्मान करें और उन्हें केवल सियासी हथियार बनाने से बचें। शिक्षा मंत्री को चाहिए कि वे शिक्षा और जागरूकता बढ़ाने के लिए काम करें, न कि शिक्षा को राजनीति का माध्यम बनाएं। भारतीय समाज को अंबेडकर की विचारधारा और उनकी क्रांति की जरूरत है, न कि उनके नाम पर सियासी जंग की।