
हैदराबाद 8 अक्टूबर। डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी, ऑरिजेन ऑन्कोलॉजी लिमिटेड, को एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल हुई है। भारत के पहले ऑटोलॉगस बीसीएमए (बी-सेल मैच्योरेशन एंटीजन) निर्देशित सीएआर-टी (काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर) सेल थेरेपी, रिब्रेकैबटेजीन ऑटोल्यूसेल, के दूसरे चरण के परीक्षणों के लिए ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) से मंजूरी मिल गई है। यह अनुमति भारतीय चिकित्सा क्षेत्र में एक बड़ा कदम माना जा रहा है, खासकर मल्टीपल मायलोमा जैसी जटिल बीमारियों के इलाज के क्षेत्र में।
पहले चरण की सफलता और दूसरे चरण की मंजूरी
ऑरिजेन ऑन्कोलॉजी लिमिटेड, जो कि एक क्लिनिकल स्टेज बायोटेक कंपनी है, ने पहले चरण के परीक्षणों को सफलतापूर्वक पूरा किया। यह परीक्षण रिलैप्स या रिफ्रैक्टरी मल्टीपल मायलोमा (Multiple Myeloma) से ग्रसित मरीजों पर किया गया था। रिब्रेकैबटेजीन ऑटोल्यूसेल, जिसे कोडनेम डीआरएल-1801 (DRL-1801) के नाम से भी जाना जाता है, ने इन रोगियों में उल्लेखनीय नैदानिक प्रतिक्रिया दी। यह थेरेपी बी-सेल मैच्योरेशन एंटीजन (BCMA) को टारगेट करती है, जो मल्टीपल मायलोमा के इलाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
पहले चरण के परिणामों के आधार पर, डीसीजीआई ने अब इस थेरेपी के दूसरे चरण के परीक्षण की अनुमति दी है, जो इसके प्रभाव और सुरक्षा का और विस्तार से मूल्यांकन करेगा। यह कदम भारत में कैंसर उपचार के क्षेत्र में नए युग की शुरुआत का प्रतीक है, क्योंकि यह देश की पहली ऑटोलॉगस CAR-T सेल थेरेपी होगी, जो विशेष रूप से भारतीय मायलोमा मरीजों के लिए विकसित की गई है।
CAR-T थेरेपी: क्रांतिकारी उपचार विधि
रिब्रेकैबटेजीन ऑटोल्यूसेल CAR-T सेल थेरेपी है, जिसमें रोगी के स्वयं के टी-सेल्स को जीन संवर्धन द्वारा संशोधित किया जाता है ताकि वे कैंसर कोशिकाओं को पहचान सकें और उन्हें नष्ट कर सकें। CAR-T सेल थेरेपी की प्रक्रिया में, मरीज के टी-सेल्स को उसके शरीर से निकाला जाता है, फिर इन्हें प्रयोगशाला में जीन संवर्धित किया जाता है ताकि वे बी-सेल मैच्योरेशन एंटीजन (BCMA) को टारगेट कर सकें। इसके बाद इन संशोधित टी-सेल्स को मरीज के शरीर में वापस डाला जाता है, जो कैंसर कोशिकाओं पर हमला करते हैं और उन्हें नष्ट करते हैं।
यह थेरेपी ऑटोलॉगस है, जिसका मतलब है कि इसमें मरीज के अपने ही सेल्स का उपयोग किया जाता है, जिससे उपचार की प्रभावशीलता और सुरक्षा दोनों में सुधार होता है। इस थेरेपी में मानवकृत एकल-डोमेन एंटीबॉडी और लेंटिवायरस का उपयोग किया जाता है, जो इसके प्रभावी होने की संभावना को बढ़ाते हैं।
पहले चरण के परिणाम: 100% नैदानिक प्रतिक्रिया
रिब्रेकैबटेजीन ऑटोल्यूसेल के पहले चरण के परीक्षण में आठ मरीजों को शामिल किया गया था, जिनका औसतन 5.5 बार पिछले उपचार से इलाज हो चुका था। इन मरीजों ने पहले कई प्रकार के उपचार, जैसे कि प्रत्यारोपण, करवाए थे, लेकिन इन उपचारों के बावजूद उनकी बीमारी में प्रगति होती रही।
पहले चरण के परिणामों में दिखाया गया कि सभी आठ मरीजों ने नैदानिक प्रतिक्रिया (Clinical Response) दिखाई, जो CAR-T थेरेपी के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इनमें से पांच मरीजों (62.5%) ने कठोर पूर्ण प्रतिक्रिया (Stringent Complete Response) प्राप्त की, जिसका मतलब है कि उनकी बीमारी पूरी तरह से समाप्त हो गई। यह परिणाम न केवल चिकित्सा के क्षेत्र में, बल्कि मरीजों और उनके परिवारों के लिए भी आशा की नई किरण है।
ऑरिजेन ऑन्कोलॉजी के लिए यह एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था, और कंपनी ने इसे भारतीय मायलोमा रोगियों के लिए एक क्रांतिकारी उपचार बताया। कंपनी के अनुसार, इस तरह के उत्साहजनक परिणाम आने वाले समय में CAR-T थेरेपी को और अधिक विस्तार देने में मदद करेंगे।
सुरक्षा और सहनशीलता: कम जोखिम वाली थेरेपी
चरण-1 परीक्षण में थेरेपी की सुरक्षा और सहनशीलता पर भी ध्यान दिया गया। डॉ. रेड्डीज की नियामक फाइलिंग के अनुसार, किसी भी मरीज में साइटोकाइन रिलीज़ सिंड्रोम (Cytokine Release Syndrome – CRS) या न्यूरोटॉक्सिसिटी की उच्च श्रेणी की घटनाएं नहीं देखी गईं। यह CAR-T थेरेपी के लिए एक महत्वपूर्ण संकेतक है, क्योंकि सुरक्षा और सहनशीलता कैंसर उपचार की सफलता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैं।
डॉ. रेड्डीज ने कहा कि इस थेरेपी का निर्माण बेंगलुरु में ऑरिजेन ऑन्कोलॉजी लिमिटेड के CAR-T GMP (Good Manufacturing Practice) विनिर्माण सुविधा में किया जा रहा है। यह सुविधा अत्याधुनिक तकनीक से लैस है और CAR-T थेरेपी के उत्पादन के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन की गई है।
भारत में मल्टीपल मायलोमा उपचार में नई उम्मीद
मल्टीपल मायलोमा एक प्रकार का रक्त कैंसर है, जो प्लाज्मा कोशिकाओं में उत्पन्न होता है और जिसका इलाज करना काफी कठिन होता है। मौजूदा उपचार विधियों में कीमोथेरेपी, स्टेम सेल प्रत्यारोपण और अन्य लक्षित थेरेपी शामिल हैं, लेकिन इनमें से कुछ उपचारों के बाद भी मरीजों में बीमारी की पुनरावृत्ति हो जाती है।
CAR-T थेरेपी, विशेष रूप से रिब्रेकैबटेजीन ऑटोल्यूसेल, उन मरीजों के लिए आशा की एक नई किरण हो सकती है, जो रिलैप्स्ड या रिफ्रैक्टरी मल्टीपल मायलोमा से जूझ रहे हैं। यह थेरेपी भारतीय मायलोमा रोगियों के लिए एक महत्वपूर्ण उपचार विकल्प बन सकती है, खासकर उन लोगों के लिए जिनके पास अन्य उपचार विकल्प नहीं बचे हैं।
भविष्य की चुनौतियां और अवसर
ऑरिजेन ऑन्कोलॉजी के सीईओ डॉ. मुरली रामचंद्र ने इस सफलता पर खुशी जताई और कहा कि भारत में रिलैप्स्ड रिफ्रैक्टरी मायलोमा के मरीजों पर किए गए परीक्षणों के परिणाम उत्साहजनक हैं। उन्होंने कहा, “हम इस डेटा से रोमांचित हैं। यह दवा मायलोमा से पीड़ित भारतीय रोगियों के लिए परिवर्तनकारी हो सकती है।”
हालांकि, दूसरे चरण के परीक्षणों में अभी भी कई चुनौतियां होंगी, जैसे कि थेरेपी की प्रभावशीलता को और अधिक बड़े पैमाने पर मरीजों में परखना, इसके दीर्घकालिक प्रभावों का मूल्यांकन करना और थेरेपी की लागत को मरीजों के लिए सुलभ बनाना। CAR-T थेरेपी की लागत फिलहाल बहुत अधिक है, और इसे सस्ता और व्यापक रूप से उपलब्ध बनाना एक प्रमुख लक्ष्य होगा।
ऑरिजेन ऑन्कोलॉजी को डीसीजीआई से मिले इस मंजूरी से यह स्पष्ट है कि भारत में CAR-T थेरेपी के क्षेत्र में एक नया युग शुरू हो रहा है। रिब्रेकैबटेजीन ऑटोल्यूसेल जैसे नए और अत्याधुनिक उपचार मायलोमा जैसे जटिल कैंसरों के इलाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
भारत में इस तरह की उन्नत थेरेपी के परीक्षण और विकास से यह संकेत मिलता है कि देश अब बायोटेक और ऑन्कोलॉजी के क्षेत्र में तेजी से प्रगति कर रहा है। अगर यह थेरेपी सफल होती है, तो यह भारतीय कैंसर उपचार क्षेत्र में एक क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है और हजारों मरीजों को नया जीवन देने में सहायक हो सकती है।