
गोण्डा 18 अक्टूबर। जनपद में उजाला लाने की कवायद, जो कि आम जनता के जीवन को बेहतर बनाने के लिए शुरू की गई थी, अब एक बड़े भ्रष्टाचार की कहानी बन गई है। सरकार की ओर से जारी की गई हाई मास्क लाइट योजना को अधिकारियों और ठेकेदारों ने भ्रष्टाचार और बंदरबांट का जरिया बना लिया। इस योजना के तहत नगर पालिका, नगर पंचायत, और क्षेत्र पंचायत निधियों से जारी की गई भारी धनराशि का उपयोग बड़े पैमाने पर घोटाले के लिए किया गया।
जनपद की गलियों, चौराहों, और सार्वजनिक स्थानों पर लगने वाली हाई मास्क लाइट्स की आड़ में करोड़ों रुपये का हेरफेर किया जा रहा है। लाइट्स और पोल्स की गुणवत्ता से लेकर उनकी कीमत तक, हर कदम पर भ्रष्टाचार का बोलबाला है। जिन लाइट्स की कीमतें लाखों में होनी चाहिए थीं, वे घटिया गुणवत्ता की सस्ती लाइट्स से बदली जा रही हैं, और बाकी पैसा अधिकारियों, ठेकेदारों, और स्थानीय नेताओं की जेबों में जा रहा है।
हाई मास्क लाइट योजना: उद्देश्य और योजना का कार्यान्वयन
उत्तर प्रदेश में हाई मास्क लाइट्स लगाने की योजना का उद्देश्य गाँवों, कस्बों, और शहरों की सड़कों और सार्वजनिक स्थानों को रात के समय रोशन करना था। इन लाइट्स के माध्यम से न केवल सुरक्षा सुनिश्चित की जानी थी, बल्कि यातायात व्यवस्था को भी सुगम बनाने का लक्ष्य रखा गया था। सरकार ने इस परियोजना के लिए नगर पालिका, नगर पंचायत, और क्षेत्र पंचायत निधियों से भारी मात्रा में धनराशि जारी की थी, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि हर स्थान पर उजाला हो।
लेकिन यह योजना कागजों पर जितनी प्रभावी दिख रही थी, जमीनी हकीकत में इसका कार्यान्वयन उतना ही दयनीय साबित हुआ। लाइट्स की कीमतों और गुणवत्ता में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की गई, और जो धनराशि इन लाइट्स को लगाने के लिए आवंटित की गई थी, उसका एक बड़ा हिस्सा भ्रष्ट अधिकारियों और ठेकेदारों की जेबों में चला गया।
घटिया लाइट्स और पोल्स की आपूर्ति: मानकों से समझौता
इस योजना के तहत, जनपद में कई स्थानों पर हाई मास्क लाइट्स और उनके पोल्स लगाए गए। इन लाइट्स को सरकारी मानकों के अनुसार टिकाऊ और उच्च गुणवत्ता का होना चाहिए था। लेकिन वास्तविकता में, जो लाइट्स लगाई गईं, वे घटिया गुणवत्ता की थीं।
मानकों से समझौता कैसे किया गया?
लाइट्स की कीमतों में हेरफेर: योजना के अनुसार, एक हाई मास्क लाइट की कीमत लगभग 1.5 लाख रुपये होनी चाहिए थी। उन्नत चौराहों और सार्वजनिक स्थानों के लिए, 3.3 लाख रुपये तक की कीमत वाली लाइट्स का प्रावधान था। लेकिन जो लाइट्स वास्तव में लगाई गईं, उनकी कीमतें मात्र 55,000 रुपये से लेकर 1.2 लाख रुपये तक ही थीं। इसका मतलब है कि हर लाइट पर हजारों से लाखों रुपये की हेराफेरी की गई।
पोल्स की गुणवत्ता में गिरावट: पोल्स, जो लाइट्स को सहारा देने के लिए बनाए गए थे, उनकी भी गुणवत्ता घटिया थी। कई स्थानों पर पोल्स कुछ ही महीनों में जंग खाकर टूटने लगे, और कुछ तो गिर भी गए। यह साबित करता है कि पोल्स में इस्तेमाल की गई सामग्री भी मानकों के अनुरूप नहीं थी।
पैसे का बंदरबांट: कैसे किया गया घोटाला?
इस घोटाले को अंजाम देने के लिए कई स्तरों पर भ्रष्टाचार किया गया। नगर पालिका और पंचायतों के अधिकारी, ठेकेदार, और स्थानीय नेता सभी इसमें शामिल थे।
अधिकारियों और ठेकेदारों का गठजोड़
टेंडर प्रक्रिया में हेरफेर: सबसे पहले, लाइट्स और पोल्स की आपूर्ति के लिए निकाले गए टेंडर में हेरफेर किया गया। अधिकारियों और ठेकेदारों ने मिलकर उन कंपनियों को टेंडर दिए, जो या तो निम्न गुणवत्ता का सामान सप्लाई करती थीं या फिर घोटाले में शामिल थीं।
कृत्रिम कीमतें: जिन लाइट्स की वास्तविक कीमत लाखों में होनी चाहिए थी, उन्हें कागजों पर इतना बढ़ाकर दिखाया गया कि सरकार से अधिक धनराशि ली जा सके। लेकिन असल में घटिया गुणवत्ता की सस्ती लाइट्स और पोल्स खरीदे गए।
कीमतों में भारी गड़बड़ी
1.5 लाख रुपये की लाइट 55,000 रुपये में: उदाहरण के तौर पर, जो लाइट्स 1.5 लाख रुपये की थीं, उन्हें वास्तविक मूल्य मात्र 55,000 रुपये था, और बाकी का पैसा अधिकारियों और ठेकेदारों के बीच बंदरबांट हो गया।
3.3 लाख रुपये की लाइट 1.2 लाख रुपये में: उच्च गुणवत्ता की लाइट्स की जगह सस्ती लाइट्स लगाकर 2.1 लाख रुपये प्रति लाइट का घोटाला किया गया।
मानक विहीन सामग्री का इस्तेमाल
लाइट्स और पोल्स की गुणवत्ता में जानबूझकर समझौता किया गया। जिन पोल्स को कई सालों तक टिकने के लिए बनाया जाना चाहिए था, वे कुछ ही महीनों में जंग खाकर खराब होने लगे लाइट्स में इस्तेमाल की गई बैटरियां और बल्ब भी खराब गुणवत्ता के थे, जिससे वे जल्दी जल गए और बंद हो गए।
जनता की नाराजगी और असुविधा
इस घोटाले का सबसे बड़ा असर आम जनता पर पड़ा। जो लोग इन लाइट्स के जरिए बेहतर रोशनी और सुरक्षा की उम्मीद कर रहे थे, उन्हें अंधेरे में धकेल दिया गया।
स्थानीय निवासियों की शिकायतें:
एक स्थानीय दुकानदार का कहना है, “जब ये लाइट्स लगीं, तो हमें लगा कि अब रात में व्यापार करना आसान हो जाएगा। लेकिन कुछ ही महीनों में लाइट्स बंद हो गईं, और अब हमें फिर से अंधेरे में काम करना पड़ता है। एक अन्य निवासी ने कहा, “हमें बताया गया था कि ये लाइट्स कई सालों तक चलेंगी, लेकिन अब हमें लग रहा है कि यह सब केवल पैसे की लूट के लिए किया गया था।”
शिकायतों पर प्रशासन की अनदेखी
जब लाइट्स और पोल्स जल्दी खराब होने लगे, तो जनता ने नगर पालिका और प्रशासन के पास शिकायतें कीं। लेकिन इन शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया गया।
प्रशासन की प्रतिक्रिया:
नगर पालिका और पंचायत अधिकारियों ने शिकायतों को नजरअंदाज किया और कहा कि लाइट्स की मरम्मत की जाएगी, लेकिन मरम्मत के नाम पर फिर से वही भ्रष्टाचार किया गया प्रशासन ने लाइट्स की खराब गुणवत्ता पर कोई जांच नहीं की और जनता की समस्याओं को दरकिनार कर दिया।
जांच का अभाव: क्यों नहीं हो रही है जांच?
यह घोटाला उजागर होने के बावजूद, सरकार या स्थानीय प्रशासन की ओर से अभी तक कोई ठोस जांच नहीं की गई है।
क्या कहता है प्रशासन?
जब भी इस घोटाले के बारे में क्षेत्र पंचायत के अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से सवाल किया जाता है, तो अधिकारियों की ओर से गोलमोल जवाब दिए जाते हैं। ऐसा लगता है कि इस मामले को दबाने की पूरी कोशिश की जा रही है, ताकि दोषियों पर कार्रवाई न हो सके। इसके पीछे एक बड़ी वजह यह है कि नगर पालिका और पंचायत के कई अधिकारी और ठेकेदार इस घोटाले में शामिल हैं, और उनकी प्रशासनिक पहुँच इतनी मजबूत है कि किसी भी प्रकार की जांच को आसानी से दबा दिया जाता है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम: क्या हो सकते हैं समाधान?
यह घोटाला न केवल गोण्डा जनपद, बल्कि पूरे राज्य में भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हो चुकी हैं, इसका प्रमाण है। ऐसे घोटालों को रोकने के लिए सरकार को कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है।
संभव समाधान:
पारदर्शिता लाना: योजनाओं के कार्यान्वयन में पारदर्शिता जरूरी है। टेंडर प्रक्रिया को सार्वजनिक किया जाना चाहिए, ताकि जनता को भी पता चले कि कौन सा ठेकेदार काम कर रहा है और उस काम की गुणवत्ता कैसी है।
स्वतंत्र जांच आयोग: इस प्रकार के घोटालों की जांच के लिए एक स्वतंत्र आयोग का गठन किया जाना चाहिए, जिसमें जनता और विशेषज्ञों को शामिल किया जाए।
कड़ी सजा: जो भी अधिकारी, ठेकेदार, या नेता इस घोटाले में शामिल पाए जाएं, उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए।
गोण्डा जनपद में हाई मास्क लाइट योजना का घोटाला उजाले के नाम पर ठेकेदारों की और अधिकारियों की अंधी कमाई का जरिया मात्र रह गया है। प्रदेश में हाई मास्क लाइट योजना का घोटाला भ्रष्टाचार का एक और जीता-जागता उदाहरण है। जनता के पैसों का दुरुपयोग करके कुछ खास लोग अपनी जेबें भर रहे हैं, जबकि जिनके लिए यह योजना बनाई गई वह अभी भी अंधेरे में है।