
गोण्डा, 29 दिसंबर। बेसिक शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार की गहरी जड़ें और अधिकारियों का जुगाड़ तंत्र लंबे समय से सुर्खियों में है। अनुदानित विद्यालयों से जुड़े मामलों में अधिकारियों की भूमिका और उनके द्वारा की गई अनियमितताओं ने विभागीय कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। ये मामले न केवल न्यायालय में सही पैरवी न करने तक सीमित हैं, बल्कि इसमें रिश्तेदारों को लाभ पहुंचाने और अपने व्यक्तिगत स्वार्थों को साधने के आरोप भी शामिल हैं।
जुगाड़ से बनी नियुक्तियां और लाखों की कमाई का खेल
बेसिक शिक्षा विभाग में अनुदानित विद्यालयों के पटल पर नियुक्त बाबुओं ने अपने प्रभाव का गलत इस्तेमाल करते हुए करोड़ों रुपये की कमाई की है। इन अधिकारियों ने जुगाड़ के सहारे महत्वपूर्ण पद हथिया लिए और फिर इसे अपनी निजी संपत्ति की तरह उपयोग किया। इन बाबुओं का खेल यहीं खत्म नहीं होता। सूत्रों के मुताबिक, इन्होंने अपने करीबी रिश्तेदारों को विभिन्न अनुदानित विद्यालयों में अध्यापक के रूप में नियुक्त करवा दिया।
मंडप, वजीरगंज, तरबगंज, और छपिया जैसे स्थानों में रिश्तेदारों की तैनाती
जिला गोंडा के विभिन्न ब्लॉकों में इन अधिकारियों ने अपनी मर्जी के मुताबिक नियुक्तियां करवाईं। इन रिश्तेदारों को अध्यापक के पद पर भेजने के बाद उन्हें स्कूल जाने की भी जरूरत नहीं पड़ी। ये रिश्तेदार अलग से व्यवसाय या फर्म चलाते हैं, जबकि अनुदानित पटल संभालने वाले बाबुओं ने इस पूरे तंत्र का उपयोग अपने लाभ के लिए किया।
बाबुओं की करोड़ों की कमाई
रिश्तेदारों की नियुक्ति और अनुदानित विद्यालयों से जुड़े अन्य मामलों में बाबुओं ने न केवल भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया, बल्कि इससे करोड़ों की कमाई भी की। अनुदानित विद्यालयों के प्रबंधकों के साथ सांठगांठ कर ये अधिकारी नियमों की धज्जियां उड़ाते रहे।
न्यायालय में विभाग की पैरवी में अनियमितताएं
बेसिक शिक्षा विभाग के दूसरे बाबुओं ने न्यायालय में पैरवी के दौरान अपने कर्तव्यों का घोर उल्लंघन किया। उच्च न्यायालय में विभागीय मामलों की पैरवी करते हुए उन्होंने प्रबंधकों का साथ दिया और विभाग के पक्ष में मजबूत दलीलें रखने में असफल रहे।
कागजी जवाब और तथ्यों की छिपावट
अधिकतर मामलों में विभाग की तरफ से पेश किए गए कागजी जवाब अधूरे और कमजोर होते थे। तथ्यों को छिपाने और गलत जानकारी देने का खेल जारी रहा। इसकी वजह से न्यायालय ने अधिकतर निर्णय अनुदानित विद्यालयों के पक्ष में दिए।
सही पैरवी के अभाव में नुकसान
इन मामलों में सही पैरवी न होने के कारण विभागीय अधिकारियों को नुकसान उठाना पड़ा। एक बार तो स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि एक बेसिक शिक्षा अधिकारी को केवल इसलिए निलंबित कर दिया गया, क्योंकि उन्होंने न्यायालय में सही जवाब प्रस्तुत नहीं किया। लेकिन दोषी बाबुओं पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं हुई।
अनुदानित विद्यालयों का पक्ष लेना बना नियम
न्यायालय में विभागीय मामलों की सुनवाई के दौरान अक्सर यह देखा गया कि विभाग की तरफ से पैरवी करने वाले बाबुओं ने अनुदानित विद्यालयों का पक्ष लिया।
बीमार होने की रणनीति
जब भी न्यायालय में विभाग के पक्ष में मजबूत पैरवी की आवश्यकता होती, ये बाबू बीमारी का बहाना बना लेते। विभागीय अधिकारियों को कमजोर पैरवी के कारण शर्मिंदगी उठानी पड़ी।
ईमानदारी से निर्णय देने वाला न्यायालय
यहां यह उल्लेखनीय है कि उच्च न्यायालय ने हमेशा निष्पक्षता और साक्ष्यों के आधार पर निर्णय दिए। लेकिन जब विभाग की तरफ से प्रस्तुत कागजी कार्यवाही ही अधूरी हो, तो न्यायालय के लिए अनुदानित विद्यालयों के पक्ष में निर्णय देना स्वाभाविक हो जाता है।
विभागीय कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिह्न
बेसिक शिक्षा विभाग में बाबुओं की इस कार्यप्रणाली ने विभाग की साख को बुरी तरह प्रभावित किया है।भ्रष्टाचार के कारण ईमानदार अधिकारी निलंबित हुए सही पैरवी न होने के कारण जहां विभागीय अधिकारियों को निलंबन जैसी सजा भुगतनी पड़ी, वहीं इन भ्रष्ट बाबुओं पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं की गई।
विभागीय कार्यप्रणाली को पारदर्शी बनाने और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है। अनुदानित विद्यालयों के मामलों की निष्पक्ष जांच और दोषियों पर कार्रवाई से ही इस समस्या का समाधान संभव है।
बेसिक शिक्षा विभाग की वर्तमान स्थिति न केवल शिक्षा प्रणाली पर सवाल खड़े करती है, बल्कि यह प्रशासनिक स्तर पर सुधार की गंभीर आवश्यकता को भी दर्शाती है।