
गोंडा 28 अक्टूबर (विजय कुमार सिंह)। बेसिक शिक्षा विभाग, जिसे शिक्षा के क्षेत्र में सुधार और विकास का अहम जिम्मा सौंपा गया है, आज भ्रष्टाचार और अनियमितताओं का अड्डा बन चुका है। यह घोटाला किसी छोटे पैमाने पर नहीं, बल्कि व्यापक स्तर पर चल रहा है, जिसमें विभागीय बाबुओं से लेकर उच्च अधिकारी और विद्यालय प्रबंधन तक की संलिप्तता सामने आई है।
विभाग के अनुदानित विद्यालयों में अध्यापकों की नियुक्ति, वेतन भुगतान, और अनुमोदन से जुड़ी प्रक्रियाओं में फर्जीवाड़ा इस कदर हावी है कि 2011 से लेकर 2024 तक के लगभग सभी मामलों पर सवाल खड़े हो गए हैं। अरबों रुपये के लेनदेन से यह नेक्सस अपनी जड़ें गहरी कर चुका है, और इसका असर न केवल शिक्षा प्रणाली पर पड़ा है, बल्कि छात्रों और योग्य शिक्षकों के भविष्य पर भी गंभीर संकट खड़ा कर दिया है।
अनुदानित विद्यालयों में फर्जी अनुमोदन की साजिश, फर्जी डिस्पैच नंबर: घोटाले की जड़
2011 से 2017 के बीच डिस्पैच नंबरों के जरिए अनुमोदन प्रक्रिया में हेराफेरी शुरू हुई। ये नंबर असल में फर्जी तरीके से बनाएं गए थे, या तो उन्हें डिस्पैच पर पहले से उन्हीं विद्यालयों के नाम पत्र जारी हो रखे थे या वहां पर जगह खाली थी। जिन्हें कागजों में वैध दिखाने के लिए इस्तेमाल किया गया। 2018 से लेकर अब तक, लगभग सभी अनुदानित विद्यालयों में नियुक्त अध्यापकों के वेतन भुगतान इन्हीं फर्जी अनुमोदनों के आधार पर किए गए हैं।
अगर इन अनुमोदनों को सत्यापित किया जाए और बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) के हस्ताक्षरों की जांच हो, तो अधिकतर हस्ताक्षर फर्जी पाए जाएंगे। इससे स्पष्ट होता है कि यह घोटाला केवल बाबुओं तक सीमित नहीं है, बल्कि उच्च अधिकारियों की मिलीभगत के बिना यह संभव ही नहीं था।
2017 के बाद से घोटाले का विस्तार
2017 के बाद, घोटाले का स्वरूप और बड़ा हो गया। अनुमोदन प्रक्रिया को फर्जी डिस्पैच नंबरों और कागजी हेराफेरी के जरिए सरल बना दिया गया। इसी आधार पर सैकड़ों अध्यापकों को वेतन भुगतान किया गया। इन फर्जी अनुमोदनों की सत्यता जांचने के लिए अगर SIT या अन्य एजेंसी हस्ताक्षरों की पुष्टि करे, तो सच सामने आ जाएगा।
अभी कुछ दिनों पहले ही फर्जी डिस्पैच के लिए आलोक बाबू ने लिए ₹70000
इस नेक्सस में विभागीय बाबुओं की भूमिका सबसे अहम है। विभागीय बाबू न केवल फर्जी दस्तावेज तैयार करते हैं, बल्कि विद्यालय प्रबंधन और उच्च अधिकारियों से सांठगांठ करके इन दस्तावेजों को वैध बनाने का काम करते हैं। सूत्रों के अनुसार, अनुमोदन प्रक्रिया के लिए 70,000 से 1,00,000 रुपये तक की रिश्वत वसूली जाती है।
SIT जांच भी सवालों के घेरे में
इस घोटाले की गंभीरता को देखते हुए SIT जांच का गठन किया गया, विभागीय कर्मचारियों का आरोप है कि SIT के सदस्यों के रिश्तेदारों को भी अनुदानित विद्यालयों में नौकरियां दी गई हैं।
जांच का नाटक या सच्चाई की तलाश?
यह स्थिति सवाल खड़े करती है कि क्या SIT वास्तव में निष्पक्ष जांच कर रही है, या फिर जांच केवल कागजों तक सीमित है। अगर SIT अपनी जांच सही तरीके से करे, तो विभाग में चल रही अनियमितताओं का खुलासा होना तय है।
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बाबुओं की भूमिका
बाबू इस घोटाले के मुख्य किरदार हैं। वे न केवल फर्जी अनुमोदन तैयार करते हैं, बल्कि रिश्वत के जरिए नियुक्तियों को मंजूरी दिलाने का काम भी करते हैं।
- रिश्वत का पैमाना: अनुमोदन प्रक्रिया के लिए प्रति अध्यापक 70,000 से 1,00,000 रुपये तक की वसूली।
- रिश्तेदारों को नौकरियां: बाबुओं के लगभग हर रिश्तेदार को अनुदानित विद्यालयों में नौकरी मिल चुकी है।
अधिकारियों की संलिप्तता
ऊंचे पदों पर बैठे अधिकारी इस घोटाले के संरक्षक बने हुए हैं। फर्जी अनुमोदन को वैध बनाने के लिए उनके फर्जी हस्ताक्षर उपयोग किए जाते हैं। जांच के दौरान अगर इन हस्ताक्षरों की फोरेंसिक जांच हो, तो सारा खेल उजागर हो सकता है।
विद्यालय प्रबंधन की भूमिका
अनुदानित विद्यालयों के प्रबंधन भी इस भ्रष्टाचार में पूरी तरह से लिप्त हैं। प्रबंधन समिति न केवल रिश्वत देने में शामिल होती है, बल्कि फर्जी दस्तावेजों को विभागीय बाबुओं तक पहुंचाने का काम भी करती है।
योग्य उम्मीदवारों का नुकसान
फर्जी अनुमोदनों और रिश्वतखोरी के चलते योग्य और मेहनती शिक्षकों को नियुक्ति नहीं मिल पाती। इसका सीधा असर छात्रों की शिक्षा पर पड़ता है।
विभाग की साख पर सवाल
बेसिक शिक्षा विभाग की छवि पूरी तरह से खराब हो चुकी है। अभिभावकों और समाज में विभाग की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
छात्रों का भविष्य खतरे में
इस घोटाले का सबसे बड़ा खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ रहा है। अनियमितताओं के चलते शिक्षकों की गुणवत्ता पर असर पड़ा है, जिससे छात्रों की शिक्षा प्रभावित हुई है।
भ्रष्टाचार का अंत: क्या उम्मीद की जा सकती है?
- सत्यापन: सभी अनुमोदनों और हस्ताक्षरों की फोरेंसिक जांच होनी चाहिए।
- डिजिटल प्रक्रिया: अनुमोदन प्रक्रिया को डिजिटल किया जाए, ताकि फर्जीवाड़ा कम हो सके।
- सख्त कार्रवाई: भ्रष्ट बाबुओं और अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए।
जनता की भूमिका
इस घोटाले को उजागर करने के लिए जनता और मीडिया को जागरूक होना होगा। केवल SIT जांच पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं है।
प्रभात भारत विशेष
बेसिक शिक्षा विभाग का यह घोटाला न केवल एक प्रणालीगत समस्या है, बल्कि यह भ्रष्टाचार की गहरी जड़ों का परिचायक भी है। अगर समय रहते इसे खत्म नहीं किया गया, तो इसका असर आने वाली पीढ़ियों पर पड़ेगा। यह घोटाला शिक्षा व्यवस्था के उस काले पक्ष को उजागर करता है, जिसे सुधारने की जिम्मेदारी हम सभी की है।