
गोंडा 20 जनवरी। माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा अनुदानित हाई स्कूलों और इंटर कॉलेजों में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के मामलों की चर्चा अक्सर होती रहती है। ऐसा ही एक मामला बभनान स्थित जनता इंटर कॉलेज का सामने आया है, जहां मृतक आश्रित कोटे में सहायक अध्यापक पद पर की गई नियुक्ति फर्जी शैक्षिक प्रमाण पत्र के आधार पर पाई गई। इस मामले में जिला विद्यालय निरीक्षक (डीआईओएस) के आदेश के बावजूद ना एफआईआर दर्ज की गई और ना ही कोषागार से की गई धनराशि की वसूली।
मामले की शुरुआत
जनता इंटर कॉलेज बभनान में इंटर तक की कक्षाएं संचालित होती हैं, और हाई स्कूल स्तर तक का शिक्षण माध्यमिक शिक्षा परिषद से अनुदानित है। यहां पर मृतक आश्रित कोटे के तहत मनोज कुमार मिश्रा, पुत्र स्वर्गीय राम प्रकाश मिश्रा, की सहायक अध्यापक पद पर नियुक्ति हुई थी। मनोज कुमार मिश्रा ने अपनी शैक्षिक योग्यता बैचलर ऑफ आर्ट्स (बीए) दर्शाई थी, जिसे राजस्थान के जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर से प्राप्त बताया गया था।
हालांकि, एक शिकायत के बाद डीआईओएस ने उनके शैक्षिक प्रमाण पत्र का सत्यापन करवाया। विश्वविद्यालय द्वारा दिए गए जवाब में यह स्पष्ट किया गया कि मनोज कुमार मिश्रा को ऐसी कोई डिग्री नहीं प्रदान की गई थी। इस खुलासे के बाद उनकी नियुक्ति तत्काल प्रभाव से रद्द कर दी गई।
नियुक्ति रद्द होने के बाद का घटनाक्रम
डीआईओएस ने 3 अगस्त 2021 तक मनोज कुमार मिश्रा को भुगतान की गई सभी धनराशि को सरकारी कोषागार में वापस जमा करने का आदेश दिया। साथ ही, आदेश में यह भी कहा गया कि यदि धनराशि वापस नहीं की जाती है, तो भू-राजस्व की भांति वसूली की प्रक्रिया आरंभ की जाएगी। इसके अतिरिक्त, फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नियुक्ति और सेवा प्राप्त करने के लिए एफआईआर दर्ज करने का भी निर्देश दिया गया था।
लेकिन, चार साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी न तो धनराशि की वसूली की गई और न ही एफआईआर दर्ज की गई। यह मामला शिक्षा विभाग में व्याप्त अनियमितताओं और लापरवाह प्रशासनिक रवैये का एक स्पष्ट उदाहरण है।
डीआईओएस का बयान
इस प्रकरण पर वर्तमान जिला विद्यालय निरीक्षक ने कहा, “यह मामला मेरे कार्यकाल से पहले का है, और मेरे संज्ञान में अब आया है। यदि एफआईआर अब तक दर्ज नहीं हुई है, तो प्रबंधन के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाएगी। धनराशि की वसूली के लिए भी कदम उठाए जाएंगे।”
प्रशासनिक लापरवाही का उदाहरण
इस प्रकरण में जो सबसे गंभीर बात सामने आई है, वह है शिक्षा विभाग की उदासीनता और प्रशासनिक लापरवाही। फर्जी डिग्री के आधार पर सहायक अध्यापक पद पर नियुक्ति हुई, शिक्षण कार्य के लिए वेतन का भुगतान किया गया, और फिर मामले के उजागर होने के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
डीआईओएस द्वारा नियुक्ति रद्द करने और कार्रवाई के आदेश जारी करने के बावजूद प्रबंधन और संबंधित विभाग ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। यह न केवल सरकारी धन के दुरुपयोग का मामला है, बल्कि इससे शिक्षा व्यवस्था में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं का भी पर्दाफाश होता है।
शिक्षा व्यवस्था पर प्रभाव
जनता इंटर कॉलेज जैसे शैक्षणिक संस्थान समाज में शिक्षा का अलख जगाने का कार्य करते हैं। लेकिन इस तरह के भ्रष्टाचार और फर्जीवाड़े न केवल शिक्षा की गुणवत्ता पर सवाल खड़ा करते हैं, बल्कि समाज में एक गलत संदेश भी देते हैं। यदि शिक्षक ही फर्जी डिग्री के आधार पर नियुक्त किए जाएंगे, तो छात्रों को सही मार्गदर्शन कैसे मिलेगा?
इस प्रकरण से यह स्पष्ट होता है कि माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा अनुदानित विद्यालयों में अनियमितताओं को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है। नियुक्तियों की पारदर्शिता और प्रमाण पत्रों की सख्ती से जांच जरूरी है।
अधिकारियों की जवाबदेही
इस प्रकरण में सबसे बड़ा सवाल अधिकारियों की जवाबदेही पर खड़ा होता है। जब 2021 में नियुक्ति रद्द कर दी गई और आदेश जारी किए गए, तो अब तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारियों को इस मामले की निगरानी करनी चाहिए थी। एफआईआर और वसूली की प्रक्रिया शुरू न होना यह दर्शाता है कि या तो विभाग इस मामले को गंभीरता से नहीं ले रहा है या फिर प्रबंधन और संबंधित अधिकारियों की मिलीभगत के कारण कार्रवाई लंबित है।
जनता और स्थानीय प्रशासन की प्रतिक्रिया
स्थानीय जनता इस प्रकरण को लेकर बेहद नाराज है। एक स्थानीय निवासी ने कहा, “यदि शिक्षक ही फर्जी डिग्री के आधार पर नियुक्त होंगे, तो हमारे बच्चों का भविष्य क्या होगा? प्रशासन को इस मामले में सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।”
वहीं, कुछ लोगों ने सवाल उठाया कि प्रबंधन और शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने इस मामले को अब तक दबा क्यों रखा।
कानूनी और वित्तीय दृष्टिकोण
फर्जी डिग्री के आधार पर नियुक्ति और सरकारी वेतन प्राप्त करना न केवल कानूनन अपराध है, बल्कि यह सरकारी धन का दुरुपयोग भी है। यदि इस प्रकरण में दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं की गई, तो यह अन्य मामलों में भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देगा।
डीआईओएस द्वारा जारी किए गए आदेश के अनुसार:
धनराशि वसूली: मनोज कुमार मिश्रा को 3 अगस्त 2021 तक किए गए भुगतान की धनराशि को कोषागार में जमा करना था।
एफआईआर दर्ज: फर्जी डिग्री के आधार पर सेवा प्राप्त करने के लिए एफआईआर दर्ज कर कानूनी कार्रवाई शुरू करनी थी।
भू-राजस्व प्रक्रिया: यदि धनराशि वापस नहीं की जाती, तो इसे भू-राजस्व की भांति वसूली की प्रक्रिया शुरू करनी थी।
प्रभात भारत विशेष
जनता इंटर कॉलेज बभनान का यह मामला माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा अनुदानित विद्यालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही का एक गंभीर उदाहरण है। फर्जी डिग्री के आधार पर नियुक्ति, आदेश के बावजूद एफआईआर और वसूली में देरी, और शिक्षा विभाग की निष्क्रियता ने इस मामले को और जटिल बना दिया है।
यह प्रकरण न केवल दोषियों को सजा दिलाने की मांग करता है, बल्कि यह भी आवश्यक है कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं। शिक्षण संस्थानों में पारदर्शिता, जवाबदेही, और नैतिकता को बनाए रखना ही शिक्षा व्यवस्था की बुनियाद है।