
गोंडा में पशु तस्करी: एक छुपी सच्चाई और ईमानदारी की जंग
गोंडा, 20 अक्टूबर। गोंडा जो कभी पशु तस्करी के लिए बदनाम हुआ करता था, एक समय ऐसा था जब यहां से बड़ी मात्रा में पशु तस्करी होती थी। यह वह दौर था जब गोंडा और उसके आसपास के जनपदों में पशु तस्करों का बोलबाला था। गोंडा के कई हिस्से इस काले कारोबार का केंद्र हुआ करते थे, और ऐसा लगता था कि यह अवैध धंधा वहां की आबोहवा में रच-बस गया था। पशु तस्करी एक ऐसा काला व्यापार था जो समाज के निचले स्तर से लेकर ऊंचे प्रशासनिक पदों तक अपनी जड़े जमाए हुए था।
लेकिन समय के साथ यह काला व्यापार प्रशासन के शिकंजे में आया, और इसका सबसे बड़ा खुलासा तब हुआ जब गोंडा के एक ईमानदार कप्तान ने इस अवैध धंधे के खिलाफ अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से निभाया। उस समय, गोंडा में कप्तान नवनीत राणा नियुक्त हुए, जो अपने सिद्धांतों और ईमानदारी के लिए जाने जाते थे। उनका नाम लोगों की जुबान पर ईमानदार पुलिस अधिकारी के रूप में था, और उनकी पहचान कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति के रूप में थी।
जब सच्चाई ने दस्तक दी: ईमानदार कप्तान की भूमिका
गोंडा के इस कप्तान का सामना उस समय हुआ जब एक महाशय उन्हें 10 लाख रुपये महीना का रिश्वत देने आए। यह रिश्वत उस गिरोह की ओर से थी जो पशु तस्करी के धंधे को निर्बाध रूप से चलाने की कोशिश कर रहे थे। तस्करों का मानना था कि हर चीज़ की कीमत होती है, और प्रशासन को रिश्वत देकर वे अपना अवैध धंधा बिना किसी परेशानी के जारी रख सकेंगे।
लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि जिस व्यक्ति को वे रिश्वत देने आए थे, वह उनकी तरह बिकने वाला नहीं था। कप्तान साहब ने न केवल उस तस्कर को रंगे हाथ पकड़वाया, बल्कि इस घटना ने पूरे तस्करी नेटवर्क को एक बड़ा झटका दिया। इस एक गिरफ्तारी ने यह साफ कर दिया कि गोंडा में अब यह काला कारोबार आसानी से नहीं चलने वाला है।
इस घटना ने समाज के उन लोगों को भी एक सीख दी, जो यह मानते थे कि पैसे से हर कोई खरीदा जा सकता है। यह घटना गोंडा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई, जिसने यह दिखाया कि ईमानदारी और सच्चाई की ताकत हमेशा जीतती है, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी मुश्किल क्यों न हो।
गोंडा: पशु तस्करों का गढ़
एक समय था जब गोंडा और उसके आसपास के इलाकों में पशु तस्करी बहुत बड़े पैमाने पर होती थी। यह धंधा मुख्य रूप से उन जानवरों का होता था जिनका वध करना अवैध था, खासकर गायों का। तस्करों के लिए यह धंधा बेहद लाभकारी था, और इसके जरिए बड़ी मात्रा में काला धन कमाया जाता था।
गोंडा और उसके आसपास के इलाकों में कई गिरोह सक्रिय थे, जो इस धंधे को बड़ी चालाकी और सावधानी से चलाते थे। तस्करी का नेटवर्क इतना विस्तृत था कि इसमें छोटे गांवों से लेकर बड़े शहरों तक के लोग शामिल थे। जानवरों को गोंडा से बाहर, विशेष रूप से सीमावर्ती इलाकों में ले जाया जाता था, जहां से उन्हें पड़ोसी देशों में भेजा जाता था।
यह धंधा न केवल गैरकानूनी था, बल्कि सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण से भी इसे बेहद निंदनीय माना जाता था। समाज का एक बड़ा हिस्सा, खासकर धार्मिक लोग, इसे लेकर बेहद आक्रोशित थे, लेकिन तस्करों का नेटवर्क इतना मजबूत था कि उन पर कार्रवाई करना आसान नहीं था।
प्रशासन की नाकामी या मिलीभगत?
यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि अगर इतने बड़े पैमाने पर यह धंधा चल रहा था, तो प्रशासन क्या कर रहा था? दरअसल, प्रशासन की नाकामी या कई मामलों में उनकी मिलीभगत इस पूरे तंत्र को और भी मजबूत बना रही थी। स्थानीय पुलिस प्रशासन के कुछ अधिकारियों पर आरोप था कि वे इस धंधे में शामिल थे, या फिर आंखें मूंदकर इसे होने दे रहे थे।
कई बार यह भी देखा गया कि कुछ पुलिस अधिकारी तस्करों से रिश्वत लेकर उनके धंधे को बढ़ावा दे रहे थे। यह रिश्वतखोरी का खेल इस हद तक पहुंच चुका था कि तस्करों के लिए यह धंधा बेहद सुरक्षित और लाभकारी हो गया था।
लेकिन हर कोई बिकाऊ नहीं होता। गोंडा के उस कप्तान ने यह साबित कर दिया कि ईमानदारी और सच्चाई अभी भी इस देश में जिंदा है। उन्होंने यह दिखाया कि अगर एक व्यक्ति ठान ले कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ेगा, तो उसे कोई नहीं रोक सकता।
योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद: क्या बदला?
अब जब योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हैं, यह सवाल उठता है कि गोंडा और उसके आसपास के इलाकों में पशु तस्करी का क्या हाल है? क्या यह धंधा बंद हो गया है, या फिर यह अब भी किसी न किसी रूप में जारी है?
योगी आदित्यनाथ ने अपने कार्यकाल के दौरान कानून व्यवस्था को मजबूत करने का दावा किया है, और इस दिशा में कई सख्त कदम भी उठाए हैं। उन्होंने अवैध धंधों पर नकेल कसने के लिए पुलिस और प्रशासन को सख्त निर्देश दिए हैं। उनके शासन में कई तस्करों को गिरफ्तार किया गया, और अवैध पशु वध और तस्करी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की गई है।
लेकिन सवाल यह है कि क्या यह कार्रवाई वास्तव में प्रभावी है? क्या गोंडा और उसके आसपास के इलाकों में पशु तस्करी पूरी तरह से बंद हो गई है, या फिर यह अब भी किसी गुप्त रूप में जारी है?
क्या वाकई सब ठीक हो गया है?
यह तो सच है कि योगी सरकार ने कई सख्त कदम उठाए हैं, लेकिन क्या यह पर्याप्त है? क्या वाकई गोंडा और उसके आसपास के इलाकों में पशु तस्करी बंद हो गई है, या फिर यह अब भी किसी और रूप में जारी है?
इस सवाल का जवाब ढूंढना मुश्किल है, क्योंकि जब अवैध धंधों की बात आती है, तो वे अक्सर सतह के नीचे ही चलते रहते हैं। हो सकता है कि योगी आदित्यनाथ की सरकार ने तस्करों पर नकेल कसने की कोशिश की हो, लेकिन यह भी सच है कि अपराधी अक्सर कानून से एक कदम आगे रहते हैं।तो क्या यह मान लिया जाए कि अब गोंडा में सब कुछ ठीक हो गया है? शायद हां, शायद नहीं।
समाज का नजरिया और भविष्य की राह
यह सच है कि सरकार ने तस्करों के खिलाफ सख्त कदम उठाए हैं, लेकिन समाज को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। जब तक समाज में तस्करी और अवैध धंधों को लेकर उदासीनता रहेगी, तब तक यह धंधा पूरी तरह से खत्म नहीं हो सकता। समाज को भी इन अपराधों के खिलाफ जागरूक होना होगा और ऐसे अवैध धंधों के खिलाफ आवाज उठानी होगी।
इसके साथ ही, प्रशासन को भी अपनी जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा के साथ निभाना होगा। अगर प्रशासन ईमानदार और सतर्क रहेगा, तो कोई भी अवैध धंधा लंबे समय तक नहीं चल सकता।
गोंडा का यह उदाहरण हमें यह सिखाता है कि सच्चाई और ईमानदारी की ताकत हमेशा जीतती है। चाहे हालात कितने भी मुश्किल क्यों न हो, अगर हम सही राह पर चलते हैं, तो अंततः हम जीतेंगे।
प्रभात भारत विशेष
गोंडा का पशु तस्करी का यह मामला हमें यह दिखाता है कि समाज में भ्रष्टाचार और अवैध धंधों को रोकने के लिए ईमानदार अधिकारियों की कितनी आवश्यकता है। इस पूरे प्रकरण ने यह साबित किया कि अगर एक व्यक्ति ठान ले कि वह गलत के खिलाफ लड़ेगा, तो उसे कोई नहीं रोक सकता। गोंडा के उस ईमानदार कप्तान ने यह दिखाया कि सच्चाई की ताकत सबसे बड़ी होती है।