
अखिलेश यादव का बयान और ‘एक देश, एक चुनाव’ पर उनकी आलोचना
लखनऊ 12 दिसंबर। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ‘एक देश, एक चुनाव’ के विचार पर तीखा प्रहार किया है। उन्होंने इसे लोकतंत्र विरोधी और अलोकतांत्रिक बताते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक विस्तृत पोस्ट साझा की। इस पोस्ट में उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि यह नीति न केवल अव्यावहारिक है, बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के मूल सिद्धांतों के भी खिलाफ है।
अखिलेश यादव ने लिखा, “‘एक देश, एक चुनाव’ सही मायनों में एक ‘अव्यावहारिक’ ही नहीं ‘अलोकतांत्रिक’ व्यवस्था भी है, क्योंकि कभी-कभी सरकारें अपनी समयावधि के बीच में भी अस्थिर हो जाती हैं। ऐसे में वहाँ की जनता बिना लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व के कैसे रहेगी? इस व्यवस्था को लागू करने के लिए संवैधानिक रूप से चुनी गई सरकारों को बीच में ही भंग करना होगा, जो जनमत का अपमान होगा।”
‘एक देश, एक चुनाव’ की आलोचना में प्रमुख तर्क
अखिलेश यादव ने इस विचार के खिलाफ कई तर्क प्रस्तुत किए:
1. लोकतांत्रिक प्रक्रिया का क्षरण:
उन्होंने कहा कि जब सरकारें अस्थिर होती हैं, तो चुनाव के माध्यम से जनता को नया प्रतिनिधित्व चुनने का अधिकार होता है। ‘एक देश, एक चुनाव’ लागू होने पर यह अधिकार समाप्त हो जाएगा, जो लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।
2. एकतंत्री सोच का षड्यंत्र:
अखिलेश यादव ने इसे लोकतंत्र के खिलाफ और एकतंत्री सोच का षड्यंत्र बताया। उन्होंने कहा, “दरअसल, ‘एक देश, एक चुनाव’ लोकतंत्र के ख़िलाफ़ एकतंत्री सोच का बहुत बड़ा षड्यंत्र है। इसका उद्देश्य पूरे देश पर एक साथ कब्जा करना है। इससे चुनाव केवल एक दिखावटी प्रक्रिया बनकर रह जाएगा।”
3. चुनावी स्वतंत्रता पर खतरा:
उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था चुनावी प्रक्रिया का सामूहिक अपहरण करने की साजिश है। इसके मूल में एकाधिकार की अलोकतांत्रिक मंशा काम कर रही है।
सरकार की विश्वसनीयता पर सवाल
अखिलेश यादव ने वर्तमान सरकार की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए लिखा, “जो सरकार बारिश, पानी, त्योहार और नहान के नाम पर चुनावों को टाल देती है, वह एक साथ चुनाव कराने का दावा कैसे कर सकती है?”
‘एक देश, एक चुनाव’ की पृष्ठभूमि
‘एक देश, एक चुनाव’ की अवधारणा केंद्र सरकार की एक प्रमुख योजना है, जिसका उद्देश्य लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना है। इस विचार का समर्थन करने वालों का मानना है कि इससे चुनावी खर्चों में कटौती होगी और प्रशासनिक कार्यों में रुकावटें कम होंगी।
हालांकि, इसके आलोचक इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर हमला मानते हैं। उनके अनुसार, यह योजना संविधान में निहित संघीय ढांचे के खिलाफ है और राज्यों की स्वायत्तता को कमजोर कर सकती है।
‘एक देश, एक चुनाव’ सही मायनों में एक ‘अव्यावहारिक’ ही नहीं ‘अलोकतांत्रिक’ व्यवस्था भी है क्योंकि कभी-कभी सरकारें अपनी समयावधि के बीच में भी अस्थिर हो जाती हैं तो क्या वहाँ की जनता बिना लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व के रहेगी। इसके लिए सांविधानिक रूप से चुनी गयी सरकारों को बीच में ही…
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) December 12, 2024
अखिलेश यादव के आरोप: लोकतंत्र पर खतरा या राजनीतिक बयानबाजी?
अखिलेश यादव ने अपने बयान में ‘एक देश, एक चुनाव’ को एक साजिश करार दिया, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करने के लिए बनाई गई है। उनके बयान के कुछ मुख्य पहलुओं का विश्लेषण इस प्रकार है:
1. अव्यावहारिकता का तर्क:
अखिलेश ने इस विचार को अव्यावहारिक बताते हुए कहा कि सरकारें अपनी अवधि के बीच में अस्थिर हो सकती हैं। ऐसे में जनता को बिना प्रतिनिधित्व के रहना पड़ेगा। यह तर्क संविधान के उस मूल सिद्धांत से जुड़ा है, जो जनता को अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिकार देता है।
2. जनमत का अपमान:
अखिलेश यादव ने कहा कि इस व्यवस्था को लागू करने के लिए चुनी हुई सरकारों को भंग करना पड़ेगा। यह जनता के मत के प्रति अनादर को दर्शाता है।
3. अलोकतांत्रिक मंशा:
उन्होंने आरोप लगाया कि ‘एक देश, एक चुनाव’ का असली उद्देश्य पूरे देश पर एक ही राजनीतिक दल का नियंत्रण स्थापित करना है। यह आरोप उन चिंताओं को प्रकट करता है कि ऐसी व्यवस्था बहुदलीय लोकतंत्र को कमजोर कर सकती है।
4. चुनाव टालने की प्रवृत्ति पर सवाल:
अखिलेश ने वर्तमान सरकार पर चुनावों को टालने के लिए बहानेबाजी करने का आरोप लगाया और पूछा कि जब सरकार अलग-अलग चुनाव कराने में कठिनाई महसूस करती है, तो वह एक साथ चुनाव कैसे करा सकती है।
‘एक देश, एक चुनाव’ पर विशेषज्ञों की राय
अखिलेश यादव के इन आरोपों ने ‘एक देश, एक चुनाव’ पर बहस को और तीखा बना दिया है। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि:
- यह व्यवस्था संघीय ढांचे और राज्यों की स्वायत्तता को कमजोर कर सकती है।
- अलग-अलग समय पर चुनाव होने से सरकारों की जवाबदेही बनी रहती है, जो लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
वहीं, इस विचार के समर्थक इसे समय और संसाधनों की बचत का माध्यम मानते हैं। उनका कहना है कि बार-बार चुनाव होने से प्रशासनिक कार्य बाधित होते हैं और चुनावी खर्च बढ़ता है।
लोकतांत्रिक बहस की आवश्यकता
अखिलेश यादव का ‘एक देश, एक चुनाव’ पर बयान इस मुद्दे पर गहराई से चर्चा की आवश्यकता को रेखांकित करता है। यह विचार जहां कुछ लोगों के लिए संसाधनों की बचत और प्रभावी प्रशासन का माध्यम हो सकता है, वहीं आलोचकों के लिए यह लोकतंत्र और संघीय ढांचे पर खतरा है।
यह स्पष्ट है कि ‘एक देश, एक चुनाव’ को लागू करने से पहले इस पर व्यापक विमर्श और सहमति जरूरी है। अखिलेश यादव का यह बयान लोकतांत्रिक सिद्धांतों की रक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है और इस बहस को एक नई दिशा प्रदान करता है।