
नई दिल्ली, 14 नवंबर। 5 अगस्त 2019 का दिन भारतीय इतिहास में एक नया अध्याय बना जब भारत सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए को निरस्त कर जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जे से मुक्त किया। इसके साथ ही राज्य को भारत की मुख्यधारा में पूरी तरह से जोड़ने का मार्ग प्रशस्त हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे “जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लिए प्रगति और समृद्धि के नए युग की शुरुआत” के रूप में वर्णित किया। इस ऐतिहासिक फैसले का प्रभाव सिर्फ कानून व्यवस्था या राजनीति तक ही सीमित नहीं था, बल्कि यह राष्ट्रीय एकता और विकास के प्रतीक के रूप में भी देखा गया।
इस लेख में हम इस फैसले के प्रभाव, इसके राजनीतिक आयामों, आर्थिक और सामाजिक परिवर्तनों, सुरक्षा स्थिति, और इसके निरसन के पीछे के ऐतिहासिक तथ्यों को विस्तारपूर्वक समझेंगे।
अनुच्छेद 370 और 35ए का इतिहास और जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370, जो कि एक अस्थायी प्रावधान के रूप में शामिल किया गया था, जम्मू-कश्मीर को विशेष स्वायत्तता प्रदान करता था। 1947 में भारत के विभाजन के समय, जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने राज्य को स्वतंत्र रखने का प्रयास किया, लेकिन पाकिस्तान के आक्रमण के बाद उन्होंने भारत के साथ विलय समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए। इस समझौते के तहत, राज्य को रक्षा, विदेश मामले, और संचार के मामलों को छोड़कर अन्य मामलों में स्वायत्तता प्रदान की गई थी।
इसके अतिरिक्त, अनुच्छेद 35ए के माध्यम से राज्य को बाहरी लोगों को निवास का दर्जा न देने, संपत्ति खरीदने पर रोक लगाने और राज्य के विशेष नागरिक अधिकारों को सुरक्षित रखने का अधिकार मिला। इसका उद्देश्य राज्य की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान को सुरक्षित रखना था, लेकिन समय के साथ यह नियम विकास में रुकावट बनने लगा।
ऐतिहासिक निर्णय और प्रक्रिया: अनुच्छेद 370 का खात्मा
2019 में नरेंद्र मोदी की सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए एक साहसिक निर्णय लिया। इसके लिए केंद्र सरकार ने संसद में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 पेश किया, जिसे राज्यसभा और लोकसभा में बहुमत से पारित किया गया। इसके तहत जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया गया, जिससे भारतीय संविधान के सभी प्रावधान दोनों क्षेत्रों में पूर्ण रूप से लागू हो सके।
राजनीतिक दलों का दृष्टिकोण और बहस
हालांकि इस निर्णय का बड़ा वर्ग स्वागत कर रहा था, लेकिन नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी), और कांग्रेस के कुछ नेता इसके विरोध में खड़े हो गए। इन दलों का मानना था कि इस फैसले से जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता समाप्त हो गई है और राज्य के लोगों के अधिकारों पर असर पड़ा है।
हालांकि, केंद्र सरकार का मानना था कि अनुच्छेद 370 के रहते हुए भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग की संभावनाएँ अधिक थीं, और इसका निरसन आवश्यक था ताकि सरकारी योजनाओं का लाभ सही रूप से वहाँ की जनता तक पहुँच सके।
आर्थिक प्रभाव और विकास के नए अवसर
अनुच्छेद 370 के निरसन के बाद राज्य में बाहरी निवेश को प्रोत्साहन देने के लिए नई नीतियाँ लागू की गईं। इसका सकारात्मक असर स्थानीय अर्थव्यवस्था पर देखा गया, जहाँ पर्यटन, कृषि, बागवानी और छोटे उद्योगों में भी बाहरी निवेश बढ़ा है। सरकार ने निवेशकों के लिए विशेष योजनाएँ बनाई हैं, जिससे न केवल स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर बढ़े हैं, बल्कि राज्य की आर्थिक स्थिति भी मजबूत हुई है।
शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में नए अवसर
जम्मू-कश्मीर के युवाओं के लिए अब शिक्षा और रोजगार के समान अवसर उपलब्ध हैं। पहले राज्य के युवा केवल राज्य के अंदर ही नौकरी के अवसरों के लिए सीमित थे, लेकिन अब वे पूरे भारत में सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा में प्रवेश के लिए समान रूप से पात्र हैं। नए शैक्षिक और तकनीकी संस्थानों की स्थापना भी युवाओं के लिए बेहतर शिक्षा का अवसर प्रदान कर रही है।
बुनियादी ढांचे में सुधार
राज्य में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए केंद्र सरकार ने कई परियोजनाओं की शुरुआत की है। सड़कों का निर्माण, रेल नेटवर्क का विस्तार, और बिजली व पानी की आपूर्ति में सुधार जैसे कार्य पूरे राज्य को जोड़ने और दूरस्थ इलाकों तक विकास पहुँचाने का काम कर रहे हैं।
स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार
अनुच्छेद 370 के निरसन के बाद राज्य में स्वास्थ्य क्षेत्र में भी बड़े सुधार हुए हैं। केंद्र सरकार की योजनाएँ जैसे आयुष्मान भारत अब राज्य में सीधे लागू हो चुकी हैं, जिससे गरीब और निम्न-आय वर्ग के लोगों को मुफ्त चिकित्सा सुविधा प्राप्त हो रही है। नए अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों का निर्माण भी तेजी से हो रहा है, जिससे लोगों का स्वास्थ्य स्तर सुधर रहा है।
बाहरी निवेश को प्रोत्साहन और औद्योगिकीकरण
अनुच्छेद 370 हटने के बाद राज्य में बाहरी निवेश के द्वार खुल गए हैं। केंद्र सरकार ने राज्य में निवेश को बढ़ावा देने के लिए कई सहूलियतें दी हैं। इसका परिणाम यह है कि जम्मू-कश्मीर में पर्यटन, कृषि, और बागवानी उद्योगों में बाहरी निवेश बढ़ा है, जिससे राज्य की आर्थिक स्थिति में सुधार हो रहा है और रोज़गार के नए अवसर पैदा हो रहे हैं।
सुरक्षा व्यवस्था में सुधार
इस कदम के बाद सरकार को जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा पर और अधिक ध्यान देने का अवसर मिला। अनुच्छेद 370 के हटने के बाद राज्य में आतंकवाद पर नियंत्रण पाने के लिए कड़े कदम उठाए गए। सुरक्षा एजेंसियों और सेना ने कड़ी निगरानी बढ़ाई, जिससे आतंकवाद पर काफी हद तक अंकुश लगा है और आम जनता में सुरक्षा की भावना बढ़ी है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
अनुच्छेद 370 हटाने के बाद भारत का यह कदम वैश्विक स्तर पर भी चर्चा में आया। पाकिस्तान ने इस फैसले का कड़ा विरोध किया, और संयुक्त राष्ट्र में भी इस मुद्दे को उठाया। वहीं, चीन ने भी जम्मू-कश्मीर की स्थिति पर आपत्ति जताई, खासकर लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश घोषित करने के संदर्भ में। हालांकि भारत ने इसे अपना आंतरिक मामला बताकर विरोध को खारिज कर दिया, और अधिकांश देशों ने इसे भारत का आंतरिक मसला मानते हुए कोई हस्तक्षेप नहीं किया।
समाज पर सकारात्मक प्रभाव
अनुच्छेद 370 के निरसन के बाद जम्मू-कश्मीर में समाजिक बदलाव भी देखने को मिल रहे हैं। राज्य की जनता को अब केंद्र सरकार की योजनाओं का सीधा लाभ मिल रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, और बुनियादी सुविधाओं में सुधार के कारण आम जनता का जीवन स्तर ऊँचा हो रहा है। युवाओं को राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिल रहा है, जिससे वे देश के अन्य हिस्सों में भी पहचान बना रहे हैं।
महिलाओं और अनुसूचित जातियों के अधिकारों में सुधार
अनुच्छेद 370 के खात्मे के बाद जम्मू-कश्मीर में महिलाओं और अनुसूचित जातियों के अधिकारों में भी सुधार हुआ है। अब राज्य की महिलाएँ, जो किसी बाहरी व्यक्ति से विवाह करती हैं, भी अपनी संपत्ति का अधिकार बनाए रख सकती हैं। अनुसूचित जातियों के लिए शिक्षा और रोजगार में भी समान अवसर मिल रहे हैं, जो पहले उपलब्ध नहीं थे।
विरोध प्रदर्शन और अन्य चुनौतियाँ
हालाँकि इस निर्णय के बाद राज्य में कुछ विरोध प्रदर्शन भी हुए, लेकिन सरकार ने स्थिति को सँभालने के लिए कई कदम उठाए। राज्य में इंटरनेट सेवाओं पर नियंत्रण और सुरक्षा व्यवस्था को सख्त करना जैसे कदम उठाए गए, जिससे लोग धीरे-धीरे इस फैसले को स्वीकार करने लगे।
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में प्रगति का नया युग
अनुच्छेद 370 हटने के बाद लद्दाख को एक अलग केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिला। इसके तहत लद्दाख में भी कई विकास योजनाएँ शुरू हुई हैं, जिसमें पर्यटन, सौर ऊर्जा, और सांस्कृतिक संरक्षण शामिल हैं। लद्दाख के लोग अब अपने क्षेत्र के विकास में अधिक अधिकार महसूस कर रहे हैं।
राष्ट्रीय एकता और विकास की दिशा में कदम
अनुच्छेद 370 का निरसन केवल एक कानूनी कदम नहीं था, बल्कि यह राष्ट्रीय एकता और अखंडता के दृष्टिकोण से एक ऐतिहासिक निर्णय था। इसके माध्यम से जम्मू-कश्मीर को राष्ट्रीय मुख्यधारा में शामिल किया गया और वहाँ के नागरिकों को समान अधिकार और सुविधाएँ प्राप्त हुईं। अब राज्य में विकास के द्वार खुले हैं और दूरस्थ गाँवों तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुँच रहा है।
सरकार का यह कदम प्रशासनिक सुधार ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता और विकास का प्रतीक है। अनुच्छेद 370 का निरसन जम्मू-कश्मीर की प्रगति और समृद्धि की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो रहा है।