गोंडा (विशेष धार्मिक-सांस्कृतिक रिपोर्ट)। राम कथा केवल अतीत की कथा नहीं है, बल्कि वह वर्तमान और भविष्य का दर्पण है। यही भाव महामृत्युंजय पीठाधीश्वर स्वामी प्रणव पुरी जी महाराज द्वारा सुनाई गई राम कथा में स्पष्ट रूप से देखने को मिला। कथा के दौरान उन्होंने रामचरितमानस के प्रसंगों के माध्यम से यह बताया कि किस प्रकार इतिहास, धर्म, समाज और सत्ता के बीच एक सतत संघर्ष चलता रहा है और आज भी चल रहा है। यह कथा भक्ति से कहीं आगे बढ़कर विचार, चेतना और सांस्कृतिक आत्मरक्षा का आह्वान बन गई।

कुबेर का निष्कासन और लंका पर अधिकार: सत्ता की पहली सीढ़ी
कथा का आरंभ उस प्रसंग से हुआ जब रावण ने कुबेर को लंका से बाहर कर दिया। स्वामी प्रणव पुरी जी महाराज ने कहा कि कुबेर केवल धन के देवता नहीं हैं, बल्कि वे संतुलन, मर्यादा और धर्मपूर्ण समृद्धि के प्रतीक हैं। जब रावण ने कुबेर को लंका से बाहर किया, तो यह केवल सत्ता परिवर्तन नहीं था, बल्कि धर्म से अलग होकर शक्ति के दुरुपयोग की शुरुआत थी।
महाराज जी ने गोस्वामी तुलसीदास के संदर्भ में कहा कि लंका कोई साधारण नगर नहीं थी। उसका नाम आते ही उसकी दुर्गमता, वैभव और अभेद्यता का बोध होता है। लंका को इतनी सुदृढ़ बनाया गया था कि वहां तक पहुंचना सामान्य व्यक्ति के लिए असंभव था।

पहले कब्ज़ा, फिर मूल्यांकन: रावण की मानसिकता
राम कथा में महाराज जी ने रावण की मानसिकता पर विशेष प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि रावण ने पहले लंका पर कब्ज़ा किया, उसके बाद यह विचार किया कि यह स्थान उसके रहने योग्य है या नहीं।
उन्होंने इसे आज की भाषा में समझाते हुए कहा कि सज्जन व्यक्ति किसी स्थान पर रहने से पहले यह देखता है कि वहां—
- समाज कैसा है
- सड़क, बिजली, पानी जैसी सुविधाएं हैं या नहीं
- संस्कार और सुरक्षा का वातावरण है या नहीं
जबकि दुर्जन व्यक्ति यह देखता है कि वह स्थान कितना दुर्गम है, वहां कानून और समाज की पहुंच कितनी कम है। लंका चारों ओर समुद्र और खाइयों से घिरी हुई थी। महाराज जी ने कहा कि इससे बेहतर स्थान रावण के लिए हो ही नहीं सकता था, क्योंकि वहां कोई आसानी से प्रवेश नहीं कर सकता था।
लोकेशन का सिद्धांत: प्रबंधन से धर्म तक
स्वामी प्रणव पुरी जी महाराज ने कथा के दौरान प्रबंधन (मैनेजमेंट) के सिद्धांतों को भी जोड़ा। उन्होंने कहा कि किसी भी संपत्ति की कीमत तीन बातों से तय होती है, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण है लोकेशन।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि बिहार में खेत लेना और मुंबई में 500 वर्ग फीट का घर लेना—दोनों की कीमत लोकेशन से तय होती है। इसी प्रकार समाज और सत्ता में भी लोकेशन का महत्व है।
रावण ने लंका को अपनी राजधानी इसलिए बनाया क्योंकि वह जानता था कि यह स्थान उसे बाहरी हस्तक्षेप से सुरक्षित रखेगा।
लंका से आदेश और सनातन धर्म पर प्रहार
कथा में यह भी बताया गया कि लंका को राजधानी बनाने के बाद रावण ने अपने दलबल सहित राक्षसों को आदेश दिया कि वे जाकर सनातन धर्म को जड़ से उखाड़ने का कार्य करें।
महाराज जी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यदि किसी को अपना तंत्र चलाना है, तो सबसे पहले उसे सनातन धर्म को कमजोर करना होगा, क्योंकि सनातन धर्म व्यक्ति को प्रश्न करने, विवेक रखने और सत्य के साथ खड़े होने की शक्ति देता है।
उन्होंने कहा कि सनातन धर्म को समाप्त करने के लिए—
- गौशालाओं में आग लगाई गई
- संतों और महापुरुषों के आश्रम उजाड़े गए
- मंदिरों को तोड़ा गया
- तपस्या, साधना और स्त्री शक्ति के प्रतीकों को समाप्त करने का प्रयास किया गया
इतिहास से वर्तमान तक: वही मानसिकता, वही षड्यंत्र
स्वामी प्रणव पुरी जी महाराज ने कहा कि यह केवल पौराणिक कथा नहीं है। यही मानसिकता इतिहास में मुगल काल से लेकर औपनिवेशिक दौर तक दिखाई देती है।
उन्होंने कहा कि चाहे मुगल हों या ईसाई मिशनरी, दोनों ही कालखंडों में मंदिरों, शिक्षा केंद्रों और सनातन परंपराओं पर प्रहार हुआ। उद्देश्य एक ही था—श्रद्धा को तोड़ना, विचारों पर कब्ज़ा करना।

विचारों पर कब्ज़ा: सबसे खतरनाक हथियार
कथा का केंद्रीय संदेश यही था कि भूमि पर कब्ज़ा अस्थायी होता है, लेकिन विचारों पर कब्ज़ा स्थायी गुलामी पैदा करता है।
महाराज जी ने कहा कि आज यदि बच्चों की शिक्षा, भाषा, संस्कृति और आदर्श बदल दिए जाएं, तो आने वाली पीढ़ी स्वतः अपनी जड़ों से कट जाएगी।
उन्होंने शिक्षा प्रणाली पर चर्चा करते हुए कहा कि एक समय था जब बच्चों से कविता सुनाने को कहा जाता था तो वे भारतीय संस्कृति से जुड़ी बातें सुनाते थे। फिर ऐसा दौर आया जब “Twinkle Twinkle Little Star” ही ज्ञान का प्रतीक बन गया।
परिवर्तन की आहट: लौटते संस्कार
हालांकि महाराज जी ने यह भी कहा कि अब धीरे-धीरे परिवर्तन दिखाई दे रहा है। आज जब संत-महात्मा किसी घर में जाते हैं और माता-पिता बच्चों से भजन या मंत्र सुनाने को कहते हैं, तो यह संकेत है कि समाज फिर से अपनी ओर लौट रहा है।
चाहे बच्चा टूटी-फूटी हनुमान चालीसा ही क्यों न सुना पाए, या गायत्री मंत्र ही क्यों न पढ़े—यह बदलाव महत्वपूर्ण है।
वसुधैव कुटुंबकम् बनाम वैचारिक आक्रमण
स्वामी प्रणव पुरी जी महाराज ने कहा कि सनातन धर्म ही एकमात्र ऐसा धर्म है जो वसुधैव कुटुंबकम् की भावना सिखाता है। हम सबको देवालय की तरह देखते हैं, सबके मार्ग का सम्मान करते हैं।
लेकिन इसी उदारता का दुरुपयोग कर सनातन धर्म को कमजोर करने का प्रयास किया गया। उन्होंने कहा कि उद्देश्य यह था कि राम को नष्ट कर दो, गौशालाओं को समाप्त कर दो, संतों की तपस्या को खत्म कर दो, ताकि आने वाली पीढ़ी यह पहचान ही न सके कि सनातन धर्म क्या था।
कथा के दौरान महाराज जी ने यह भी कहा कि कई बार जो लोग भगवान, कथा और धर्म की बात करते थे, उन्हें देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताकर प्रताड़ित किया जाता था।
उन्होंने कहा कि यह विषय राजनीतिक जरूर है, लेकिन जनता इसे देख और समझ रही है। जब धर्म की बात करने वालों को अपराधी बना दिया जाता था, तो समाज में अधर्म को बढ़ावा मिलता है। लेकिन अब समय बदल गया है अब अधर्मी मिटाए जा रहे हैं

माता-पिता, गुरु और साधु की उपेक्षा
गोस्वामी तुलसीदास का उल्लेख करते हुए महाराज जी ने कहा कि जब समाज में माता-पिता की सेवा नहीं होती, गुरु का सम्मान नहीं रहता और साधु-संतों की बातों को अनदेखा किया जाता है, तब निशाचर प्रवृत्ति वाले लोग बढ़ते हैं।
चोरी, लंपटता और छल को चतुराई समझा जाने लगता है। यही अधर्म का प्रसार है।
राम कथा का निष्कर्ष: चेतना और जागरण
इस राम कथा का निष्कर्ष किसी के विरुद्ध घृणा नहीं, बल्कि चेतना, आत्मचिंतन और जागरण है। स्वामी प्रणव पुरी जी महाराज ने स्पष्ट किया कि यह कथा किसी धर्म के खिलाफ नहीं, बल्कि सनातन धर्म की रक्षा और समाज के आत्मबल को जगाने के लिए है।
उन्होंने कहा कि यदि विचार सुरक्षित हैं, तो धर्म सुरक्षित है। यदि धर्म सुरक्षित है, तो समाज और राष्ट्र स्वतः सुरक्षित रहेंगे।
महामृत्युंजय पीठाधीश्वर स्वामी प्रणव पुरी जी महाराज की यह राम कथा केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक वैचारिक चेतावनी और सांस्कृतिक घोषणापत्र बनकर सामने आई। लंका और रावण के प्रतीकों के माध्यम से यह कथा आज के समाज को यह संदेश देती है कि सबसे बड़ी लड़ाई तलवारों से नहीं, बल्कि विचारों और संस्कारों से लड़ी जाती है।

