विभाग की कई अहम फाइलें गुम होने की संभावना, चार्ज ट्रांसफर को लेकर बना असमंजस
गोंडा, 20 अप्रैल। गोंडा के शिक्षा विभाग के वित्त एवं लेखा विभाग में एक बेहद गंभीर और चिंताजनक प्रशासनिक संकट उभर कर सामने आया है। यह संकट किसी बाहरी व्यवधान के कारण नहीं, बल्कि विभाग के ही एक निलंबित लिपिक के कारण उत्पन्न हुआ है, जिसका नाम है अरुण शुक्ला। विभाग से जुड़ी कई महत्वपूर्ण फाइलों और वित्तीय दस्तावेजों के अभाव में कई सूचनाएं अधर में लटकी है, वहीं जिला प्रशासन भी इस मामले को सुलझा पाने में अब तक विफल नजर आ रहा है।
अरुण शुक्ला पर पहले ही शिक्षामित्रों के मानदेय भुगतान में अनावश्यक विलंब, अभिलेखों के रखरखाव में गंभीर त्रुटियों जैसे कई आरोप लग चुके हैं, जिसके चलते उन्हें विभागीय आदेश द्वारा निलंबित कर दिया गया था। निलंबन के बाद यह अपेक्षित था कि वे संबंधित फाइलों और दस्तावेजों का चार्ज विभागीय कर्मचारी को सौंप देंगे, ताकि कार्य में बाधा उत्पन्न न हो। लेकिन कई दिन बीत जाने के बावजूद चार्ज का विधिवत हस्तांतरण नहीं हो सका है।
जानकारी के अनुसार, वित्त एवं लेखा अधिकारी द्वारा उन्हें चार्ज देने को लेकर कई बार औपचारिक पत्राचार किया गया। बावजूद इसके अरुण शुक्ला द्वारा न तो फाइलें सौंपी गईं, न ही उनका कोई ठोस जवाब प्राप्त हुआ। इस अड़ियल रवैये से विभागीय व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है।
स्थिति इतनी विकट है कि जिलाधिकारी गोंडा ने मामले की गंभीरता को देखते हुए सिटी मजिस्ट्रेट को चार्ज हस्तांतरण की प्रक्रिया को संपन्न कराने हेतु नामित किया था। लेकिन जब प्रशासनिक मशीनरी स्वयं चार्ज लेने में असफल हो जाए, तो यह सवाल खड़ा करता है कि आखिर एक निलंबित लिपिक किस तरह से पूरे तंत्र पर हावी हो गया है? क्या इसके पीछे कोई आंतरिक संरक्षण या राजनीतिक संलिप्तता कार्य कर रही है?
सूत्रों की मानें तो समस्या सिर्फ चार्ज ट्रांसफर की नहीं है, बल्कि उससे कहीं अधिक गहरी और व्यापक है। बताया जा रहा है कि अनुदानित विद्यालयों में कार्यरत कई शिक्षकों के प्रथम वेतन भुगतान से संबंधित फाइलें कार्यालय में मौजूद ही नहीं हैं। इन्हीं फाइलों के आधार पर वेतन स्वीकृति की प्रक्रिया पूरी की गई थी। अब जब फाइलें ही नहीं हैं, तो फर्जी भुगतान या अदृश्य अनियमितताओं की आशंका भी गहराती जा रही है।
प्रशासनिक गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि यदि चार्ज का हस्तांतरण होता है, तो अरुण शुक्ला को इन सभी फाइलों का भी चार्ज देना पड़ेगा — और शायद यही कारण है कि वे जानबूझकर चार्ज ट्रांसफर से भाग रहे हैं। जानकारों का मानना है कि यदि फाइलों की खोजबीन में कोई बड़ा घोटाला उजागर हुआ, तो यह सिर्फ निलंबन तक सीमित मामला नहीं रहेगा, बल्कि मुकदमा दर्ज कर आपराधिक कार्रवाई तक की नौबत आ सकती है।
वित्त एवं लेखा कार्यालय में कार्यरत कर्मियों का कहना है कि वे नियमित कार्य करने के इच्छुक हैं, लेकिन जब आवश्यक दस्तावेज ही उपलब्ध नहीं हैं, तो सूचनाएं आगे नहीं बढ़ सकतीं। प्रशासन ने फिलहाल आंतरिक जांच के आदेश दिए हैं और पुनः सिटी मजिस्ट्रेट के माध्यम से चार्ज ट्रांसफर कराने की प्रक्रिया शुरू करने की बात कही है।
इस प्रकरण ने न केवल गोंडा के शिक्षा तंत्र को झकझोर कर रख दिया है, बल्कि यह भी उजागर कर दिया है कि निचले स्तर पर कार्यरत कर्मचारी भी सिस्टम में पेंच फंसा कर कैसे पूरे विभाग को बंधक बना सकते हैं। यदि जल्द ही इस मामले का समाधान नहीं निकला, तो इससे अन्य विभागों में भी गलत संदेश जाएगा और निलंबित कर्मचारियों को अघोषित ‘अभयदान’ मिलने लगेगा।
अब सबकी निगाहें जिला प्रशासन पर टिकी हैं कि वह इस ‘अरुण शुक्ला संकट’ से कैसे निपटता है। क्या फाइलें बरामद होंगी? क्या चार्ज का ट्रांसफर सफलतापूर्वक पूरा होगा? और क्या इस मामले में विभागीय कार्रवाई के साथ-साथ विधिक कार्यवाही भी होगी? इन सवालों के जवाब आने वाले सप्ताहों में सामने आएंगे। लेकिन एक बात तय है — यह मामला प्रशासनिक व्यवस्था में जवाबदेही की कमी का प्रतीक बन चुका है।

