स्थलीय निरीक्षण, नजरी नक्शा और स्पष्ट रिपोर्ट 25 अप्रैल तक मांगी गई
गोंडा/बहराइच, 20 अप्रैल। देवीपाटन मंडल के आयुक्त शशि भूषण लाल सुशील ने एक अत्यंत गंभीर शिकायत का संज्ञान लेते हुए प्रशासनिक तंत्र को जांच की दिशा में सक्रिय कर दिया है। यह मामला बहराइच जनपद के तहसील नानपारा से जुड़ा है, जहां स्थानीय निवासी ए के सिंह द्वारा दर्ज कराए गए एक शिकायती पत्र में उपजिलाधिकारी, तहसीलदार, नायब तहसीलदार, राजस्व निरीक्षक और लेखपाल स्तर तक के अधिकारियों पर भूमि माफियाओं से सांठगांठ कर सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा और निर्माण कार्य कराने के गंभीर आरोप लगाए गए हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, शिकायतकर्ता ने मोहल्ला जुबलीगंज, कस्बा नानपारा, बहराइच स्थित गाटा संख्या 433, 443, 435, 927, 1381 एवं 1382 सहित अन्य भूमियों का उल्लेख करते हुए आरोप लगाया है कि उक्त भूमि पर कुछ प्रभावशाली व्यक्तियों — जिनमें हरीराम पाठक, मौलाना मोहम्मद लइक, आज़ाद, हनुमंत पाठक, आकिब, अमन वर्मा और जैनुल शामिल हैं — ने राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत से न केवल अवैध कब्जा किया है बल्कि उस पर निर्माण भी करवा लिया है।
आयुक्त ने इस मामले की गम्भीरता को देखते हुए जांच अधिकारी के रूप में अपर जिलाधिकारी (एडीएम) बहराइच को नामित किया है। साथ ही उन्हें निर्देशित किया गया है कि वे शिकायती पत्र में उल्लिखित आरोपों की स्थलीय एवं अभिलेखीय जांच करें। जांच में यह सुनिश्चित किया जाएगा कि जिन भूखण्डों पर कब्जा व निर्माण की बात कही गई है, वे वाकई राजस्व अभिलेखों में सरकारी भूमि के रूप में दर्ज हैं या नहीं। यदि दर्ज हैं, तो किस प्रक्रिया या मिलीभगत से इन पर कब्जा कराया गया, यह जानना आवश्यक है।
आयुक्त द्वारा जांच के दौरान समस्त आरोपितों और अधिकारियों के बयान दर्ज करने, स्थल का फोटोग्राफिक साक्ष्य एकत्र करने और नजरी नक्शा प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया गया है। साथ ही विशेष रूप से यह भी कहा गया है कि जिन अधिकारियों और कर्मचारियों के विरुद्ध आरोप लगे हैं, उनकी तहसील में तैनाती की तिथि (posting date) भी जांच आख्या में अंकित की जाए, जिससे जांच की पारदर्शिता और समयबद्धता सुनिश्चित हो सके।
इस मामले में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि शिकायतकर्ता के अनुसार, पूरे घटनाक्रम में तहसील स्तरीय अधिकारियों की ‘दुरभिसंधि’ स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। दुरभिसंधि का तात्पर्य है कि राजस्व और प्रशासनिक अमला जानबूझकर मूकदर्शक बना रहा या फिर सीधे तौर पर अवैध कब्जेदारों को समर्थन प्रदान किया गया। यह न केवल प्रशासनिक भ्रष्टाचार का संकेत है, बल्कि इससे सरकारी सम्पत्ति पर आम जनता के अधिकार और राज्य की स्वामित्व व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगते हैं।
क्षेत्रीय सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस घटनाक्रम को जिला प्रशासन की गंभीर विफलता करार दिया है। सामाजिक न्याय मंच के अध्यक्ष इमरान उस्मानी ने कहा, “यदि एक आम नागरिक को अपनी सरकारी ज़मीन को अवैध कब्जे से मुक्त कराने के लिए मंडल स्तर तक शिकायत करनी पड़े, तो यह दर्शाता है कि तहसील और जिला स्तर पर कानून का शासन कमजोर पड़ा है।”
उल्लेखनीय है कि नानपारा तहसील में पिछले कुछ वर्षों से भूमि संबंधी विवादों की संख्या में लगातार वृद्धि देखी गई है। सरकार द्वारा बार-बार भू-माफियाओं के विरुद्ध सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए जाने के बावजूद, कई स्थानों पर यह देखने को मिला है कि राजस्व कर्मियों की मिलीभगत से सार्वजनिक भूमि, चरागाह, तालाब, और अन्य ज़मीनी परिसंपत्तियों को निजी स्वार्थ में बदल दिया जाता है। यही कारण है कि आयुक्त देवीपाटन मंडल ने इस बार स्वयं हस्तक्षेप करते हुए जांच की कमान अपर जिलाधिकारी को सौंपी है।
वहीं प्रशासनिक सूत्रों का मानना है कि आयुक्त का यह कदम एक नज़ीर बन सकता है। अगर इस मामले में दोषी पाए गए अधिकारियों एवं भू-माफियाओं के विरुद्ध कठोर कार्रवाई होती है तो यह आने वाले समय में अन्य अवैध कब्जों के मामलों के लिए निवारक प्रभाव उत्पन्न कर सकता है। इसके अलावा, यह संदेश भी जाएगा कि मंडल स्तर पर प्रशासनिक तंत्र अब इन मामलों में केवल ‘कागजी जांच’ तक सीमित नहीं रहेगा।
फिलहाल सभी की निगाहें 25 अप्रैल 2025 पर टिकी हैं, जब अपर जिलाधिकारी द्वारा अपनी जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की जानी है। यह रिपोर्ट स्थल निरीक्षण, दस्तावेजों के परीक्षण, फोटोग्राफिक साक्ष्यों, नजरी नक्शे और आरोपितों के बयानों के आधार पर तैयार की जाएगी। आयुक्त ने यह भी स्पष्ट किया है कि यदि जांच में किसी भी अधिकारी की संलिप्तता पाई जाती है, तो उनके विरुद्ध विभागीय अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
यह मामला केवल भूमि विवाद नहीं बल्कि न्याय, प्रशासनिक पारदर्शिता और जनसरोकारों की प्रतिष्ठा से जुड़ा है। जांच की निष्पक्षता और त्वरित कार्रवाई से यह तय होगा कि भविष्य में प्रशासनिक तंत्र आम नागरिक की शिकायतों को कितनी गंभीरता से लेता है। यदि शिकायतकर्ता ए के सिंह के आरोप प्रमाणित होते हैं, तो इस पूरे प्रकरण से जुड़े अधिकारियों और कथित भू-माफियाओं पर कानूनी शिकंजा कसना निश्चित है।

