गोंडा, 14 अप्रैल। जनपद गोंडा में प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही को स्थापित करने के लिए जिलाधिकारी नेहा शर्मा ने एक बार फिर सख्त रुख अपनाया है। इस बार निशाने पर हैं वे राजस्व कर्मी—विशेषकर लेखपाल—जिन्होंने आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों के चयन में उपयोग हेतु गलत आय एवं निवास प्रमाण पत्र जारी किए। मामले की गहराई से जांच के बाद 11 लेखपालों की संलिप्तता सिद्ध हुई है, जिन पर अब विभागीय कार्यवाही शुरू की जा रही है। यह निर्णय उस समय लिया गया जब जिले में चल रही आंगनबाड़ी भर्ती प्रक्रिया को लेकर कई शिकायतें सामने आईं, जिनमें अभ्यर्थियों द्वारा गलत दस्तावेजों के आधार पर चयन में आगे बढ़ने की कोशिश की गई थी।
गौरतलब है कि समन्वित बाल विकास परियोजना (ICDS) के अंतर्गत जिले में 231 रिक्त पदों के लिए आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों की भर्ती प्रक्रिया चल रही थी। प्रशासन ने इस प्रक्रिया को पूर्ण रूप से पारदर्शी और जनसहभागिता पर आधारित रखने हेतु संभावित चयन सूची को सार्वजनिक सूचना पट पर प्रदर्शित किया था। इसका उद्देश्य था कि कोई भी नागरिक यदि किसी अभ्यर्थी के दस्तावेजों को संदिग्ध मानता है, तो वह आपत्ति दर्ज करा सके। इस पहल ने ही कई अनियमितताओं को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
जिला प्रशासन द्वारा गठित जांच समिति ने प्राप्त आपत्तियों की गंभीरता से पड़ताल करते हुए दस्तावेजों का स्थलीय सत्यापन (Field Verification) कराया। इस प्रक्रिया में सामने आया कि कई अभ्यर्थियों ने अपने चयन को सुनिश्चित करने के लिए फर्जी या गलत प्रमाण पत्र प्रस्तुत किए थे, जिन्हें संबंधित क्षेत्र के लेखपालों द्वारा प्रमाणित किया गया था। यह कार्य न केवल आचरण नियमों का उल्लंघन था, बल्कि इसने प्रशासनिक व्यवस्था की पारदर्शिता पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया।
जांच के दौरान 12 मामलों की पहचान हुई, जिनमें संबंधित लेखपालों की भूमिका संदिग्ध नहीं, बल्कि प्रमाणित पाई गई। इनमें सदर तहसील से 6, मनकापुर से 1, तरबगंज से 3 और करनैलगंज से 2 प्रकरण शामिल हैं। जिलाधिकारी नेहा शर्मा ने इस गंभीर लापरवाही को अनुशासनहीनता और प्रशासनिक कर्तव्य के प्रति असंवेदनशीलता की श्रेणी में मानते हुए दोषी लेखपालों के विरुद्ध विभागीय कार्यवाही का आदेश जारी किया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस प्रकार की गतिविधियाँ चयन प्रक्रिया को दूषित करती हैं और योग्य अभ्यर्थियों के अधिकारों का हनन करती हैं।
कार्रवाई की जद में आए लेखपालों में ऐसे नाम भी शामिल हैं जो वर्तमान में राजस्व निरीक्षक के पद पर पदोन्नत हो चुके हैं। इनमें राम बहादुर यादव, जो वर्तमान में हरदोई में प्रशिक्षणरत हैं, और ज्ञान प्रकाश मिश्रा, जो खिरौरा मोहन (सदर तहसील) में राजस्व निरीक्षक के रूप में कार्यरत हैं, शामिल हैं। इसके अतिरिक्त रामनाथ, जो अब बलरामपुर जनपद की उतरौला तहसील में पदस्थ हैं, को भी कार्रवाई की सूची में शामिल किया गया है। शेष आठ लेखपाल वर्तमान में जिले के विभिन्न गांवों और क्षेत्रों में तैनात हैं।
जिलाधिकारी ने इस विषय की गंभीरता को देखते हुए अपर जिलाधिकारी (वित्त एवं राजस्व) को इस प्रकरण की साप्ताहिक समीक्षा करने और कार्यवाही की प्रगति पर प्रत्येक सप्ताह रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। इसका उद्देश्य यह है कि कार्रवाई केवल फॉर्मल ना रहे, बल्कि इसका निरंतर अनुश्रवण हो और दोषियों पर कठोर कार्रवाई समयबद्ध तरीके से सुनिश्चित की जा सके। इस प्रकार की मॉनिटरिंग शासन स्तर तक प्रशासन की पारदर्शिता और कर्तव्यनिष्ठा का स्पष्ट संकेत है।
डीएम नेहा शर्मा ने यह भी कहा कि प्रशासन किसी भी स्तर पर लापरवाही या कदाचार को स्वीकार नहीं करेगा। उन्होंने चेतावनी दी है कि भविष्य में यदि किसी भी अधिकारी या कर्मचारी द्वारा इस प्रकार की अनियमितता की जाती है, तो उसके विरुद्ध कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी। यह कदम अन्य कर्मियों के लिए एक चेतावनी है कि सरकारी दायित्वों का निर्वहन करते समय ईमानदारी और निष्पक्षता सर्वोपरि होनी चाहिए।
इस पूरे मामले ने यह भी दर्शाया है कि चयन प्रक्रियाओं में सिर्फ अभ्यर्थी ही नहीं, बल्कि उनके दस्तावेजों को वैध ठहराने वाले कर्मियों की भी जवाबदेही तय करना आवश्यक है। यह घटना न केवल स्थानीय प्रशासन के लिए चेतावनी है, बल्कि प्रदेश और देशभर में चल रही विभिन्न सरकारी योजनाओं की पारदर्शिता पर भी प्रश्न उठाती है। यदि ऐसे मामलों में समय पर कार्रवाई न की जाए, तो भ्रष्टाचार की जड़ें और मजबूत होती जाती हैं।
यह कार्रवाई एक नज़ीर के रूप में देखी जा रही है, जिससे अन्य जिलों के प्रशासनिक अधिकारी भी सबक ले सकते हैं। यह उदाहरण दर्शाता है कि यदि नेतृत्व इच्छाशक्ति रखता हो और शासन की नीतियों को सही रूप में लागू करना चाहता हो, तो भ्रष्टाचार को रोका जा सकता है। डीएम नेहा शर्मा की यह कार्यवाही न केवल प्रशासनिक जवाबदेही का उदाहरण है, बल्कि यह संदेश भी है कि सरकारें अब भ्रष्टाचार के प्रति ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति पर सख्ती से अमल कर रही हैं।

