
देवीपाटन मंडल में जनकल्याणकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार की शिकायत पर प्रशासनिक हलचल तेज, दस दिन में जांच रिपोर्ट मांगी
गोंडा, 8 अप्रैल। देवीपाटन मंडल मुख्यालय पर उस समय हड़कंप मच गया जब क्लाउड किचन व्यवसाय शुरू करने की इच्छुक एक महिला उद्यमी द्वारा लोन स्वीकृत कराने के एवज में रिश्वत मांगे जाने की शिकायत मंडलायुक्त को भेजी गई। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की गोंडा शाखा के कर्मचारियों ने उनसे ₹1,10,000 की अवैध मांग की और जब उन्होंने पैसे देने से इनकार कर दिया तो उनका ऋण आवेदन खारिज कर दिया गया। इस मामले को गंभीरता से लेते हुए देवीपाटन मंडल के मंडलायुक्त शशि भूषण लाल सुशील ने जिलाधिकारी गोंडा को त्वरित जांच के आदेश जारी किए हैं।
शिकायतकर्ता प्रीति पाठक, जो कि गोंडा के मालवीय नगर की निवासी हैं, ने यह शिकायत डाक के माध्यम से मंडलायुक्त कार्यालय को भेजी थी। उन्होंने लघु एवं सूक्ष्म उद्यम योजना (MSME स्कीम) के तहत क्लाउड किचन खोलने के लिए ऋण आवेदन किया था। शिकायत में प्रीति ने बताया कि जब वे लोन प्रक्रिया की जानकारी के लिए बैंक शाखा पहुंचीं, तो उन्हें बताया गया कि कागज पूरे हैं और योजना के तहत उन्हें लोन मिल सकता है, लेकिन साथ ही उन्हें यह भी संकेत दिया गया कि बिना “प्रबंधकीय सहमति शुल्क” (एक लाख दस हजार रुपए) के लोन स्वीकृत नहीं किया जाएगा।
प्रीति पाठक का यह भी कहना है कि उन्होंने कई बार बैंक अधिकारियों से विनती की कि वे उनकी आर्थिक स्थिति को समझें और नियमों के अनुसार लोन स्वीकृत करें, लेकिन उनकी बातों को अनसुना कर उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया। अंततः उन्होंने साहस कर यह मामला मंडलायुक्त के संज्ञान में लाने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने पत्र में यह भी कहा कि यदि इस प्रकार भ्रष्टाचार का बोलबाला रहेगा तो सरकार की योजनाएं केवल कागजों तक सीमित रह जाएंगी और जरूरतमंद उद्यमियों तक कभी नहीं पहुंच पाएंगी।
इस घटना ने न केवल बैंकिंग व्यवस्था की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि यह भी उजागर किया है कि जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ वास्तविक जरूरतमंदों तक पहुंचाने की प्रक्रिया किस हद तक भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी है। मंडलायुक्त शशि भूषण लाल सुशील ने इसे अत्यंत संवेदनशील मामला मानते हुए जिलाधिकारी गोंडा को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि शिकायतकर्ता के साथ निष्पक्ष वार्ता करते हुए मामले की गंभीरता से जांच की जाए और 10 दिन के भीतर जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए।
प्रशासन की ओर से जारी बयान में मंडलायुक्त ने कहा कि सरकार की योजनाएं जनता की भलाई के लिए हैं, न कि किसी भ्रष्ट कर्मचारी या अधिकारी की कमाई का जरिया। यदि कोई व्यक्ति लाभार्थियों से रिश्वत या सुविधा शुल्क की मांग करता है, तो यह न केवल अनैतिक है बल्कि आपराधिक भी। उन्होंने कहा कि इस तरह की शिकायतें शासन की मंशा को बाधित करती हैं, और ऐसे मामलों में दोषियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी।
बैंकिंग व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही है। इस मामले ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया है कि यदि बैंक कर्मचारी अपने पद का दुरुपयोग करते हैं तो यह आमजन की आकांक्षाओं पर कुठाराघात है। लघु उद्यमिता जैसी योजनाओं का मूल उद्देश्य ही यही है कि बिना किसी सिफारिश, दबाव या घूस के जरूरतमंदों को स्वरोजगार का अवसर मिले। लेकिन यदि लोन स्वीकृति के नाम पर रिश्वत ली जाएगी तो इससे योजना की आत्मा ही समाप्त हो जाएगी।
इस मामले की खास बात यह भी है कि शिकायतकर्ता महिला हैं, जो समाज में आत्मनिर्भरता का उदाहरण बनना चाहती हैं। ऐसी महिलाओं के साथ यदि इस प्रकार का व्यवहार होता है, तो यह “नारी सशक्तिकरण” के प्रयासों पर भी चोट करता है। यह जरूरी है कि जांच निष्पक्ष हो, समयबद्ध हो और इसका नतीजा सार्वजनिक किया जाए, ताकि गोंडा जैसे छोटे शहरों की प्रतिभाशाली महिलाओं को यह संदेश जाए कि सिस्टम उनके साथ है और भ्रष्टाचारियों के लिए कोई जगह नहीं।
कानूनी दृष्टिकोण से देखें तो यह मामला भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के अंतर्गत आता है — जैसे कि धारा 7 (लोक सेवकों द्वारा रिश्वत लेना), धारा 13 (भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के अंतर्गत आपराधिक दुराचार), आदि। यदि जांच में बैंक अधिकारियों की भूमिका स्पष्ट होती है, तो उनके विरुद्ध एफआईआर दर्ज कर विधिक कार्रवाई अनिवार्य है। साथ ही बैंकिंग नियामक संस्थाओं — जैसे RBI और बैंक की सतर्कता शाखा — को भी इस मामले की जानकारी भेजी जानी चाहिए।
इस प्रकार की घटनाएं उन हजारों युवाओं और उद्यमियों का मनोबल तोड़ती हैं, जो बिना किसी राजनीतिक या आर्थिक रसूख के अपना भविष्य बनाना चाहते हैं। प्रशासन का यह कर्तव्य है कि वे इस तरह की शिकायतों पर त्वरित संज्ञान लें और पीड़ित को न्याय दें। यह देखना दिलचस्प होगा कि 10 दिनों के भीतर जिलाधिकारी किस प्रकार की रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं, और क्या दोषियों को वास्तविक दंड मिल पाता है या नहीं। यदि जांच ठोस और निष्पक्ष हुई तो यह घटना एक नजीर बन सकती है — न केवल गोंडा में, बल्कि पूरे प्रदेश में।