
गोंडा 15 मार्च। जिले में शिक्षा विभाग से जुड़ी अनियमितताएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। अब मामला शिक्षामित्रों के मानदेय में अनावश्यक देरी और परिषदीय शिक्षकों व अनुदानित विद्यालय के लिपिक के गलत वेतन भुगतान का है। इस गंभीर लापरवाही के चलते पटल लिपिक अरुण शुक्ला को निलंबित कर दिया गया है। वित्त एवं लेखा अधिकारी सिद्धार्थ दीक्षित ने इस कार्रवाई की पुष्टि की है।
शिक्षामित्रों का मानदेय रोका, सरकार की छवि को नुकसान
उत्तर प्रदेश सरकार ने निर्देश दिया था कि शिक्षामित्रों का मानदेय होली से पहले जारी कर दिया जाए ताकि वे त्योहार खुशी से मना सकें। लेकिन वित्त एवं लेखा विभाग के कर्मचारी की लापरवाही और उदासीनता के कारण मानदेय देरी की गई।
गोंडा जिले में सैकड़ों शिक्षामित्र कार्यरत हैं, जो पहले से ही अल्प मानदेय पर काम कर रहे हैं। जब मानदेय में देरी होती है, तो उनके परिवारों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है। इस लापरवाही से प्रदेश सरकार, शिक्षा विभाग और अधिकारियों की छवि को नुकसान पहुंचा है।
बिना सत्यापन के शिक्षकों का वेतन भुगतान
इतना ही नहीं, कई परिषदीय विद्यालयों के शिक्षकों का बिना उचित सत्यापन और संशोधन जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय से आए वेतन जारी कर दिया गया। नियमानुसार, किसी भी सरकारी शिक्षक का वेतन जारी करने से पहले उनकी सेवा रिपोर्ट, उपस्थिति और वित्तीय स्थिति की जांच अनिवार्य होती है। लेकिन गोंडा के वित्त एवं लेखा विभाग में इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।
सूत्रों के अनुसार, कुछ शिक्षकों का वेतन बिना किसी संशोधन के सीधे उनके खातों में भेज दिया गया, जबकि अन्य योग्य शिक्षकों का वेतन रोका गया। इस गड़बड़ी ने शिक्षा विभाग की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
अनुदानित विद्यालय में लिपिक को गलत वेतन भुगतान
इस पूरे मामले में सबसे गंभीर अनियमितता अनुदानित विद्यालय बंशीधर किसान लघु माध्यमिक विद्यालय तामापर, मिश्रौलिया, मनकापुर में सामने आई। यहां लिपिक संजू देवी को गलत तरीके से वेतन दिया गया।
मई 2024 में उच्च न्यायालय ने संजू देवी की नियुक्ति को अवैध घोषित करते हुए सभी आदेश रद्द कर दिए थे। इसके बावजूद, फर्जी तरीके से जनवरी 2025 तक उन्हें वेतन दिया जाता रहा। इस मामले में स्कूल प्रबंधन और वित्त विभाग दोनों की भूमिका संदिग्ध रही।
जब मामला सामने आया तो विद्यालय के प्रबंधक प्रमोद कुमार मिश्रा ने अनभिज्ञता जताते हुए कहा कि उन्हें इस संबंध में कोई जानकारी नहीं थी। हालांकि, वित्त एवं लेखा विभाग ने इसे गंभीर वित्तीय अनियमितता मानते हुए जांच शुरू कर दी।
पटल लिपिक अरुण शुक्ला पर गिरी गाज, निलंबन की कार्रवाई
लगातार मिल रही शिकायतों और स्पष्टीकरण में जवाब न देने के कारण पटल लिपिक अरुण शुक्ला को निलंबित कर दिया गया है। वित्त एवं लेखा अधिकारी सिद्धार्थ दीक्षित ने बताया कि अरुण शुक्ला की भूमिका कई मामलों में संदिग्ध पाई गई थी।
- शिक्षामित्रों के मानदेय को जानबूझकर रोका गया।
- बिना सत्यापन कई परिषदीय शिक्षकों को वेतन जारी किया गया।
- अनुदानित विद्यालय में अवैध रूप से संजू देवी को वेतन दिया गया।
इन सभी मामलों में अरुण शुक्ला की संलिप्तता पाई गई, और वह लगातार स्पष्टीकरण देने से बचते रहे। जब उन्हें इस संबंध में कई बार नोटिस भेजे गए, तब भी उन्होंने संतोषजनक जवाब नहीं दिया। इसके बाद, बेसिक शिक्षा अधिकारी ने भी उनकी शिकायत वित्त एवं लेखा अधिकारी को भेजी, जिसके आधार पर निलंबन की कार्रवाई की गई।
शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी
गोंडा जिले में शिक्षा विभाग से जुड़े घोटाले कोई नई बात नहीं हैं। हाल के वर्षों में कई मामलों में फर्जी शिक्षकों को वेतन देने, बिना कार्यरत कर्मचारियों को वेतन जारी करने और अनियमितताओं के कारण वित्तीय हानि की खबरें आती रही हैं।
इस बार का घोटाला अधिक गंभीर इसलिए है क्योंकि इसमें एक नहीं, बल्कि तीन अलग-अलग अनियमितताएं सामने आई हैं:
- शिक्षामित्रों का मानदेय रोका गया।
- परिषदीय शिक्षकों का वेतन बिना सत्यापन जारी किया गया।
- न्यायालय के आदेश के बावजूद एक अवैध कर्मचारी को वेतन दिया गया।
अब आगे क्या?
वित्त एवं लेखा अधिकारी ने कहा कि “यह घोर वित्तीय अनियमितता का मामला है। अरुण शुक्ला को निलंबित कर दिया गया है, और इस पूरे मामले की विस्तृत जांच जारी है। यदि कोई अन्य अधिकारी भी दोषी पाया जाता है, तो उसके खिलाफ भी कठोर कार्रवाई की जाएगी।”
भ्रष्टाचार पर रोक कैसे लगे?
इस तरह की अनियमितताओं को रोकने के लिए शिक्षा विभाग और वित्त विभाग में कठोर सुधारों की आवश्यकता है। इसके लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं:
- मानदेय और वेतन भुगतान की डिजिटल मॉनिटरिंग – सभी सरकारी शिक्षकों और कर्मचारियों के वेतन भुगतान की ऑनलाइन निगरानी होनी चाहिए ताकि किसी भी गड़बड़ी को तुरंत पकड़ा जा सके।
- सख्त दंड व्यवस्था – यदि किसी अधिकारी या कर्मचारी को वित्तीय गड़बड़ी में दोषी पाया जाता है, तो उसके खिलाफ तत्काल सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि भविष्य में अन्य लोग इस तरह की हिम्मत न कर सकें।
- नियमित ऑडिट – सरकारी विद्यालयों और वित्तीय लेन-देन का नियमित ऑडिट किया जाना चाहिए ताकि घोटाले समय पर पकड़े जा सकें।
- शिक्षामित्रों का समय पर भुगतान सुनिश्चित करना – शिक्षामित्रों के मानदेय भुगतान में किसी भी प्रकार की देरी बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिए। इसके लिए स्वचालित भुगतान प्रणाली लागू की जानी चाहिए।
प्रभात भारत विशेष
गोंडा में शिक्षा विभाग के घोटाले ने एक बार फिर साबित कर दिया कि कैसे सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार हावी है। शिक्षामित्रों का मानदेय रोकना, बिना सत्यापन शिक्षकों का वेतन जारी करना और न्यायालय के आदेश के बावजूद संजू देवी को गलत तरीके से वेतन देना एक सुनियोजित घोटाले का हिस्सा लगता है।
पटल लिपिक अरुण शुक्ला का निलंबन एक सकारात्मक कदम जरूर है, लेकिन सवाल यह है कि क्या इससे अन्य दोषियों पर भी कार्रवाई होगी? या यह मामला भी अन्य घोटालों की तरह समय के साथ ठंडे बस्ते में चला जाएगा?
फिलहाल, यह घोटाला उत्तर प्रदेश सरकार, शिक्षा विभाग और वित्तीय अधिकारियों के लिए एक बड़ा सबक है कि भ्रष्टाचार पर सख्ती से कार्रवाई नहीं की गई तो भविष्य में ऐसे घोटाले और बढ़ सकते हैं।