
गोंडा 15 मार्च। जिले में शिक्षा विभाग से जुड़े वित्तीय अनियमितताओं के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। ताजा मामला बंशीधर किसान लघु माध्यमिक विद्यालय, तमापार, छपिया का है, जहां लिपिक पद पर कार्यरत संजू देवी को उच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी अनुचित रूप से वेतन दिया जाता रहा। न्यायालय ने मई 2024 में उनकी नियुक्ति को निरस्त करते हुए अपने सभी पूर्व आदेशों को भी रद्द कर दिया था। इसके बावजूद वित्त एवं लेखा विभाग के अधिकारियों और विद्यालय प्रबंधन की मिलीभगत से जनवरी 2025 तक उनका वेतन निर्बाध रूप से जारी रहा। यह न केवल वित्तीय अनियमितता है, बल्कि सरकारी धन की बंदरबांट का स्पष्ट उदाहरण भी है।
न्यायालय के आदेश निरस्त के बावजूद जारी रहा वेतन भुगतान
मई 2024 में उच्च न्यायालय ने संजू देवी की नियुक्ति को अवैध करार देते हुए सभी पूर्व आदेशों को निरस्त कर दिया था। इस आदेश के बाद, उनके वेतन भुगतान पर तुरंत रोक लग जानी चाहिए थी। लेकिन वित्त एवं लेखा विभाग और विद्यालय प्रबंधन की मिलीभगत से नियमों को दरकिनार कर दिया गया। संजू देवी को मई 2024 से जनवरी 2025 तक वेतन दिया जाता रहा, जिससे लाखों रुपये की हानि सरकारी खजाने को हुई।
इस मामले में जब विद्यालय के प्रबंधक प्रमोद कुमार मिश्रा से पूछा गया तो उन्होंने अनभिज्ञता जताते हुए कहा कि “हमें अभी तक न्यायालय के आदेश की कोई जानकारी नहीं मिली है। यदि हमें आदेश प्राप्त होगा तो हम उचित कार्यवाही करेंगे।”
वित्त एवं लेखा विभाग ने माना वित्तीय अनियमितता
इस मामले पर जब जिला वित्त एवं लेखा अधिकारी से बात की गई तो उन्होंने इसे “गंभीर वित्तीय अनियमितता” करार दिया। उन्होंने कहा कि जनवरी 2025 में जब यह मामला संज्ञान में आया तो तुरंत वेतन भुगतान को रोक दिया गया। लेकिन बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर किन परिस्थितियों में मई 2024 से जनवरी 2025 तक वेतन भुगतान किया जाता रहा?
जिला वित्त एवं लेखा अधिकारी के अनुसार, इस पूरे मामले की जांच की जा रही है और जल्द ही यह स्पष्ट किया जाएगा कि वेतन भुगतान का आदेश किस अधिकारी ने दिया था। यदि यह आदेश किसी वरिष्ठ अधिकारी द्वारा जारी किया गया होगा, तो उनके खिलाफ शासन को पत्र भेजकर कार्रवाई की सिफारिश की जाएगी। वहीं, यदि पटल सहायक अरुण शुक्ला (क्लर्क) द्वारा बिना किसी आदेश के वेतन जारी करने का दोषी पाया जाता है, तो उसे निलंबित किया जाएगा।
विद्यालय प्रबंधन की भूमिका संदिग्ध
इस पूरे घोटाले में विद्यालय प्रबंधन की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। संजू देवी को अदालत के आदेश के बाद न केवल वेतन मिलता रहा, बल्कि उनसे कार्य भी लिया जाता रहा। इतना ही नहीं, संशोधित दस्तावेजों में उनका नाम भी लगातार भेजा जाता रहा, जिससे स्पष्ट होता है कि विद्यालय प्रबंधन इस मामले में पूरी तरह शामिल था।
आमतौर पर, जब किसी कर्मचारी की नियुक्ति अवैध पाई जाती है, तो उसे तत्काल कार्यमुक्त कर दिया जाता है और उसकी सेवाएं समाप्त कर दी जाती हैं। लेकिन इस मामले में उल्टा हुआ। अदालत द्वारा उनकी नियुक्ति रद्द किए जाने के बावजूद, उन्हें कर्मचारी के रूप में बनाए रखा गया और वेतन भुगतान भी जारी रहा।
सरकारी खजाने को हुआ नुकसान
इस घोटाले से सरकार को लाखों रुपये का नुकसान हुआ है। सामान्य रूप से, सरकारी वेतन बजट की प्रक्रिया बेहद पारदर्शी होती है और वेतन जारी करने से पहले संबंधित अधिकारियों की मंजूरी आवश्यक होती है। लेकिन इस मामले में, बिना किसी वैध आदेश के लाखों रुपये का वेतन संजू देवी को जारी किया गया।
अगर यह घोटाला सामने नहीं आता तो यह गड़बड़ी और लंबे समय तक जारी रह सकती थी। सवाल यह उठता है कि शिक्षा विभाग में इस तरह की वित्तीय गड़बड़ियां कितने और मामलों में हो रही हैं? क्या यह सिर्फ एक मामला है, या पूरे जिले में ऐसे कई और मामले दबे हुए हैं?
कार्रवाई की तैयारी में प्रशासन
इस पूरे मामले के सामने आने के बाद अब जिला प्रशासन कार्रवाई की तैयारी कर रहा है। जिला वित्त एवं लेखा अधिकारी ने कहा कि “हम पूरी जांच कर रहे हैं। यदि कोई अधिकारी इसमें दोषी पाया जाता है, तो उसके खिलाफ शासन को पत्र लिखकर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। यदि कोई पटल सहायक बिना किसी आदेश के वेतन जारी करने का दोषी पाया जाता है, तो उसे तत्काल निलंबित किया जाएगा।”
अब सवाल यह उठता है कि क्या दोषियों पर सख्त कार्रवाई होगी, या यह मामला भी अन्य घोटालों की तरह फाइलों में दबकर रह जाएगा?
शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार के बढ़ते मामले
गोंडा जिले में शिक्षा विभाग से जुड़े घोटाले कोई नई बात नहीं हैं। पहले भी ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं जहां फर्जी शिक्षकों को वर्षों तक वेतन मिलता रहा, बिना काम किए सरकारी खजाने से पैसे निकाले जाते रहे, और शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से वित्तीय गड़बड़ियां होती रहीं।
इस घोटाले ने एक बार फिर साबित कर दिया कि शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हैं। सवाल यह उठता है कि क्या इस मामले की निष्पक्ष जांच होगी और क्या दोषियों को सजा मिलेगी?
भ्रष्टाचार पर कैसे लगे रोक?
इस तरह के वित्तीय घोटालों को रोकने के लिए शिक्षा विभाग और वित्त विभाग में कठोर सुधारों की आवश्यकता है। इसके लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं:
1. न्यायालय के आदेशों की तुरंत निगरानी – किसी भी कर्मचारी के खिलाफ न्यायालय का आदेश आते ही उसे तत्काल प्रभाव से लागू किया जाना चाहिए।
2. वेतन भुगतान प्रणाली में पारदर्शिता – सभी सरकारी शिक्षकों और कर्मचारियों के वेतन भुगतान की डिजिटल मॉनिटरिंग होनी चाहिए ताकि किसी भी गड़बड़ी को तुरंत पकड़ा जा सके।
3. सख्त दंड व्यवस्था – यदि किसी अधिकारी या कर्मचारी को वित्तीय गड़बड़ी में दोषी पाया जाता है, तो उसके खिलाफ तत्काल सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि भविष्य में अन्य लोग इस तरह की हिम्मत न कर सकें।
4. नियमित ऑडिट – सरकारी विद्यालयों के वित्तीय लेन-देन का नियमित ऑडिट किया जाना चाहिए ताकि घोटाले समय पर पकड़े जा सकें।
प्रभात भारत खास
गोंडा के शिक्षा विभाग में यह घोटाला सिर्फ एक मामला नहीं है, बल्कि यह दिखाता है कि कैसे सरकारी विभागों में मिलीभगत से भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया जाता है। न्यायालय का स्पष्ट आदेश होने के बावजूद एक फर्जी कर्मचारी को महीनों तक वेतन दिया जाता रहा, जिससे सरकार को लाखों रुपये का नुकसान हुआ।
अब देखना यह है कि जिला प्रशासन इस मामले में कितनी तेजी से कार्रवाई करता है और क्या दोषियों को वाकई में सजा मिलती है या यह मामला भी फाइलों में दबकर रह जाएगा। फिलहाल, यह घोटाला शिक्षा विभाग की कार्यशैली पर बड़ा सवाल खड़ा करता है और भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े कदम उठाने की जरूरत को दर्शाता है।