
उत्तर प्रदेश सरकार के आरक्षण नियमों के उल्लंघन पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त नजर
नई दिल्ली, 4 मार्च। उत्तर प्रदेश में 69,000 सहायक शिक्षक भर्ती में हुए आरक्षण घोटाले को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में एक अहम सुनवाई होने जा रही है। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस दीपंकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी। यह सुनवाई कोर्ट नंबर 14 में सीरियल नंबर 19 पर सूचीबद्ध है।
आरक्षण पीड़ित अभ्यर्थियों के लिए यह सुनवाई बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है, क्योंकि वे वर्ष 2020 से कोर्ट में याची बनकर न्याय की लड़ाई लड़ रहे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार पर आरोप है कि उसने आरक्षण नियमों का घोर उल्लंघन करते हुए अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और अनुसूचित जाति (SC) के अभ्यर्थियों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया।
क्या है पूरा मामला?
उत्तर प्रदेश सरकार ने 2018 में 69,000 सहायक शिक्षक भर्ती का विज्ञापन जारी किया था, जिसमें आरक्षण नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाकर हजारों अभ्यर्थियों ने अदालत का रुख किया। भर्ती में 19,000 से अधिक सीटों पर आरक्षण घोटाले की बात सामने आई, जिसमें OBC और SC अभ्यर्थियों को निर्धारित आरक्षण प्रतिशत से काफी कम सीटें दी गईं।
आरक्षण नियमों का उल्लंघन
1. OBC वर्ग को 27% के बजाय केवल 3.86% आरक्षण दिया गया।
2. SC वर्ग को 21% के स्थान पर केवल 16.2% आरक्षण मिला।
3. भर्ती प्रक्रिया में बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 और आरक्षण नियमावली 1994 का उल्लंघन किया गया।
4. ST वर्ग के आरक्षण को भी सही तरीके से लागू नहीं किया गया।
लखनऊ हाईकोर्ट का फैसला
इस मामले में लखनऊ हाईकोर्ट की डबल बेंच ने 13 अगस्त 2024 को बड़ा फैसला सुनाते हुए 69,000 सहायक शिक्षक भर्ती की पूरी चयन सूची को रद्द कर दिया था। कोर्ट ने अपने फैसले में माना कि आरक्षण प्रक्रिया में गंभीर खामियां थीं, जिससे OBC और SC वर्ग के अभ्यर्थियों को नुकसान हुआ।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि सरकार ने आरक्षण नीति के पालन में लापरवाही बरती और इससे हजारों योग्य अभ्यर्थियों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया गया। हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जिसकी सुनवाई आज हो रही है।
अभ्यर्थियों की मांग: याची लाभ देकर जल्द करें निस्तारण
आरक्षण पीड़ित अभ्यर्थियों ने उत्तर प्रदेश सरकार से गुहार लगाई है कि वह इस मामले को गंभीरता से ले और सुप्रीम कोर्ट में याची लाभ (Litigant Benefit) का प्रस्ताव पेश करके मामले का शीघ्र निस्तारण करे।
अभ्यर्थियों का कहना है कि वे चार वर्षों से न्याय के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन अभी तक सरकार ने उनके हितों की रक्षा के लिए ठोस कदम नहीं उठाए।
क्या होता है याची लाभ?
याची लाभ का मतलब होता है कि कोर्ट में मामला दायर करने वाले अभ्यर्थियों को प्राथमिकता दी जाए और उनके पक्ष में फैसला आने पर उन्हें पहले नियुक्ति दी जाए। अगर सरकार सुप्रीम कोर्ट में याची लाभ का प्रस्ताव रखती है, तो इससे हजारों पीड़ित अभ्यर्थियों को राहत मिल सकती है।
सरकार की दलीलें और सुप्रीम कोर्ट का रुख
उत्तर प्रदेश सरकार का दावा है कि भर्ती प्रक्रिया पारदर्शी तरीके से पूरी की गई थी और आरक्षण नीति में कोई अनियमितता नहीं हुई। सरकार का यह भी तर्क है कि अगर चयन सूची पूरी तरह रद्द कर दी गई, तो इससे भर्ती प्रक्रिया में अनावश्यक देरी होगी और शिक्षा व्यवस्था प्रभावित होगी।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही इस मामले को गंभीरता से लिया है और संकेत दिए हैं कि अगर सरकार ने आरक्षण नियमों का पालन नहीं किया है, तो उसे जवाबदेही लेनी होगी।
69,000 शिक्षक भर्ती परीक्षा का इतिहास
उत्तर प्रदेश में शिक्षकों की भर्ती का यह मामला शुरुआत से ही विवादों में रहा है।
1. 2018 – उत्तर प्रदेश सरकार ने 69,000 सहायक शिक्षक भर्ती की घोषणा की।
2. 2019 – भर्ती प्रक्रिया शुरू हुई और परीक्षा आयोजित की गई।
3. 2020 – परिणाम घोषित हुए, जिसके बाद आरक्षण घोटाले का आरोप लगा और मामला कोर्ट में गया।
4. 2021-2023 – हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई चलती रही।
5. 2024 – लखनऊ हाईकोर्ट ने चयन सूची रद्द की और सरकार को दोबारा प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया।
6. 4 मार्च 2025 – सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई हो रही है।
आरक्षण घोटाले से प्रभावित अभ्यर्थियों की स्थिति
आरक्षण घोटाले के शिकार अभ्यर्थियों की स्थिति बेहद दयनीय हो गई है। वे पिछले चार वर्षों से नौकरी पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन न्याय नहीं मिल पा रहा। कई अभ्यर्थियों की आयुसीमा समाप्त हो रही है, जिससे उनका भविष्य अंधकारमय होता जा रहा है।
पीड़ित अभ्यर्थियों की मांगें
1. सरकार सुप्रीम कोर्ट में याची लाभ का प्रस्ताव पेश करे, जिससे योग्य अभ्यर्थियों को जल्द से जल्द नियुक्ति मिल सके।
2. आरक्षण नीति का सही से पालन करते हुए नए सिरे से मेरिट लिस्ट तैयार की जाए।
3. सरकार हाईकोर्ट के फैसले का सम्मान करे और सभी पात्र अभ्यर्थियों को न्याय दिलाने की प्रक्रिया शुरू करे।
4. भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए कड़े नियम लागू किए जाएं।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला होगा निर्णायक
69,000 सहायक शिक्षक भर्ती में हुए आरक्षण घोटाले का मामला सिर्फ अभ्यर्थियों की नौकरी का मुद्दा नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और संविधान के मूल्यों की रक्षा से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस मामले में अन्य सरकारी भर्तियों के लिए भी एक मिसाल कायम करेगा।
अगर कोर्ट ने सरकार को याची लाभ देने का आदेश दिया, तो हजारों अभ्यर्थियों को राहत मिलेगी और उन्हें उनका हक मिलेगा। वहीं, अगर सरकार की दलीलें कमजोर साबित होती हैं, तो भर्ती प्रक्रिया को फिर से शुरू करना पड़ सकता है, जिससे लाखों अभ्यर्थियों का भविष्य अधर में लटक सकता है।
अब सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं, जहां आज की सुनवाई यह तय करेगी कि उत्तर प्रदेश के आरक्षण पीड़ित अभ्यर्थियों को न्याय मिलेगा या नहीं।