आखिर कौन है इस भ्रष्टाचार का जनक, शिक्षा का माफिया
गोंडा 30 दिसंबर। बेसिक शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार का जो खेल खेला गया है, उसने पूरे शिक्षा तंत्र को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। अनुदानित विद्यालयों में अध्यापकों की नियुक्ति से लेकर अनुदान प्राप्त करने तक, हर स्तर पर फर्जीवाड़े के प्रमाण सामने आ रहे हैं। गोंडा के एक मामले ने इस पूरे सिस्टम की सच्चाई को उजागर कर दिया है।
फर्जी नियुक्तियों का खुलासा
गोंडा के एक स्थानीय अखबार के एक अंक को जाली तरीके से छापकर अधिकारियों को गुमराह किया गया। वजह थी एक ऐसे विज्ञापन की प्रतिपूर्ति करना, जो कभी प्रकाशित ही नहीं हुआ। इस फर्जीवाड़े का मकसद था, अनुदानित विद्यालयों में फर्जी नियुक्तियों को वैध ठहराना।
अध्यापक नियुक्तियों में ऐसा गड़बड़झाला हुआ कि कई जगह इंटरमीडिएट फेल लोग भी शिक्षक बन गए। इन अध्यापकों ने न केवल विभागीय नियमों की धज्जियां उड़ाईं, बल्कि बच्चों के भविष्य को भी दांव पर लगा दिया।
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निगरानी में कमी और विभागीय लापरवाही
अगर इन विद्यालयों की सख्ती से निगरानी हो, तो सैकड़ों फर्जी नियुक्तियां सामने आ सकती हैं। जांच के नाम पर मात्र औपचारिकताएं पूरी की गईं। हाईकोर्ट में सही पैरवी न होने के कारण फर्जी नियुक्तियां वैध हो गईं।
प्रबंधन और शिक्षा माफिया का गठजोड़
कई अनुदानित विद्यालयों के प्रबंधकों को पता ही नहीं कि उनके विद्यालय में प्राइमरी अनुभाग है या नहीं। प्रबंधकों और प्रधानाचार्यों का दावा है कि उनके विद्यालय में कक्षा 1 से 5 की कक्षाएं कभी संचालित ही नहीं हुईं।
एक प्रभारी प्रधानाचार्य ने बताया, “जब से मैं इस विद्यालय में सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्त हुआ हूं तब से लेकर आज तक प्राइमरी अनुभाग की कोई कक्षाएं नहीं देखी। यहां तक कि हमने कभी प्राइमरी मान्यता के लिए आवेदन भी नहीं किया।”
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर वह कौन सा शिक्षा माफिया है जिसने फर्जीवाड़ा कर हाईकोर्ट में प्राइमरी अनुदान के लिए आवेदन किया?
विभागीय भ्रष्टाचार और 200 करोड़ का घोटाला
फर्जीवाड़े का तंत्र
शिक्षा विभाग में ऐसे माफिया सक्रिय हैं, जो फर्जी दस्तावेज बनाकर अनुदान के करोड़ों रुपये हड़प रहे हैं। ये माफिया न केवल अधिकारियों को गुमराह करते हैं, बल्कि उन्हें अपने इशारों पर चलाते भी हैं।
शपथ पत्रों का खेल
हाईकोर्ट में फर्जी शपथ पत्र देकर यह दावा किया गया कि कक्षाएं नियमित चल रही हैं। प्रधानाचार्य, प्रबंधक और शिक्षा माफिया ने एक कैंपस को दिखाकर प्राइमरी अनुभाग के लिए भी अनुदान प्राप्त कर लिया।
वित्त एवं लेखा विभाग की भूमिका
वित्त एवं लेखा विभाग ने बिना सत्यापन के वेतन राशि जारी कर दी। जब भी किसी अधिकारी ने विरोध किया, उन्हें ट्रांसफर करवा दिया गया।
200 करोड़ का घोटाला
2011 से लेकर अब तक फर्जी कागजातों के आधार पर करीब 200 करोड़ रुपये का घोटाला किया गया है। इस दौरान विभागीय अधिकारियों ने अपनी आंखें मूंदे रखीं।
शिक्षा तंत्र की साख पर सवाल
बेसिक शिक्षा विभाग का यह मामला भ्रष्टाचार की गहराई को दिखाता है। यह केवल वित्तीय अनियमितता का मामला नहीं है, बल्कि यह शिक्षा की गुणवत्ता और छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ है। अगर इस पर समय रहते कठोर कार्रवाई नहीं की गई, तो न केवल बच्चों का भविष्य अंधकारमय होगा, बल्कि पूरा शिक्षा तंत्र भ्रष्टाचार के दलदल में डूब जाएगा।
जांच की मांग
सरकार को चाहिए कि वह इस मामले की उच्चस्तरीय जांच कराए और दोषियों को कठोर दंड दे। साथ ही, फर्जी नियुक्तियों और अनुदान की व्यवस्था को पारदर्शी बनाने के लिए कड़े नियम लागू किए जाएं।

