
गोंडा 7 दिसंबर। जिले में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां परिषदीय विद्यालय में मृतक आश्रित कोटे के तहत अनुचर के पद पर नियुक्त एक व्यक्ति को फर्जी आदेशों के माध्यम से अध्यापक के पद पर नियुक्त कर दिया गया। इस फर्जीवाड़े के जरिए उसेउस80 लाख रुपए से अधिक का भुगतान कर दिया गया। यह मामला बेसिक शिक्षा विभाग में भारी अनियमितताओं की ओर इशारा करता है, जहां न सिर्फ फर्जी आदेशों के आधार पर नियुक्ति दी गई, बल्कि विभाग द्वारा इसे वर्षों तक अनदेखा किया गया।
मामले का खुलासा
जानकारी के अनुसार, मृतक आश्रित कोटे के तहत एक व्यक्ति की नियुक्ति अनुचर के पद पर की गई थी। लेकिन कुछ समय बाद, फर्जी दस्तावेजों के आधार पर उसे अध्यापक के पद पर स्थानांतरित कर दिया गया। संबंधित आदेशों को शासनादेश बताया जा रहा था, जबकि अब विभागीय जांच में यह स्पष्ट हुआ है कि ऐसा कोई शासनादेश अस्तित्व में ही नहीं है।
फर्जी आदेश कैसे बना आधार
इस मामले में सबसे बड़ी गड़बड़ी यह है कि जिस मूल आदेश का हवाला देकर व्यक्ति को अध्यापक के पद पर नियुक्त किया गया, वह पूरी तरह फर्जी पाया गया। शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने जांच के दौरान स्वीकार किया कि यह आदेश कहीं भी विभागीय या शासन के रिकॉर्ड में मौजूद नहीं है। इसके बावजूद, व्यक्ति को अध्यापक पद पर बैठाकर उसे संबंधित पद का वेतन दिया गया।
80 लाख से अधिक का भुगतान और हिस्सेदारी का सवाल
मामले में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि एक अनुचर को बिना किसी वैध प्रक्रिया के अध्यापक पद पर बैठाने और उसे 80 लाख रुपए से अधिक का भुगतान करने की अनुमति किसने दी। सूत्रों का कहना है कि इस घोटाले में विभाग के कई अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत हो सकती है। यह भी संदेह है कि इस राशि में अधिकारियों की हिस्सेदारी तय की गई हो।
कानूनी और प्रशासनिक नियमों की धज्जियां
शिक्षा विभाग में हुई इस गड़बड़ी ने प्रशासनिक और कानूनी प्रक्रिया पर सवाल खड़े कर दिए हैं। नियमों के अनुसार, मृतक आश्रित कोटे में नियुक्त व्यक्ति को उसके मूल पद पर ही कार्य करना होता है। यदि किसी भी प्रकार का पदोन्नति या पद परिवर्तन करना हो, तो इसके लिए उच्च स्तर से आदेश जारी करना आवश्यक है। लेकिन इस मामले में, न तो किसी सक्षम अधिकारी की मंजूरी ली गई और न ही शासन स्तर से कोई आदेश जारी हुआ।
विभाग की भूमिका संदिग्ध
बेसिक शिक्षा विभाग की भूमिका इस मामले में संदेह के घेरे में है। इतने लंबे समय तक फर्जी आदेश के आधार पर भुगतान होते रहने के बावजूद किसी भी अधिकारी ने इस पर सवाल नहीं उठाया। क्या विभाग जानबूझकर इस मामले को नजरअंदाज करता रहा? या फिर इसमें विभाग के अधिकारियों की सीधी भागीदारी थी?
जांच में हुआ बड़ा खुलासा
मामला उजागर होने के बाद, बेसिक शिक्षा विभाग ने आंतरिक जांच शुरू की। प्रारंभिक जांच में पाया गया कि आदेश पूरी तरह फर्जी थे और इसे विभागीय रिकॉर्ड में दिखाने के लिए हेरफेर किया गया था। जांच रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ कि संबंधित व्यक्ति को अनुचर पद से सीधे अध्यापक पद पर बैठाना पूरी तरह से नियम विरुद्ध था।
आर्थिक नुकसान और कानूनी कार्रवाई
इस घोटाले से न सिर्फ सरकारी खजाने को भारी आर्थिक नुकसान हुआ है, बल्कि शिक्षा विभाग की साख पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। वर्तमान में विभाग ने संबंधित व्यक्ति की सेवा समाप्त करने और भुगतान की रिकवरी करने का आदेश दिया है। इसके साथ ही, मामले में संलिप्त अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक और कानूनी कार्रवाई की तैयारी की जा रही है।
भ्रष्टाचार का एक और उदाहरण
गोंडा में सामने आया यह मामला भ्रष्टाचार का एक और उदाहरण है, जहां विभागीय मिलीभगत से न सिर्फ सरकारी नियमों का उल्लंघन किया गया, बल्कि जनसेवा की भावना को भी आघात पहुंचाया गया। यह घटना दर्शाती है कि कैसे सरकारी तंत्र में कुछ अधिकारी अपने स्वार्थ के लिए व्यवस्था का दुरुपयोग कर सकते हैं।
क्या विभाग पर होगी कार्रवाई?
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस घोटाले के बाद शिक्षा विभाग में सुधार के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे। क्या जिम्मेदार अधिकारियों को दंडित किया जाएगा? या फिर मामले को दबाने की कोशिश होगी?
प्रभात भारत विशेष
गोंडा में सामने आया यह मामला सरकारी विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की एक झलक प्रस्तुत करता है। इस घटना ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि सरकारी तंत्र में पारदर्शिता और जिम्मेदारी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। यदि इस मामले में दोषियों को सख्त सजा नहीं दी गई, तो यह भ्रष्टाचार को और बढ़ावा देने का काम करेगा। जनता की नजरें अब इस बात पर टिकी हैं कि इस घोटाले में शामिल लोगों को कब और कैसे न्याय के दायरे में लाया जाएगा।